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    Amarkant Birth Anniversary: अब कई भाषाओं में पढ़ी जा सकेंगी अमरकांत की अमर और लोकप्रिय रचनाएं

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Thu, 30 Jun 2022 04:19 PM (IST)

    एक जुलाई 1925 के बलिया जिले के नगरा तहसील के भगमलपुर गांव में जन्मे अमरकांत 1946 में इंटर पास करके प्रयागराज आए थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए में दाखिला लेकर हिंदू बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। सहपाठियों के सहयोग से हस्तलिखित पत्रिका निकाली

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    एक जुलाई को बलिया में जन्मे अमरकांत ने प्रयागराज में ली थी अंतिम सांस

    प्रयागराज, जागरण संवाददाता। 1955 में कहानी 'डिप्टी कलेक्टरी' से हिंदी साहित्यजगत में प्रसिद्धि पाने वाले अमरकांत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ज्ञानपीठ, सोवियत लैंड नेहरु जैसे अनेक सम्मान से सम्मानित अमरकांत के उपन्यास व कहानियां पाठकों पर अमिट छाप छोड़ती हैं। अब गैर हिंदी भाषी भी उनकी रचनाएं पढ़ेंगे। अमरकांत के उपन्यास इन्हीं हथियारों से... का मराठी लेखक धर्मा पुणेकर ने याचि शस्त्रांणि नाम से अनुवाद किया है। कहानी बहादुर का अंग्रेजी में अनुवाद किया जा रहा है। अमरकांत के पुत्र साहित्यकार अरविंद बिंदू बताते हैं कि पिता जी की कई कहानियों का तमिल, तेलुगू व मराठी भाषा में अनुवाद कराने के साथ राजस्थान के पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात चल रही है।

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    एक जुलाई को बलिया में जन्मे और प्रयागराज में ली अंतिम सांस

    एक जुलाई 1925 के बलिया जिले के नगरा तहसील के भगमलपुर गांव में जन्मे अमरकांत 1946 में इंटर पास करके प्रयागराज आए थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए में दाखिला लेकर हिंदू बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। सहपाठियों के सहयोग से हस्तलिखित पत्रिका निकाली। बीए करने के बाद आगरा जाकर दैनिक पत्र 'सैनिक' से जुड़ गए। वहीं, प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े। प्रलेस की बैठक में सुनाने के लिए पहली कहानी 'इंटरव्यू' लिखी। यहीं से उनकी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत हुई। कुछ वर्ष बाद वापस प्रयागराज आए और यहीं के होकर रहे गए। उन्होंने 17 फरवरी 2014 को प्रयागराज में अंतिम सांस ली।

    आखिरी व्यक्ति बना नायक

    सरस्वती पत्रिका के संपादक रविनंदन सिंह के अनुसार अमरकांत 1942 में कुछ समय के लिए पढ़ाई छोड़कर महात्मा गांधी के प्रभाव में भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे। वह आजादी के बाद असंतोष एवं मोहभंग की पीढ़ी के रचनाकार हैं, जो गांधी के सुराज को महज नारा बनते देख रहे थे। जिस आखिरी आदमी तक सुराज को पहुंचाने का सपना गांधी ने देखा था, वही आखिरी आदमी अमरकांत की कथा का नायक बना।

    प्रेमचंद की परंपरा को बढ़ाया आगे

    वरिष्ठ आलोचक प्रो. राजेंद्र कुमार कहते हैं कि अमरकांत ने प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाया है। उनकी रचनाओं में आम व्यक्ति की वेदना स्पष्ट महसूस होती है। 'सूखा पत्ता', 'आकाश पक्षी', 'काले उजले दिन', 'सुन्नर पांडे की पतोहू', 'इन्हीं हथियारों से' इत्यादि प्रमुख उपन्यास थे। 'इन्हीं हथियारों से' के लिए ही उन्हें साल 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। 'ज़िंदगी और जोंक', ''देश के लोग', 'मौत का नगर', ''एक धनी व्यक्ति का बयान'', 'दुख-सुख का साथ' आदि प्रमुख कहानी संग्रह हैं।