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    आप भी जानें इतिहासकारों की जुबानी, इलाहाबाद और यहां के मोहल्‍लों के नामकरण का रोचक है इतिहास Prayagraj News

    By Brijesh Kumar SrivastavaEdited By:
    Updated: Fri, 08 Jan 2021 02:58 PM (IST)

    इतिहासकार प्रो. अविनाश चंद्र मिश्र के अनुसार प्रयागराज के अधिकांश इलाके या मोहल्लों के नाम मुगलों ने धार्मिक भावना से जोड़ते हुए रखा। अकबर के उत्तराधिकारियों में औरंगजेब की ख्याति कट्टर इस्लामी शासक की थी। संत मलूकदास काे मीर राघव भी था। इसके नाम से सराय मीर खां मोहल्ला बसा।

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    इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर के समय इलाहाबाद ( अब प्रयागराज) 'फकीराबाद' के नाम से भी जाना जाता था।

    प्रयागराज, जेएनएन। गंगा-यमुना के तट पर होने के कारण प्रयागराज ( पुराना इलाहाबाद) मुगल एवं अंग्रेज शासकों को काफी रास आया था। अकबर ने गंगा के प्रवाह के मोड़ के लिए एक बांध बनवाया था। उसके बाद यहां किले का निर्माण किया था। मुगल काल व उससे पहले प्रयागराज की ख्याति धर्म और मजहबी रूप में ज्यादा थी। इतिहासकारों की मानें तो अकबर ने शहर के मंदिरों, मठों, अखाड़ों, दरगाहों, संतों, फकीरों, सूफियों व औघड़ों को देखकर पहले इसका नाम फकीराबाद रखा था। सरकारी गजेटियर के अनुसार कुछ समय तक इसे इलाहाबास के नाम से जाना गया। इसी वजह से अकबर ने इस नगर को अल्लाह से आबाद कहा जो बाद इलाहाबाद हो गया। अब इसका नाम प्रयागराज हो गया है।

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    सराय मीर खां मोहल्ला अब लोकनाथ है

    इतिहासकार प्रो. अविनाश चंद्र मिश्र बताते हैं कि प्रयागराज के अधिकांश इलाके या मोहल्लों के नाम मुगलों ने धार्मिक भावना से जोड़ते हुए रखे थे। अकबर के उत्तराधिकारियों में औरंगजेब की ख्याति कट्टर इस्लामी शासक की थी। संत मलूकदास ने उसका एक नाम मीर राघव रखा था। इसी के नाम पर चौक के बगल में सराय मीर खां मोहल्ला बसा। समय के साथ इसका नाम बदल गया। अब यह इलाका भगवान शंकर के नाम पर लोकनाथ कहा जाने लगा। यह मोहल्ला चौक के व्यस्तम इलाके में हैं। यहां से रोजाना करोड़ों का कारोबार होता है। प्रयागराज शहर एवं देहात से हजारों लोग प्रतिदिन यहां खरीदारी के लिए आते हैं। मीरापुर और मीरगंज मोहल्ले भी संभवत: इसी नाम पर बने थेे। हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता है।

    आज भी इसे लोग रामबाग के नाम से ही जानते हैं

    प्रो. मिश्र बताते हैं कि प्रयागराज की प्रसिद्ध पथरचट्टी की रामलीला कराने के लिए डेढ़ सौ वर्ष पहले यहां के एक बड़े कारोबारी सेठ लाला दत्ती लाल कपूर ने मुट्ठीगंज के आगे कई बीघे जमीन खरीदकर उसका नाम रामबाग रखा। यहीं एक मैदान में रामलीला के मंचन के लिए स्थान तय किया। तब खुले में रामलीला का मंचन होता था। अब रामलीला का मंचन एक परिसर में होने लगा है। समय के साथ रामलीला मंचन के लिए ली गई जगह के आस पास लोग रहने लगे। अब यह एक विशालकाय इलाके में बदल गया है। हालांकि इसका नाम परिवर्तित नहीं हुआ। आज भी इसे लोग रामबाग के नाम से ही जानते हैं।

    हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर बसे हैं कई मोहल्ले

    प्रयागराज में हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर कुछ मोहल्ले बसे हैं। इनमें कल्याणी देवी, अलोपी देवी और सूर्यकुंड जैसे प्राचीन मंदिरों के नाम पर कल्याणी देवी, अलोपीबाग और सूरजकुंड मोहल्ले बने। इतिहास के शिक्षक जय प्रकाश यादव बताते हैं कि कल्याणी देवी और अलोपी देवी में प्रतिष्ठित देवी मंदिर हैं। जहां बारहों माह भक्तों की भीड़ रहती हैं। मंदिर के आसपास बड़ी आबादी बस गई है। संगम तट के करीब होने के कारण अलोपी देवी मंदिर का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यहां सती देवी अलोप हो गई थीं। सोमवार एवं शुक्रवार को इस मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शन पूजन को आते हैं। सूरजकुंड मोहल्ले में भगवान भोलेनाथ का मंदिर है। ऐसे ही अत्रि ऋषि और अनसुइया आश्रम होने की वजह से अतरसुइया मोहल्ला बसा। इस मोहल्ले में व्यापारियों का बड़ा वर्ग निवास करता है।

    गायों का मेला लगने के कारण गऊघाट मोहल्ला बसा

    प्रयागराज के एक बुजुर्ग पंडित लल्लू महराज के अनुसार गंगागंज एवं बेनीगंज मोहल्ले डेढ़ सौ वर्ष पहले गंगेश्वर नाथ महादेव के भक्त गंगाराम तिवारी एवं पंडित बेनी प्रसाद के नाम पर बसाए गए थे। इसी प्रकार प्राचीन समय में यमुना के किनारे गऊ यानी गायों का मेला लगने के कारण गऊघाट मोहल्ला बसा। यह सभी मोहल्ले पुराने शहर में आते हैं। चौक के नजदीक होने के कारण इस इलाके में बड़ा कारोबार होता है।

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