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    पाथर रूप धर भरद्वाज मुनि अबहूं बसहिं प्रयागा

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    Updated: Sat, 07 Jan 2012 06:18 PM (IST)

    विजय यादव, इलाहाबाद : भगवान भाष्कर मकर राशि में प्रवेश करने की ओर अग्रसर हैं, जिसके पुण्य प्रभाव से 84 करोड़ देवी-देवताओं संग दैत्यों, किन्नरों व मनुष्यों का महासमंदर प्रयाग में हिलोरे मारने को आतुर है। इन्हें पुण्य की एक डुबकी की लालसा है, तो भरद्वाज मुनि आश्रम के दर्शन की अभिलाषा। यह वही आश्रम है जिसका वर्णन श्रीरामचरितमानस के बालकांड की इस चौपाई में है, 'भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा।'

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    रामायण की इन पंक्तियों को आत्मसात करने के बाद प्रयाग आने वाले हर श्रद्धालु के कदम खुद ब खुद भरद्वाज आश्रम की ओर मुड़ जाते हैं। यह ललक स्वाभाविक भी है। आश्रम पहुंचकर वहां का नजारा देखने के बाद जिज्ञासु मन कह उठता है, 'पाथर रूप धर भरद्वाज मुनि अबहूं बसहिं प्रयागा'। जी हां, आश्रम में पत्थर रूप में ऋषि-मुनियों का सानिध्य पुण्य के करीब ले जाता है। पवित्रता का अहसास करता है। भरद्वाज मुनि, कपिल मुनि, व्यास मुनि, माता कौशल्या से लेकर गुरु याज्ञवल्क्य मुनि का दर्शन लाभ आंखों से उतरकर आत्मा की प्यास की तृप्त करता है।

    श्रीरामचरितमानस में भरद्वाज मुनि आश्रम के जिस मनोरम रूप का वर्णन मिलता है, वह अब यहां नहीं है। कभी आश्रम से होकर गंगाजी का प्रवाह होता था, तो घने वन की छाया में पशु-पक्षी स्वच्छंद विचरण करते थे, अब न वन हैं, न गंगा का अंतहीन आंचल। पेड़ों के बड़े झुरमुटों का स्थान कंक्रीट के मकानों ने ले लिया है। शिवरूप धरे भारद्वाज यशवर महादेव का दर्शन मन मंदिर को पुलकित करने वाला है, तो प्राचीन मंदिर में व्यास मुनि, माता कौशल्या और कपिल मुनि संग ऋषि प्रतिमाओं का सानिध्य मन-मस्तिष्क में कई रेखाचित्र खींचता है, जो राम के युग में ले जाती हैं, यह प्रताप कहीं और नसीब नहीं होता। वनगमन के दौरान प्रभुश्री राम माता सीता और भ्राता लक्ष्मण संग यहां पधारे थे, वे जहां ठहरे थे, वह गुफा आज भी यहां है। राम के प्रति भरद्वाज मुनि का अनुराग जगजाहिर है। इलाहाबाद के बालसन चौराहे के निकट व आनंद भवन के सामने भरद्वाज ऋषि के इस पवित्र स्थल पर आने के बाद अगर कुछ अखरता है, तो इसके प्रति सरकारी उपेक्षा का भाव। हालांकि, संसाधनों के अभाव के बावजूद इसके देखभाल में लगे परिवार यथासाम‌र्थ्य व्यवस्था में लगे हैं। प्रत्येक सोमवार को मंदिर में दीपों का श्रृंगार होता है, जिसका नजारा अलौकिक है। माघ मेले के लिए कल्पवासियों का आगमन शुरू हो चुका है और इसी के साथ आश्रम में आने वाले भक्तों की संख्या भी बढ़ रही है। रामचरितमानस में कहा भी गया है, 'तहां होई मुन रिषय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथ राजा।। मज्जहिं प्रात समेत उछाहा। कहहिं परस्पर हरि गुन गाहा।।'

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