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लाउडस्पीकर से अजान पर पाबंदी सही, यह इस्लाम का धार्मिक भाग नहीं : इलाहाबाद हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने कहा- ध्वनि प्रदूषण मुक्त नींद का अधिकार जीवन के मूल अधिकारों का हिस्सा है। किसी को भी अपने मूल अधिकारों के लिए दूसरे के अधिकारों का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 15 May 2020 01:19 PM (IST)Updated: Sat, 16 May 2020 12:07 AM (IST)
लाउडस्पीकर से अजान पर पाबंदी सही, यह इस्लाम का धार्मिक भाग नहीं : इलाहाबाद हाई कोर्ट

प्रयागराज, जेएनएन।  इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मस्जिद से अजान मामले में अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकर से अजान देना इस्लाम का धार्मिक भाग नहीं है। यह जरूर है कि अजान देना इस्लाम का धार्मिक भाग है। इसलिए मस्जिदों से मोइज्जिन बिना लाउडस्पीकर अजान दे सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण मुक्त नींद का अधिकार व्यक्ति के जीवन के मूल अधिकारों का हिस्सा है। किसी को भी अपने मूल अधिकारों के लिए दूसरे के मूल अधिकारों का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि जिलाधिकारियों से इसका अनुपालन कराएं। 

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यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता व न्यायमूर्ति अजित कुमार की खंडपीठ ने गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी व फर्र्रुखाबाद के सैयद मोहम्मद फैजल की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। बता दें कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन घोषित है। उत्तर प्रदेश में सभी प्रकार के आयोजनों व एक स्थान पर भीड़ एकत्र होने पर रोक लगायी गई है। इसके लिए लाउडस्पीकर बजाने पर भी रोक है।

गाजीपुर के जिलाधिकारी ने मस्जिदों से लाउडस्पीकर से अजान करने पर रोक लगाने का मौखिक निर्देश दिया था। याची गाजीपुर से बहुजन समाज पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी ने इसका विरोध किया। उन्होंने रमजान माह में लाउडस्पीकर से मस्जिद से अजान की अनुमति न देने को धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की मांग की थी। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करके सरकार का पक्ष पूछा था। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था।

जब लाउडस्पीकर नहीं था तब भी होती थी अजान 

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसले में साफ कर दिया कि लाउडस्पीकर से अजान पर रोक सही है। कोर्ट ने कहा कि जब लाउडस्पीकर नहीं था तब भी अजान होती थी। उस समय भी लोग मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए एकत्र होते थे। ऐसे में यह नहीं कह सकते कि लाउडस्पीकर से अजान रोकना अनुच्छेद 25 के धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। 

दूसरे को जबरन सुनाने का अधिकार किसी को नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 स्वस्थ जीवन का अधिकार देती है। वाक व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी को भी दूसरे को जबरन सुनाने का अधिकार नहीं देती। निश्चित ध्वनि से अधिक तेज आवाज बिना अनुमति बजाने की छूट नहीं है। रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक स्पीकर की आवाज पर रोक का कानून है। कोर्ट के फैसले पर नियंत्रण का सरकार को अधिकार है। 

मुस्लिम धर्मगुरु बोले...

शहर काजी, जामा मस्जिद चौक शफीक अहमद शरीफी (मुफ्ती) ने कहा कि रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक लाउडस्पीकर के उपयोग पर पहले से पाबंदी लगी है। हम उसका पालन कर रहे हैं। यही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी कहा है, अजान पर कोई रोक नहीं है। बाकी कोर्ट का निर्णय देखने के बाद तय करेंगे। 

हाई कोर्ट के फैसले से बरेलवी उलमा सहमत नहीं

बरेली : हाई कोर्ट ने लाउडस्पीकर पर अजान को लेकर स्थिति साफ की है। उसे इस्लाम का हिस्सा नहीं माना। इस फैसले पर दरगाह आला हजरत से जुड़ी प्रमुख शख्सीयत की तरफ से प्रतिक्रिया नहीं आई। हां, अन्य बरेलवी उलमा फैसले से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि वह सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। हाई कोर्ट के इस अहम फैसले को लेकर खानकाह नियाजिया के प्रबंधक शब्बू मियां नियाजी का कहना था कि वह इस सिलसिले में सज्जादानशीन से बात करके अपनी बात रखेंगे।

ऑल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां का जवाब था कि इस मामले में उलमा से बात की जानी चाहिए। नबीरे आला हजरत के कारी तसलीम रजा खां ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले की कॉपी लेकर उसका अध्ययन किया जाएगा। उसके बाद फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। शहर इमाम मुफ्ती खुर्शीद आलम ने कहा कि लाउडस्पीकर पर अकेले मस्जिदों से अजान नहीं दी जाती। दूसरे धर्मस्थलों से भी सुबह-शाम लाउडस्पीकर का इस्तेमाल धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है।


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