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    Death anniversary of Mahakavi Suryakant Tripathi 'Nirala' : थियेटर की समृद्धि चाहते थे महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

    By Brijesh SrivastavaEdited By:
    Updated: Thu, 15 Oct 2020 01:23 PM (IST)

    Death anniversary of Mahakavi Suryakant Tripathi Nirala निराला ने कहा कि मैं वहां क्या करने जाऊं। वह खुद यहां आ सकते हैं जैसे निराला उनके पास जा सकता है। अगर राष्ट्रपति की हैसियत से बुला रहे हैं तो मैं भी साहित्यपति हूं यह कहकर जाने से मना कर दिया।

    महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' 15अक्टूबर 1961 को अंतिम सांस ली।

    प्रयागराज,जेएनएन। महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कुछ स्मृतियां उनके विराट व्यक्तित्व का परिचय कराती हैं। फिल्म निर्माता, निर्देशक व अभिनेता पृथ्वीराज कपूर से 1952 में हुई उनकी मुलाकात कुछ ऐसी ही कहानी बताती है। पैलेस थियेटर के मंच पर नाटक में अभिनय करने आए पृथ्वीराज, निराला से मिलने उनके दारागंज स्थित घर गए। निराला ने उनसे कहा कि 'फिल्मों की तरह थियेटर बनाओ ताकि लोग टिकट लेकर वहां रंगमंच का मंचन देखें और कलाकारों को फायदा हो।'

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    प्रयागराज रही निराला की कर्मभूमि

    छायावाद के प्रमुख स्तंभ निराला का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर में 21 फरवरी 1899 को हुआ था। लेकिन, कर्मभूमि प्रयागराज थी। वे 1942 में प्रयागराज आ गए। यहीं, 15 अक्टूबर 1961 को अंतिम सांस ली। वरिष्ठ कवि यश मालवीय बताते हैं कि निराला के प्रति प्रेम का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि उनकी अंतिम यात्रा में साहित्यकारों से अधिक आम लोग शामिल हुए थे।

    'मुझे प्रधानमंत्री से क्या काम? मैं नहीं जाऊंगा।'

    समालोचक रविनंदन सिंह बताते हैं कि 1959 में राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन बहुत बीमार हुए तो नेहरू उन्हेंं देखने प्रयागराज आए थे। तभी उन्हें पता चला कि निराला भी बीमार हैं। समयाभाव के कारण वे उनके घर न जाकर उन्हें लेने कार भेज दी। जो लेने गए थे उन्होंने कहा, 'आपको प्रधानमंत्री जी ने बुलाया है।' निराला बोले 'मुझे प्रधानमंत्री से क्या काम? मैं नहीं जाऊंगा।' इसके बाद एक कागज पर शेर लिखा... 'मुरगान चमन की है गुटरगूं तेरे आगे, मुझ जैसे गरीबों की है हूं-हूं तेरे आगे।' शेर लिखकर कागज थमाकर बोले 'यह पंडित जी को दे देना।'

    '...मैं भी साहित्यपति हूं '

    एक बार राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद प्रयागराज आए थे। उन्होंने अपने पीए से निराला से मिलने की इच्छा व्यक्त की। पीए ने इसमें महादेवी वर्मा की सहायता ली। उनके साथ निराला को लेने दारागंज स्थित उनके घर पहुंचे। महादेवी ने राष्ट्रपति के आग्रह के बारे में बताया कि 'आपको लेने मोटर आई है।' निराला ने कहा कि 'मैं वहां क्या करने जाऊं। वह खुद भी यहां आ सकते हैं, जैसे निराला उनके पास जा सकता है। अगर राष्ट्रपति की हैसियत से बुला रहे हैं तो मैं भी साहित्यपति हूं ' यह कहकर जाने से मना कर दिया।