Birth Anniversary of Nirala: प्रयागराज के दारागंज में बसी है महाप्राण निराला की यादें, जानिए क्या थी खास आदतें
Birth Anniversary of Nirala साहित्यकार शिवकुमार राय बताते हैं कि निराला के नाम एक नहीं कई किवदंतियां प्रचलित हैं। मसलन सामने दिख जाने वाले जरूरतमंद को ...और पढ़ें

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की यादें चारों ओर बसी हैं। दारागंज में उनके निवास के आस पास रहने वाले पुराने लोगों से सुनी बातों की चर्चा आज लोग करते हैं। मां सरस्वती के वरदपुत्र महाप्राण निराला के पद्य और गद्य उनकी यश गाथा के गवाह हैं। शायद इसीलिए निराला जी ने अपना जन्मदिन वसंत ही माना। हिंदी साहित्य के 'सूर्य' महाप्राण निराला का जन्मदिवस वसंत पर मनाने की परंपरा भी तभी से चली आ रही है। निराला जी थे ही निराले, तभी तो उन्हेंं महाप्राण माना- जाना गया। निराला जी का जितना साहित्य अजर-अमर है, उससे ज्यादा उनका 'व्यवहार रूप' समाज में आज भी जिंदा है।
प्रचलित हैं कई किवदंतियां
साहित्यकार शिवकुमार राय बताते हैं कि निराला के नाम एक नहीं कई किवदंतियां प्रचलित हैं। मसलन, सामने दिख जाने वाले जरूरतमंद को जेब के सारे रुपये दे देना। ठंड में कांपने वाले गरीब को महंगी से महंगी अचलन ओढ़ा देना.. आदि आदि। अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले निराला ने कभी किसी का 'दान' स्वीकार नहीं किया। और हां! अधिकार छोड़ा नहीं। अधिकार छीन कर लेना पड़ा तो लिया भी।
मनुष्यवादी थे निराला
शिवकुमार बताते हैं कि समकालीन महादेवी वर्मा की नजर में निराला जी मनुष्यवादी थे। वह उन्हेंं 'परमहंस' भी मानती थी और आज की साहित्यकार ममता कालिया उनमें 'औघड़' का रूप देखती हैं। निराला जी जैसे साहित्यकार ही वास्तविक 'शाह' बनते है- ऐसे ही उन्हेंं साहित्यकार के अलावा इतनी 'पदविया' नहीं मिली। वह इन पंक्तियों को जीने वाले जीव थे- 'जिन्हेंं कछु न चाहिए वे शाहन के शाह..'
बिना इलाज किए वापस लौट आए निराला
राय बताते हैं कि महाप्राण कैसे मनुष्यवादी थे? सुनिए महादेवी से- 'निराला अपने आखिरी समय में बहुत बीमार पड़े। हॢनया का भयंकर दर्द था। हम मिलने पहुंचे तो देखा वह एक फटी चादर पर लेटे हुए कराह रहे थे. अब मैं क्या करूं? घर भी दूर। डॉक्टर से बात की। अस्पताल ले जानेे का इंतजाम किया। भयंकर दर्द के बावजूद निराला जी बोलेेे- यह अस्पताल अमीरों के लिए है गरीबोंं के लिए नहीं। उन्होंने कहा- ऐसी जगह इलाज नहीं करा सकते जहां गरीबों का इलाज ना होता हो और वह वापस लौट आए। निराला जी के मनुष्यवाद का एक दूसरा किस्सा यो है- निराला जी को जीवन के अंतिम दिनोंं में ही किसी ने सुझाव दिया- अपनी किताबोंं की रॉयल्टी रामकृष्ण 'पुत्र' के नाम कर दीजिए। निराला जी नाराज हुए और बोले-'क्यों कर दूं रामकृष्ण के नाम। मेरेे तो बहुत से रामकृष्ण हैं। ' यह कहते हुए उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया और अपना सारा साहित्य समाज को समॢपत कर दिया।

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