भगवत गीता धार्मिक ही नहीं दार्शनिक ग्रंथ भी
भगवत गीता धाíमक ग्रंथ नहीं है अपितु यह दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें मानवता की भलाई के बारे में बताया गया है। गीता के अट्ठारह अध्यायों में मनुष्य के सभी धर्म और कर्म का ब्यौरा है। इसमें सतयुग से कलयुग तक के मनुष्य के कर्म और धर्म के बारे में चर्चा की गई है। गीता के श्लोकों में मनुष्य जाति का आधार छिपा हुआ है।
फूलपुर : भगवत गीता धाíमक ग्रंथ नहीं है अपितु यह दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें मानवता की भलाई के बारे में बताया गया है। गीता के अट्ठारह अध्यायों में मनुष्य के सभी धर्म और कर्म का ब्यौरा है। इसमें सतयुग से कलयुग तक के मनुष्य के कर्म और धर्म के बारे में चर्चा की गई है। गीता के श्लोकों में मनुष्य जाति का आधार छिपा हुआ है। मनुष्य के लिए क्या कर्म हैं उसका धर्म क्या है, इसका विस्तार स्वयं श्रीकृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की धरती पर किया था।
भगवत गीता दिवस के अवसर पर सत्यप्रकाश द्विवेदी ने बताया कि गीता में ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, कर्म, योग का अति विस्तार से चर्चा किया गया है। भगवत गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन, जो शास्त्र विधि को छोड़कर कार्य करता है वह व्यक्ति न इस लोक में सुख प्राप्त करता है और न ही परलोक में। यदि शास्त्र कहता है तो आप युद्ध करो उसमें विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि सभी वृक्षों की जड़ जमीन के नीचे होती है और संसार रूपी अविनाशी वृक्ष की जड़ ऊपर होती है। इसमें कर्म ही प्रधान है। भगवत गीता में कहा गया है कि जो व्यक्ति कर्म नहीं करता है उसका जीवन व्यर्थ है। इंद्रियों का सेनापति जीवात्मा है। जीवात्मा का कर्म है अपने शुभ कमरें के द्वारा शरीर का उद्धार करना। श्रीमदभगवत गीता में इसी का वर्णन है। मुनष्य को निर्भय बनाती है गीता
द्विवेदी ने बताया कि भगवत गीता मनुष्य को निर्भय बनाती है। भगवत गीता सुनकर परमात्मा के साथ प्रेम करने पर मनुष्य को काल का भय नहीं रहता है। जो भागवत का आश्रय लेता है वे निर्भय बनते हैं। बुद्धि, ज्ञान व जीवन का परिपाक होने पर भगवान के नाम का जाप करते हुए इस ग्रंथ की कथा का श्रवण करने से व्यक्ति निसंदेह हो जाता है। इसके श्रवण मात्र से ही आस्तिक को मार्गदर्शन मिलता है तथा जो नास्तिक वह आस्तिक बन जाता है।
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