Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अमित शाह के मामले में कहा- चुनावी घोषणापत्र के वायदों को लागू कराने का कोई कानून नहीं

    By Brijesh SrivastavaEdited By:
    Updated: Fri, 18 Mar 2022 08:07 AM (IST)

    Allahabad High Court याचिका में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहने के लिए भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई थी। कहा गया था कि मतदाताओं को लुभाया गया था।

    Hero Image
    Allahabad High Court कोर्ट ने कहा कि चुनावी वायदे बाध्यकारी नहीं, लागू न करने पर आपराधिक केस नहीं हो सकता।

    प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणापत्र चुनाव के दौरान उनकी नीति, दृष्टिकोण, वादों और प्रतिज्ञा का बयान है, जो बाध्यकारी नहीं है और इसे कानून की अदालतों के माध्यम से लागू नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहने पर राजनीतिक दलों को प्रवर्तन अधिकारियों के शिकंजे में लाने के लिए किसी भी कानून के तहत कोई दंडात्मक प्रविधान नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश पाठक ने खुर्शीदुरहमान एस रहमान की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग

    याचिका में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहने के लिए भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई थी। कहा गया था कि तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अध्यक्षता में  मतदाताओं को लुभाया गया था। वे चुनाव घोषणापत्र-2014 में किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहे इसलिए उन्होंने धोखाधड़ी, आपराधिक न्यास भंग, मानहानि,कपट, धोखा देने और लुभाने का अपराध किया है।

    याची की अर्जी व निगरानी अधीनस्‍थ अदालतों ने खारिज की थी

    इससे पहले इसी मांग में याची की अर्जी व निगरानी अधीनस्थ अदालतों ने खारिज कर दी थी। याचिका में निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चुनाव के भ्रष्ट आचरण को अपनाने के लिए पूरे राजनीतिक दल को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने कहा कि अधीनस्थ अदालतों के निर्णय के अवलोकन के बाद यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किए बगैर सरसरी तौर पर  केस तय किया है। किसी भी संज्ञेय अपराध का न होना भी सर्वोपरि शर्तों में से एक है, जिसने अधीनस्थ अदालतों को सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए जांच के लिए निर्देश देने से रोका।