केवल दूध-बताशे पर प्रसन्न हो जाते हैं बाबा लोकनाथ, आइये जानते हैं कहां है प्रयागराज में भोले बाबा का यह मंदिर
प्राचीन मंदिरों में एक है लोकनाथ मंदिर यहां महादेव अपने लोक कल्याणकारी स्वरूप में हैं। जनश्रुति है कि इनका दर्शन-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मंदिर के व्यवस्थापक और पुजारी पं. गौरीशंकर पांडेय बताते हैं कि मंदिर काफी पुराना है। इसकी स्थापना के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। संगम नगरी को यूं ही तीर्थराज और धर्म क्षेत्र की संज्ञा से विभूषित नहीं किया जाता था। यहां की हर गली मुहल्ले में मंदिर-शिवाला हैं, जिनमें से कई बहुत ही पुराने हैं, इन मंदिरों की मान्यता भी काफी है। दर्शन पूजन को श्रद्धालुओं का यहां पर रोज ही आना-जाना रहता है। धार्मिक पर्वों पर श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है। इन्हीं प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिरों में एक है लोकनाथ मंदिर, यहां महादेव अपने लोक कल्याणकारी स्वरूप में हैं। जनश्रुति है कि इनका दर्शन-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
प्राचीन है लोकनाथ मंदिर, शिव संग विराजमान हैं तमाम देव
मंदिर के व्यवस्थापक और पुजारी पं. गौरीशंकर पांडेय बताते हैं कि मंदिर काफी पुराना है। इसकी स्थापना के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। यहां पर एक संत रहते थे, वे भगवान शिव के उपासक थे। कहते हैं कि रोजाना ही वह बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए काशी (वाराणसी) जाते थे। वृद्ध हो गए तो काशी जाने में दिक्कत होने लगी। एक बार उन्होंने बाबा से कहा कि भगवान अब मैं चल नहीं पाता हूं। कोई ऐसी व्यवस्था कराएं कि प्रयाग में ही आपके दर्शन मिल जाएं। एक दिन उन्होंने देखा तो एक शिवलिंग यहां पड़ा था जिसकी उन्होंने प्रतिष्ठा कराई और लोकनाथ स्वरूप में पूजन करने लगे। दूसरी कहानी है कि आदि शंकराचार्य ने यहां शिवलिंग स्थापित कराया था।
काशी के बाबा विश्वनाथ के जैसा है यहां पर स्थापित शिवलिंग
पुजारी गौरीशंकर पांडेय बताते हैं कि जैसा शिवलिंग बाबा विश्वनाथ मंदिर काशी में है, ठीक वैसा ही शिवलिंग बाबा लोकनाथ मंदिर में है। यह मंदिर पहले बहुत ही छोटा था। कोठरीनुमा यह मंदिर काफी जीर्णशीर्ण हो गया था तो क्षेत्रीय जनों ने सहयोग कर इसका वर्ष 2007 में जीर्णोद्धार कराया और कुछ और देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गईं। मंदिर में बाबा शिव के अलावा श्रीगणेश, राम-जानकी, मां दुर्गा, शेषनाथ, श्रीराधा-कृष्ण भगवान के भी दर्शन होते हैं। यहां के शेषनाग का स्वरूप संगम के किनारे अकबर के किले में स्थापित पातालपुरी मंदिर में स्थापित शेषनाग की मूर्ति भी है। दोनों ही मूर्तियां काफी प्राचीन बताई जाती हैं।
महादेव शिव को लगता है यहां पर दूध-बताशे का भोग
लोकनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को केवल दूध-बताशे का भोग लगता है। इसी से बाबा भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। पुजारी के मुताबिक बाबा के 41 दिन लगातार दर्शन करने वाले और दूध-बताशे का प्रसाद चढ़ाने वाले भक्त से बाबा बहुत प्रसन्न होते हैं व उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
शिवरात्रि व अन्य पर्वों पर होता है विशेष श्रृंगार, भंडारा
शिवरात्रि, बसंत पंचमी, सावन के सोमवार को और नवरात्र में बाबा का विशेष श्रृंगार किया जाता है। इन दिनों में यहां पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। यहां पर कर्ण छेदन, मुंडन के अलावा रुद्राभिषेक भी संपन्न होता है। त्योहारों पर भक्त भंडारा का आयोजन भी करते हैं लेकिन मंदिर के पास स्थान कम होने के कारण लोकनाथ धर्मशाला में आयोजित किया जाता है। शिवरात्रि के रोज लोकनाथ व्यायामशाला से शिव की बारात भी निकलती है जो लोकनाथ मंदिर से होकर गुजरती है। मंदिर सुबह 5.50 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक और शाम पांच बजे से रात 10 बजे तक भक्तों के दर्शनार्थ खुला रहता है।
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