शतरंज खिलाड़ी मैनुअल आरों जिन्हें बहन ने बना दिया शह और मात के खेल का बादशाह
शतरंज के बेताज बादशाह मैनुअल आरों आज (30 दिसंबर) को 86वें बसंत में प्रवेश कर गए। छह दशक पहले म ने अपना पहला चैस टूर्नामेंट इलाहाबाद विश्वविद्यालय में खेला। ईसीसी से 1955 में बीएससी करने वाले आरों ने छह वर्ष की आयु में बड़ी बहन फिलिशिया से खेल सीखा था।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। दो घोड़े, दो हाथी, दो ऊंट, आठ सैनिक, एक राजा और एक वजीर (रानी) के 64 खाने वाले खेल को संगमनगरी में जीवंत करने वाले शतरंज के बेताज बादशाह मैनुअल आरों आज (30 दिसंबर) को 86वें बसंत में प्रवेश कर गए। छह दशक पहले आरों ने अपना पहला चैस टूर्नामेंट इलाहाबाद विश्वविद्यालय में खेला। ईविंग क्रिश्चियन कालेज (ईसीसी) से वर्ष 1955 में बीएससी की उपाधि हासिल करने वाले आरों ने बताया कि उन्होंने महज छह वर्ष की आयु में बड़ी बहन फिलिशिया से शह-मात की चाल सीखी थी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को शतरंज में दिलाई थी अलग पहचान
मैनुअल आरों का जन्म 30 दिसंबर 1935 को म्यांमार में हुआ था। उनके पिता बीआर आरों सैम हिग्गिनबाटम यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर टेक्नोलाजी एंड साइंसेज (शुआट्स) में कैफिटेरिया मैनेजर और मां पुष्पम गृहिणी थीं। तमिलनाडु से प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद वह 60 के दशक में परिवार के साथ प्रयागराज में रहने लगे। यहां पढ़ाई के वक्त उन्होंने पहला चैस टूर्नामेंट इलाहाबाद विश्वविद्यालय में खेला और अपनी बुद्धिमत्ता के बूते विपक्षियों को उखाड़ दिया। इसके बाद यह सिलसिला थमा नहीं।
अब मुंबई में अपनी एकेडमी में तैयार कर रहे ग्रैंड मास्टर
वह अब चेन्नई में आरों चेस एकेडमी के तहत ग्रैंड मास्टर तैयार करने में जुटे हैं। 1960 से 1970 तक भारत में शतरंज के बादशाह रहने वाले आरों 1962 में स्टाकहोम इंटर जोनल में चयनित हुए। वहां लाजीस पोर्टिश, वोल्फगैंग, अलमैन जैसे दिग्गजों से मुकाबला हुआ। नौ बार राष्ट्रीय चैंपियन अपने नाम करने वाले आरों 1962 में अर्जुन पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। 1969 से 1973 तक राष्ट्रीय खिताब, तमिलनाडु में 11 बार राज्यस्तरीय चैंपियनशिप रहे।
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