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    Allahabad High Court: इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की नियुक्ति की वैधता पर सवाल

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Thu, 14 Jul 2022 10:59 PM (IST)

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की पद पर नियुक्ति की अधिकारिता को चुनौती दी गई है।कोर्ट से अधिकार पृच्छा याचिका जारी करने ...और पढ़ें

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    को -वारंटो (अधिकार पृच्छा) जारी करने की मांग, याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति, निर्णय सुरक्षित

    प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की पद पर नियुक्ति की अधिकारिता को चुनौती दी गई है।कोर्ट से अधिकार पृच्छा याचिका जारी करने की मांग की गई है। याची का कहना है कि संगीता श्रीवास्तव कुलपति पद पर नियुक्ति की योग्यता नहीं रखती हैं इसलिए उनको कुलपति पद से हटाया जाय।

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    सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने वर्चुअल मोड में की बहस

    उत्तराखंड के आरटीआइ एक्टिविस्ट नवीन प्रकाश नौटियाल की जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने की। विश्वविद्यालय के अधिवक्ता क्षितिज शैलेंद्र ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की और कहा याची ने अपनी पहचान की अधूरी जानकारी दी है। याचिका दायर करने की उसकी अधिकारिता पर आपत्ति की। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बहस की।कोर्ट ने याचिका की पोषणीयता के मुद्दे पर निर्णय सुरक्षित कर लिया है।

    वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने वर्चुअल मोड में बहस की। याची की तरफ से बहस शुरू होने से पहले ही कुलपति की तरफ से उपस्थित अधिवक्ता क्षितिज शैलेंद्र ने इस जनहित याचिका की पोषणीयता को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया। विपक्ष की तरफ से कहा गया कि याची द्वारा दाखिल जनहित याचिका पोषणीय नहीं है। कहा गया कि सेवा मामले में जनहित याचिका पोषणीय नहीं है तथा याची ने अपने बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा है। कहा यह भी गया कि कुलपति की नियुक्ति के खिलाफ दाखिल को -वारंटो की याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट रूल्स के मुताबिक ग्राह्य नहीं है।

    याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपने बहस में तर्क दिया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव की नियुक्ति अवैध है और विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस के अनुसार नियुक्ति नहीं की गई है। कहा गया कि प्रोफेसर श्रीवास्तव विश्वविद्यालय की कुलपति बनने की अर्हता नहीं रखती हैं। उनके पास न्यूनतम 10 वर्ष की प्रोफेसर की योग्यता भी नहीं है। कोर्ट को बताया गया कि वह वर्ष 1989 में गृह विज्ञान विषय की अतिथि प्रवक्ता नियुक्त हुई। प्रवक्ता पद की अर्हता न होने के बावजूद नियुक्ति की गई। 2002 में कुलपति ने नियमित करने से इन्कार कर दिया जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रवक्ता नियुक्त हुई। इस आदेश के खिलाफ एसएलपी भी खारिज हो चुकी है। 2015 में वह प्रोफेसर बनी और फरवरी 2020 तक हेड ऑफ डिपार्टमेंट के रूप में काम करती रही। बहस किया गया कि योग्यता की कमी के कारण उनका इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्ति गलत व गैरकानूनी है। कोर्ट को इस संबंध में संबंधित प्रावधानों से भी याची की तरफ से अवगत कराया गया।

    जवाब में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की तरफ से कहा गया की प्रोफेसर श्रीवास्तव इसके पहले रज्जू भैया राज्य विश्वविद्यालय में भी बतौर कुलपति 2019से नियुक्त रही हैं। ऐसे में उनकी योग्यता को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना गलत है। उनकी नियुक्ति को इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी वैध ठहराया है। कहा गया कि कुलपति की नियुक्ति के लिए 10 वर्ष प्रोफेसर के रूप में काम करना आवश्यक नहीं है।

    कोर्ट ने याची अधिवक्ता से पूछा कि मूल गोपनीय दस्तावेज याची को कैसे मिला।जिसका जवाब नहीं दे सके। विश्वविद्यालय के अधिवक्ता ने कहा कि दाखिल दस्तावेज सही है गलत ,इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती। कुलपति की नियुक्ति विश्वविद्यालय परिनियमावली के तहत की गयी है।

    कोर्ट ने टिप्पणी की कि तीस साल बाद मूल नियुक्ति की वैधता पर सवाल खड़े किए गए हैं।अभी तक चुनौती क्यों नहीं दी गई।

    कोर्ट ने कहा कि वह याचिका की पोषणीयता पर अपना फैसला सुनायेगी।