1857 की क्रांति के अमर नायक राजा जयपाल सिंह थी थे, जिन्हें इतिहास ने भुला दिया, पढ़ें उनकी वीर गाथाएं
1857 की क्रांति के कई अमर नायक हुए जिनको इतिहास ने भुला दिया मगर उनके योगदान को कमतर करके कभी भी आंका नहीं जा सकता है। राजा जयलाल सिंह भी उसी पंक्ति के अग्रणी नायक में शुमार हैं। उनके बिना अवध में हुई 1857 की क्रांति की गाथा अधूरी रहेगी।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। 1857 की क्रांति के अमर नायक राजा जयलाल सिंह को शायद कम लोग ही जानते होंगे। इन्हें इतिहास ने भुला दिया है। अब एक बार फिर उनकी वीर गाथाओं को पढ़ने का अवसर मिला है।अतरौलिया नरेश राजा जयलाल सिंह महान वीरांगना एवं अवध की बेगम हजरत महल की अवध सेना के सेनापति थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युद्ध की पद्धति का इख्तियार कर दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे।
1857 की क्रांति के अमर नायक की वीरगाथा की पुस्तक का विमोचन : 1857 की क्रांति के अमर नायक राजा जयलाल सिंह की वीर गाथाओं पर आधारित पुस्तक का विमोचन बलरामपुर गार्डन में आयोजित 19वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला में किया गया। राजा जयलाल सिंह पुस्तक के लेखक प्रयागराज के आइपीएस प्रताप गोपेंद्र ने क्रांतिकारी जयलाल सिंह का जीवन परिचय दिया। बताया कि 1857 की क्रांति के कई ऐसे अमर नायक हुए जिनको इतिहास ने भुला दिया मगर उनके योगदान को कमतर करके कभी भी आंका नहीं जा सकता है। राजा जयलाल सिंह भी उसी पंक्ति के अग्रणी नायक में शुमार हैं। उनके बिना अवध में हुई 1857 की क्रांति की गाथा अधूरी रहेगी।
बेगम हजरत महल के सेनापति थे राजा जयलाल सिंह : प्रताप गोपेंद्र ने बताया कि अंग्रेजों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को उनकी गद्दी से बेदखल कर डाला, लेकिन उनकी बेगम हजरत महल ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नाक में दम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों के साथ सबसे लंबे वक्त तक जंग लड़ी जो उनके सेनापति रहे राजा जयलाल सिंह की बदौलत ही संभव हो सका।
इतिहासविद प्रमोद कुमार ने संघर्षों पर चर्चा की : लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार ने राजा जयलाल सिंह के संघर्षों पर चर्चा की। बताया कि इतिहास और इतिहासकारों ने 1857 की क्रांति के कई नायकों के साथ इंसाफ नहीं किया है। विभिन्न आर्काइव्ज में उनके बलिदानों के किस्से मौजूद हैं मगर उन्हें संकलित करने की जद्दोजहद कोई नहीं करना चाहता है। ऐसे में तमाम इतिहासकारों को प्रताप जैसे ब्यूरोक्रेट्स से सीख लेनी चाहिए।
साहित्यकार शिवमूर्ति ने जयलाल को कुशल रणनीतिकार बताया : वरिष्ठ साहित्यकार शिवमूर्ति ने अपने कहा कि दलित, पिछड़ों के नायकों के साथ सबसे ज्यादा भेदभावपूर्ण रवैया इख्तियार किया गया ऐसे में इन वर्ग के लोगों को जागृत होकर अपने असली महापुरुषों की पहचान स्वयं करते हुए अपने समाज में जागरूकता फैलानी चाहिए। उन्होंने कहा कि राजा जयलाल सिंह कुर्मी क्षत्रिय थे। वह बेहतरीन तलवारबाज थे और कुशल रणनीतिकार भी। यही वजह है कि गिनती के सैनिक होने के बावजूद उन्होंने लंबे समय तक अंग्रेजों को शहर में प्रवेश नहीं करने दिया।
अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी : चौरी चौरा, भील विद्रोह और अवध का किसान विद्रोह के लेखक एवं प्रसिद्ध इतिहासकार सुभाष कुशवाहा ने 1857 की क्रांति पर प्रकाश डालते है कहा कि हज़रत महल ने चिनहट जंग के बाद 5 जून, 1857 को अपने 11 साल के बेटे बिरजिस क़द्र को अवध का ताज पहनाया। इस लड़ाई का नतीजा ये रहा कि अंग्रेज़ों को लखनऊ रेजिडेंसी में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा। ताजपोशी की पूरी रस्म राजा जयलाल सिंह के नेतृत्व में अदा की गई। उन्होंने बताया कि आज के केडी सिंह बाबू स्टेडियम के ठीक सामने स्थित राजा जयलाल सिंह पार्क ही वह जगह थी जहां पर बिरजिस कद्र की ताजपोशी की गई थी। युद्धकौशल और रणनीति बनाने में माहिर राजा जयलाल सिंह पर ही यह जिम्मेदारी थी कि वह कहा और कितनी टुकड़ी तैनात करें, जिससे नगर के भीतर अंग्रेज प्रवेश न कर सकें। अंत में जयलाल सिंह को अंग्रेजों द्वारा मुकदमा चलाकर फांसी दे दी गई।
पुस्तक पर चर्चा : डीजी सीबी सीआदडी आदपीएस विजय कुमार ने प्रताप गोपेेद्र की प्रशंसा करते हुए कहा कि एक ब्यूरोक्रेट्स द्वारा अपने व्यस्त प्रोफेशनल दिनचर्या से समय निकालकर स्वतंत्रता आंदोलन जैसे संवेदनशील विषय पर पुस्तक लिखना बेहद ही सराहना योग्य है।
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