भीम का गदा भी कहा जाता था प्रयागराज में यमुना तट स्थित अकबर के किले का अशोक स्तंभ
अशोक स्तंभ को कभी भीम का गदा भी कहा जाता था। इसकी लंबाई चौड़ाई देखकर लोगों ने महाभारत काल से जोड़ दिया था। उस दौरान अशोक स्तंभ पर क्या लिखा है यह कोई पढ़ नहीं पाया था। किले में ही यह स्तंभ कई बार गिराया और खड़ा किया गया था।

प्रयागराज, जेएनएन। अकबर के बनाए गए इलाहाबाद किले में स्थित अशोक स्तंभ को कभी 'भीम का गदा भी कहा जाता था। इसकी लंबाई चौड़ाई देखकर लोगों ने महाभारत काल से जोड़ दिया था। उस दौरान अशोक स्तंभ पर क्या लिखा है यह कोई पढ़ ही नहीं पाया था। किले में ही यह स्तंभ कई बार गिराया और खड़ा किया गया था। वर्तमान अवस्था में यह स्तंभ सन 1838 मेें खड़ा किया गया है। अंग्रेज इतिहासकार जेम्स प्रिंसेस ने सबसे पहले इसकी स्थिति और अभिलेख पर अपना विचार प्रकट किया था। उन्होंने बहुत प्रयास से पंडित राधाकांत शर्मा की सहायता से इसके कुछ लेखों को पढ़ा। इसके बाद यह तय हुआ कि यह स्तंभ सम्राट अशोक का बनवाया हुआ है।
प्रयागराज में ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण वस्तु सम्राट अशोक का स्तंभ
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.जेएन पाल बताते हैं कि प्रयागराज में ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण वस्तु सम्राट अशोक का स्तंभ है। यह एक पत्थर का छिला हुआ गोला खंभा है। जिसका भार 493 कुंटल और लंबाई 35 फीट है। नीचे का व्यास तीन फीट है। खंभे के आकारनुमा यह स्तंभ ऊपर जाकर क्रमश: कम होते दो फीट दो इंच रह गया है। इसके ऊपर का सिर नहीं है। संभवत: अशोक के अन्य स्तंभों के समान यह घंटाकार था और उस पर सिंह का सिर बना रहा होगा। प्रो.पाल बताते हैं कि पहले यह स्तंभ सम्राट अशोक की आज्ञा से कौशांबी में ईस्वी सन से 232 वर्ष पहले खड़ा किया गया था। अब यह प्रयागराज किले में है। हालांकि इस स्तंभ को कौन उठा कर कब लाया। इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। वैसे इतिहासकारों का मत रहा है कि फीरोजशाह कौशांबी से इस स्तंभ को लाया था क्योंकि वह ऐसे कई स्तंभ दिल्ली ले गया था। फीरोजशाह का समय सन 1351 से 1388 तक है। इस बीच किसी समय यह स्तंभ किले में लाया गया होगा।
स्तंभ पर अशोक के छह आदेश
इतिहासकार प्रो.अविनाश चंद्र मिश्र बताते हैं कि स्तंभ पर सम्राट अशोक, उनकी सम्राज्ञी, समुद्रगुप्त और जहांगीर के खुदवाए हुए अभिलेख हैं। जब यह स्तंभ पृथ्वी पर पड़ा था तब उस समय के बहुत से यात्रियों के नाम और सत संवत इस पर अंकित हैं। इस स्तंभ में अशोक के छह आदेश हैं। सम्राट अशोक ने इसे अपनी प्रजा के हित के लिए अंकित कराए थे। इसकी भाषा प्राकृत अर्थात जनता के बीच बोलचाल की भाषा और लिपि ब्राह्मी है। प्रो.मिश्र बताते हैं कि स्तंभ पर तीन शासकों के लेख खुदे हुए हैं। यह पुरातात्विक समय का उत्कृष्ट नमूना है। वैसे बौद्ध काल में प्रयाग की महत्व का प्रमाण अशोक स्तंभ के ऊपर उत्कीर्ण अभिलेखों से भी मिलता है। स्तंभ पर अशोक की दूसरी महारानी कारूवाकी की ओर से कौशांबी के एक बौद्ध विहार को आम की बगिया दान में देने का उल्लेख है। समुद्र गुप्त के शिला लेखक हरिषेण ने संस्कृत भाषा और गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में 56 पंक्तियों में प्रयाग प्रशस्ति उत्कीर्ण है। स्तंभ में समुद्र गुप्त की उत्तर से दक्षिण तक की दिग्विजयों, विदेश नीति आदि की जानकारी लिखी है।
स्तंभ पर सम्राट जहांगीर के तख्त पर बैठने का समय है दर्ज
प्रो.अविनाश मिश्र बताते हैं कि स्तंभ पर 1605 में मुगल सम्राट के तख्त पर बैठने की बात का उल्लेख हे। 1800 ई.में किले की प्राचीर को बनाने के लिए स्तंभ को गिरा दिया गया था। 1838 मेें अंग्रेजों ने इसे पुन: खड़ा किया था। यह स्तंभ मीरजापुर के लाल बलुआ पत्थरों को तराश कर बनाया गया है।
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