श्री मठ बाघम्बरी गद्दी के 24 वें महंत होंगे बलवीर गिरि
वैभव संपन्नता के प्रतीक श्री मठ बाघम्बरी गद्दी की कमान श्रीनिरंजनी अखाडे के बलवीर गिरि के हाथ में होगी।

शरद द्विवेदी, प्रयागराज : वैभव, संपन्नता के प्रतीक श्री मठ बाघम्बरी गद्दी की कमान श्रीनिरंजनी अखाड़ा के उपमहंत बलवीर गिरि को मिलेगी। वह इसके 24 वें महंत होंगे। यह श्री निरंजनी अखाड़े के दशनामी संन्यासी परंपरा के गिरि नामा संन्यासियों की गद्दी है। इसीलिए महंत नरेंद्र गिरि पंच परमेश्वर की सहमति से पुरी नाम छोड़कर गिरि बने थे। संन्यास के बाद उनका नाम नरेंद्र पुरी था।
अकबर के शासनकाल में बाबा बालकेसर गिरि ने 1582 में मठ की स्थापना कराई थी। संगम के पास तब किला बन रहा था। आज जहां हनुमान जी लेटे हुए हैं उधर किले की दीवार बननी थी। खोदाई में विशाल प्रतिमा निकली, मजदूरों ने उठाने का प्रयास किया। वह जितना उठाते प्रतिमा उतना धंसती। अकबर ने इसे अलौकिक शक्ति का प्रताप माना और उस स्थान को छोड़ने का निर्देश दिया। हनुमान जी की पूजा की जिम्मेदारी श्रीनिरंजनी अखाड़ा के श्रीमहंत बाबा बालकेसर को मिली। आसपास के क्षेत्रों में भी सैकड़ों एकड़ जमीन मिली। इसे संरक्षित करने के लिए बाबा बालकेसर ने श्री मठ बाघम्बरी गद्दी की स्थापना कराई। तब से श्री मठ बाघम्बरी गद्दी का महंत ही लेटे हनुमान मंदिर की देखरेख करता आ रहा है। कालांतर में अन्य महंतों ने हरिद्वार, उज्जैन सहित अनेक क्षेत्रों में संपत्तियां बनाई।
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महंत नरेंद्र गिरि ने बढ़ाई ख्याति : डा. बिपिन
विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष डा. बिपिन पांडेय बताते हैं कि बाबा बालकेसर 1610 में हरिद्वार में ब्रह्मलीन हुए। फिर 1610 से 1645 तक श्रीमहंत ईश्वर गिरि, 1645 से 1675 तक श्रीमहंत ओंकार गिरि, 1675 से 1698 तक श्रीमहंत बह्म गिरि, 1698 से 1715 तक श्रीमहंत राघवानंद गिरि, 1715 से 1726 तक श्रीमहंत सिद्धेश्वर गिरि, 1726 से 1736 तक श्रीमहंत त्रिलोक गिरि, 1736 से 1760 तक श्रीमहंत प्रकाशानंद गिरि, 1760 से 1787 तक श्रीमहंत बैजनाथ गिरि, 1787 से 1793 तक श्रीमहंत सूर्यदेव गिरि, 1793 से 1816 तक श्रीमहंत लक्ष्मीनारायण गिरि मठ के महंत रहे। उनके ब्रह्मलीन होने के चार साल तक मठ का कोई महंत नहीं बना। फिर श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने 1820 में श्रीमहंत गोपालानंद को महंत बनाया। वह 1844 तक महंत रहे। इनके बाद 1844 से 1867 तक श्रीमहंत कैलाशपति, 1867 तक श्रीमहंत दुर्गा गिरि, 1867 से 1881 तक श्रीमहंत देवेंद्रानंद गिरि, 1881 से 1899 तक श्रीमहंत नागेश्वर गिरि, 1900 से 1912 तक श्रीमहंत शंकरानंद, 1912 से 1930 तक विजयानंद गिरि, 1930 से 1945 तक श्रीमहंत जगतेश्वर गिरि, 1945 से 1978 तक श्रीमहंत विचारानंद गिरि बाघम्बरी गद्दी के महंत बने। वर्ष 1978 से 2002 तक श्रीमहंत बलदेव गिरि, 2002 से 2004 तक श्रीमहंत भगवान गिरि और 2004 से 2021 तक नरेंद्र गिरि महंत रहे। मठ का भवन जीर्णशीर्ण था। नरेंद्र गिरि ने मठ के भवन व हनुमान मंदिर को भव्य स्वरूप दिलाया।
महंत की रहेगी प्रबंधक की हैसियत
श्री मठ बाघम्बरी गद्दी की संपत्ति को संरक्षित करने के लिए श्रीमहंत बलदेव गिरि की सहमति पर श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने सुपरवाइजरी बोर्ड बनाया था। अखाड़े के पंच परमेश्वर सदस्य होते हैं, जबकि महंत प्रबंधक की हैसियत से काम देखते हैं। महंत के पास मठ की संपत्तियों की बिक्री का अधिकार नहीं होता। महंत के निर्णय को अखाड़े के पंच बदल सकते हैं। नरेंद्र गिरि ने 2007-2008 में इस व्यवस्था को खत्म करा दिया था। सिविल कोर्ट में नरेंद्र गिरि को जीत मिली। इसके बाद उन्होंने मठ की कुछ जमीन बेची थी। इस पर श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने नरेंद्र गिरि को बाहर कर दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामला पहुंचा तो दोनों पक्ष में समझौता हुआ। नरेंद्रगिरि वापस अखाड़े में आ गए। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष बनने के बाद नरेंद्र गिरि का श्रीनिरंजनी अखाड़ा में भी प्रभाव बढ़ गया था। अब निरंजनी अखाड़ा सुपरवाइजरी बोर्ड को पुन: कायम करवाने लिखा-पढ़ी करवाएगा। अखाड़ा सचिव श्रीमहंत रवींद्र पुरी कहते हैं कि श्री मठ बाघम्बरी गद्दी का विकास हमारा लक्ष्य है। नए महंत को उसके अनुरूप काम करना होगा।
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