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'भैरव प्रकाश' और 'सूर्य प्रकाश' पर श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी को नाज, जानिए क्या है खासियत

श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी अखाड़ा की 805 ईसवी में स्‍थापना के साथ ही भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश नामक भाले इसमें शामिल हैं। रोज पूजन होता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 02 Jan 2019 01:47 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jan 2019 01:47 PM (IST)
'भैरव प्रकाश' और 'सूर्य प्रकाश' पर श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी को नाज, जानिए क्या है खासियत
'भैरव प्रकाश' और 'सूर्य प्रकाश' पर श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी को नाज, जानिए क्या है खासियत

प्रयागराज : श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के महात्माओं को नाज है भैरव प्रकाश व सूर्य प्रकाश पर। आप आश्चर्य में पड़ गए होंगे कि इसमें नाज करने जैसा क्या है? आप संशय में न आएं, यह नाम हैं महानिर्वाणी अखाड़े के भाले के। यह कोई सामान्य भाले नही हैं, बल्कि अखाड़े की वीरता, वैभव, त्याग व परंपरा के प्रतीक हैं। भैरव प्रकाश रात्रि और सूर्य प्रकाश दिन के प्रतीक हैं।

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अखाड़े में दोनों भालों की नित्य होती है पूजा

सनातन धर्म व परंपरा के संवाहक हैं अखाड़े। इनकी वीरता, त्याग व तपस्या की 21वीं सदी में भी कोई सानी नहीं है। हर अखाड़ा की अपनी परंपरा व नियम-कानून है। अखाड़े के अस्त्र-शस्त्र उनके वैभव का प्रतीक हैं। इसी क्रम में श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी अखाड़े में भैरव प्रकाश व सूर्य प्रकाश भालों की प्रतिदिन पूजा होती है। दशहरा पर पूजन भव्यता से की जाती है। अखाड़ा के आराध्य की तरह दोनों भालों का पूजन करने के बाद ही संन्यासी अन्न, जल ग्रहण करते हैं। अखाड़ा की स्थापना 805ई. में हुई तब से दोनों भाले मौजूद हैं।

इनके जरिए अखाड़ों ने मुगलों और अंग्रेजों को चटाई थी धूल

भैरव प्रकाश व सूर्य प्रकाश भाले के जरिए श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी अखाड़ा ने अनेक धर्मयुद्ध लड़े। अखाड़ा के नागा संन्यासियों ने भैरव प्रकाश व सूर्य प्रकाश अनेकों पर मुगलों की सेना को धूल चटाया है। देश में अंग्रेजी हुकूमत आई तब भी जरूरत पडऩे पर इससे युद्ध हुआ।

यह है विशेषता

श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के  सचिव श्रीमहंत जमुना पुरी बताते हैं कि दोनों भालों में 52-52 लोहे के छल्ले लगे हैं जो 52 भैरव के प्रतीक हैं। दोनों भाले कुंभ पर्व पर ही अखाड़ा से बाहर निकलते हैं। शाही स्नान पर इन्हें स्नान कराने के बाद अखाड़ा के महामंडलेश्वर, नागा संन्यासी व अन्य महात्मा डुबकी लगाते हैं।


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