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    चार अरब वर्ष पुराने टीटीजी पत्थर से खोजेंगे पृथ्वी की उत्पत्ति का रहस्‍य, प्रयागराज विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर को मिली जिम्‍मेदारी

    By Brijesh SrivastavaEdited By:
    Updated: Fri, 08 Jul 2022 03:53 PM (IST)

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। इससे बुंदेलखंड में खनिजों के मिलने की संभावना भी बढ़ जाएगी। इस काम के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ...और पढ़ें

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    पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को पृथ्‍वी की उत्‍पत्ति का सटीक आकलन करेंगे।

    प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पृथ्वी की उत्पत्ति के समय के कुछ बचे भू-भागों में से एक बुंदेलखंड क्रेटन से चार अरब वर्ष पुराना पत्थर खोजेंगे। ट्रोनालाइट ट्रोंजेमाइट ग्रानोडायरेक (टीटीजी) नामक पत्थर के नमूनों का अध्ययन कर विज्ञानी पृथ्वी की उत्पत्ति का सटीक आकलन करेंगे। साथ ही काल और अंतराल में उनका स्थानिक-अस्थायी विकास स्थापित कर सकेंगे।

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    बुंदेलखंड में खनिज क मिलने की बढ़ेगी संभावना : इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। इससे बुंदेलखंड में खनिजों के मिलने की संभावना भी बढ़ जाएगी। इस काम के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पृथ्वी एवं ग्रह विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जयंत कुमार पाती को तीन वर्ष का प्रोजेक्ट सौंपा है। 70.73 लाख की इस शोध परियोजना के जरिए वे तीन साल तक शोध करेंगे।

    विश्‍वविद्यालय के प्रो. जयंत को मिली है जिम्‍मेदारी : प्रो. जयंत कुमार पाती ने बताया कि जिस समय पृथ्वी उत्पत्ति हुई थी। उस समय कुछ ही भूभाग बचे हैं। ज्यादातर आस्ट्रेलिया और साउथ इंडिया में हैं और इसमें बुंदेलखंड भी शामिल है। अभी तक जो बुंदेलखंड से सबसे पुराना टीटीजी पत्थर मिला है, वह 3.5 अरब वर्ष पुराना है।

    टीटीजी की सटीक उम्र पता चलेगी : बुंदेलखंड के महोबा, झांसी और बबीना में कभी बहुत बड़ा समुंदर और ज्वालामुखी हुआ करते थे। ऐसे में इस क्षेत्र में खनिज भी मिलने की संभावना है। उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड क्रेटन से टीटीजी की सटीक उम्र का आकलन किया जाएगा। इसके लिए कम से कम चार अरब साल पुराना टीटीजी पत्थर की जरूरत होगी क्योंकि पृथ्वी की उत्पत्ति 4.5 अरब साल पहले ही मानी जाती है। इस परियोजना में टीटीजी आउटक्राप्स और विभिन्न टेक्टोनिक क्षेत्रों से एकत्र किए गए पत्थरों के नमूनों पर पेट्रोग्राफिक, जियोकेमिकल और जियोक्रोनोलाजिकल अध्ययन किए जाएंगे। इसके साथ ही भारत में संभावित हेडियन क्रस्ट का पता लगाया जाएगा।