Doctor Murali Manohar Joshi Birthday: इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में आज भी खाली है डॉ. जोशी की कुर्सी
डॉ. जोशी इसमें बतौर प्रतिभागी शामिल हुए। वहां उनके निर्देशन में तैयार मॉडल रखा गया था जिसे सराहना मिली थी ईंट और पत्थर से बने रंगेपासन (स्पेक्ट्रोग्राफ) को उन्होंने बाद में इविवि को सौंप दिया। यह आज भी चालू हालत में में है और इससे शोध किया जाता है।
प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के भौतिक विज्ञान विभाग में 26 साल अध्यापन से जुड़े रहे डॉ.मुरली मनोहर जोशी की वह कुर्सी हमेशा खाली रहती है जिस पर बैठते थे। वह जनवरी 1994 में सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद से आज तक उनकी कुर्सी पर कोई शिक्षक नहीं बैठा। विभाग के शिक्षक और अध्यक्ष शोध कक्ष में उसके बगल दूसरी कुर्सी लगाकर बैठते हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (आटा) के अध्यक्ष भी रहे डॉ. जोशी
डा. जोशी के निर्देशन में आखिरी शोध पूरा करने वाले भौतिक विभाग के प्रोफेसर केएन उत्तम बताते हैं कि एमएससी की उपाधि लेने के बाद डॉ. जोशी बतौर नॉन पीएचडी कैंडिडेट वर्ष 1956 में इविवि में अस्थायी लेक्चरर बने और अध्यापन शुरू किया। फिर प्रो. देवेंद्र शर्मा के निर्देशन में पीएचडी की डिग्री हासिल की। वर्ष 1972 में रीडर और फिर 1984 में पर्सनल प्रमोशन स्कीम के तहत प्रोफेसर नियुक्त हुए। वर्ष 1989 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (आटा) के अध्यक्ष रहे। फोटोग्राफी में गहरी रुचि रखने वाले डॉ. जोशी के निर्देशन में कुल 13 लोगों ने पीएचडी की जबकि एक ने डॉक्टर ऑफ साइंस (डीएससी) की उपाधि। वर्ष 1963 में उनके पहले शोधार्थी राघवेंद्र एमदागनी रहे। वह बाद में कनाडा चले गए। आखिरी शोधार्थी प्रो. केएन उत्तम हैं। वह बताते हैैं कि डॉ. जोशी इविवि के एकमात्र ऐसे प्रोफेसर हैं, जिनका वर्ष 1960 में पहला शोध पत्र विज्ञान अनुसंधान पत्रिका में हिंदी में प्रकाशित हुआ था। इसी साल दिल्ली में प्रदर्शनी लगी थी। डॉ. जोशी इसमें बतौर प्रतिभागी शामिल हुए। वहां उनके निर्देशन में तैयार मॉडल रखा गया था, जिसे सराहना मिली थी, ईंट और पत्थर से बने रंगेपासन (स्पेक्ट्रोग्राफ) को उन्होंने बाद में इविवि को सौंप दिया। यह आज भी चालू हालत में में है और इससे शोध किया जाता है। प्रो. उत्तम बताते हैैं कि वह 70 फीसद हिंदी में ही पढ़ाते थे।
पद्मविभूषण कमेटी के रहे हैं सदस्य
डॉ.जोशी पद्मविभूषण कमेटी के सदस्य रहे हैं। यह भी संयोग ही है कि बाद में उसी कमेटी ने प्रो. जोशी को इस सम्मान से अलंकृत किया।