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    डाल्फिन के आहार में प्रोटीन की कमी, छोटी मछलियों के मरने से जीवन हो रहा मुश्किल

    By Ankur TripathiEdited By:
    Updated: Tue, 16 Nov 2021 07:30 AM (IST)

    लाकडाउन के बाद तमाम फैक्ट्रियां पहले की तरह संचालित की जाने लगी हैैं। प्रदूषित जल नदियों में आ रहा है इससे जलचरों के लिए स्थितियां प्रतिकूल हो चली हैं। खासकर डाल्फिन के आहार में प्रोटीन की कमी आई है। आशंका है कि यह परिस्थितियां प्रजनन चक्र को कम करेंगी।

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    गांगेय डाल्फिन की खुराक में प्रोटीन की कमी आ रही है। उनका प्रजनन चक्र प्रभावित होगा

    अमलेन्दु त्रिपाठी, प्रयागराज। कोरोना महामारी के संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए लगाया गया लाकडाउन भले ही आर्थिक गतिविधियों के लिए नुकसानदेह रहा हो लेकिन यह पर्यावरण की दृष्टि से फायदेमंद था। अब लाकडाउन खत्म होने के साथ ही स्थितियां बदलने लगी हैैं। आर्थिक गतिविधियां रूटीन पर आ रही हैैं। तमाम फैक्ट्रियां पहले की तरह संचालित की जाने लगी हैैं। प्रदूषित जल नदियों में आ रहा है। इससे जलचरों के लिए स्थितियां प्रतिकूल हो चली हैं। खासकर डाल्फिन के आहार में प्रोटीन की कमी आई है। आशंका है कि यह परिस्थितियां प्रजनन चक्र को कम करेंगी।

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    डाल्फिन के बच्चे वातावरण में खुद को ढाल नहीं पा रहे

    हाल में हुए अध्ययन के बाद एंग्लो बंगाली इंटर कालेज स्थित गांगेय डाल्फिन रीजनल सेंटर के विज्ञानी डा. प्रसन्न कुमार घोष बताते हैैं कि बीते दो साल में लाकडाउन के दौरान गंगा जल काफी साफ हुआ था। आक्सीजन का स्तर एक लीटर में न्यूनतम पांच मिलीग्राम होना चाहिए जो कि 8.6 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गया था। यह आंकड़ा उत्साहजनक था। इसी तरह बायोलाजिकल आक्सीजन डिजाल्व (बीओडी) तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए जो लाकडाउन में 2.7 मिलीग्राम था, अब यह आंकड़ा तीन मिलीग्राम हो चुका है। सतर्क होने की जरूरत है।

    झींगा व अन्य छोटी मछलियां ही डाल्फिन का मुख्य आहार

    गंगाजल साफ हुआ तो डाल्फिन सहित सभी जलीय जीवों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई। डाल्फिन के जो बच्चे पैदा हुए उनमें स्वच्छ जल में जीने की आदत बन गई लेकिन जब दोबारा जल प्रदूषित होने लगा तो इसके दुष्प्रभाव भी दिखने लगे हैैं। झींगा व अन्य मछलियों की संख्या कम हो रही है। झींगा व अन्य छोटी मछलियां ही डाल्फिन का मुख्य आहार होती हैं। इनसे ही वह प्रोटीन प्राप्त करती हैं। इसलिए कह सकते हैैं कि गांगेय डाल्फिन की खुराक में प्रोटीन की कमी आ रही है। उनका प्रजनन चक्र प्रभावित होगा। वह दो से तीन बार ही गर्भधारण करेंगी।

    जीवन काल में पांच से छह बार करती हैं प्रजनन

    डा. घोष के अनुसार गांगेय डाल्फिन का स्वभाव शर्मीला होता है। यह बहुत समझदार प्राणी है। नैसर्गिक रूप से तीन तक की गिनती इन्हें आती है। 10 तक की गिनती सिखाई जा सकती है। अपने 22 से 25 साल के जीवनकाल में यह पांच से सात बार प्रजनन करती हैं। छतनाग और हंडिया के पास अध्ययन से पता चला है कि इन्हें प्रोटीन वाला आहार नहीं मिल रहा है। वैसे गंगा शोधार्थी सीएमपी डिग्री कालेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. प्रमोद शर्मा के अनुसार फिलहाल गंगा स्वच्छ हैैं। उनका पानी पीने एवं आचमन योग्य है। टोटल डिजाल्वड सालिड (टीडीएस) 148 है। पीएच मान थोड़ा ज्यादा है। यह 8.1 है, इसे सात होना चाहिए। इसी क्रम में बीओडी तीन मिलीग्राम प्रति लीटर और आक्सीजन सात मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया।

    दुनिया में स्वच्छ जलीय डाल्फिन की दो प्रजातियां

    पूरी दुनिया में स्वच्छ जलीय डाल्फिन की दो प्रजातियां मिलती हैं। गांगेय नदी डाल्फिन तथा सिंधु नदी डाल्फिन। ये भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान की गंगा ब्रम्हपुत्र, कर्णफूल नदियों में पाई जाती हैं। कुछ विशेषज्ञ इसे नदी का बाघ भी कहते हैं। वास्तव में ये डाल्फिन नदी की सेहत का प्रतीक भी माने जाते हैं। यह दस करोड़ साल पुरानी जलीय स्तनीय प्राणी हैं। गांगेय डाल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया गया है जब कि सिंधु नदी डाल्फिन को पाकिस्तान का राष्ट्रीय स्तनी जीव माना जाता है। 1972 में इसे भारतीय वन्य जीव संरक्षण के दायरे में लाया गया जबकि 1996 में इसे इंटरनेशनल यूनियन आफ कंजर्वेशन आफ नेचर ने विलुप्त प्राय जीव घोषित किया। क्लीन गंगा मिशन का नतीजा है कि इसकी संख्या में उत्साहजनक बढ़ोतरी दर्ज की गई।