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    कुमारिल भट्ट की स्मृति संजोये है शंकरविमान मंडपम्

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 14 Mar 2017 06:26 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की मिलनस्थली संगम से चंद कदम की दूरी पर ए

    कुमारिल भट्ट की स्मृति संजोये है शंकरविमान मंडपम्

    जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की मिलनस्थली संगम से चंद कदम की दूरी पर एक विशालकाय मंदिर हर किसी का ध्यान खींचता है। वह है बांध पर बना शंकर विमानमंडपम्। दीवारों और गुंबदों में उभरी देवी-देवताओं की आकृति पर नजर पड़ते ही हर किसी का रोम-रोम भक्तिभाव में डूब जाता है।

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    इस मंदिर में न कोई आडंबर दिखता है न शोर-शराबा। मंत्रों की धीमी कर्णप्रिय गूंज अनुभूति कराती है ईश्वर के साक्षात दर्शन की। बंद आंखों से कोई भी यहां ऐसी अनुभूति कर सकता है। यहीं पर सनातन धर्मावलंबियों के आराध्य आदिशंकराचार्य एवं प्रकांड विद्वान कुमारिल भट्ट का संवाद हुआ था। बाद में यहीं कुमारिल भट्ट ने तुषाग्नि में आत्मदाह किया। यह मंदिर उनकी ही स्मृति में बनवाया गया है।

    प्रयाग में दक्षिण भारत

    प्रयाग में शंकर विमानमंडपम दक्षिण भारत के किसी मंदिर की याद ताजी कराता है। तीन मंजिला मंदिर के बाहरी हिस्से में आदिशंकराचार्य, कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र की आकृतियां अंकित हैं। सनातन धर्म के विद्वान डॉ. रामजी मिश्र बताते हैं कि 518 ई.पू. आदि शंकराचार्य प्रयाग आए थे, यहीं उनकी कुमारिल भट्ट से भेंट हुई। व्यवस्थापक रमणी शास्त्री के अनुसार कांचिकामकोटि पीठाधीश्वर जयेंद्र सरस्वती के गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने 1934 में प्रयाग में चातुर्मास किया था। वह दारागंज स्थित आश्रम में रुके थे, यहीं से वह प्रतिदिन पैदल संगम स्नान के लिए जाते थे। बांध के पास उन्हें दो पीपल के वृक्ष के बीच खाली जगह नजर आई। उन्होंने दावा किया कि इसी स्थल पर आदिशंकराचार्य एवं कुमारिल भट्ट के बीच संवाद हुआ था। गुरु की इच्छा के अनुरूप जयेंद्र सरस्वती ने यहां मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर की नींव 1969 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बी. गोपाल रेड्डी ने रखी। इंजी. बी. सोमो सुंदरम् व सीएस रामचंद्र ने इसका नक्शा बनाया। उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम ने भी इसके निर्माण में योगदान दिया। इसमें अहम भूमिका थी निगम के तत्कालीन असिस्टेंट इंजीनियर कृष्ण मुरारी दुबे की। मंदिर जिन 16 पिलर पर टिका है उसका निर्माण उन्होंने अपनी देखरेख में करवाया था। मंदिर के पूर्ण रूप से तैयार होने पर 17 मार्च 1986 को पूजन-अर्चन के बाद भक्तों के लिए उसे खोला गया।

    हर तल है विशेष

    तीन मंजिला शंकर विमान मंडपम् मंदिर का हर तल विशेष है। प्रथम तल में कांचिकामकोटि पीठ की आराध्य कामाक्षी देवी की प्रतिमा है। द्वितीय तल में भगवान विष्णु का बाला जी स्वरूप दिखता है। तृतीय तल में योग सहस्त्र लिंग एक पत्थर में है। इस पत्थर में एक हजार शिवलिंग एवं रुद्राक्ष है।

    परमात्मा ने किया प्रेरित : कृष्णमुरारी

    मंदिर निर्माण का हिस्सा रहे इंजी. कृष्णमुरारी दुबे बताते हैं जब नींव रखी गई तो उस समय इलाहाबाद में वह शास्त्री ब्रिज का निर्माण करा रहे थे। अचानक पता चला कि मंदिर निर्माण में भी योगदान देना है तो उन्होंने उसे परमात्मा का आदेश माना। रिटायरमेंट के बाद लखनऊ के विनयखंड गोमतीनगर में रहने वाले दुबे बताते हैं कि प्रयाग में संगम तट पर किसी धार्मिक स्थल के निर्माण का हिस्सा बनाना उनके लिए सौभाग्य की बात थी। उन्होंने कहा कि जब मंदिर बनकर तैयार हुआ तो उसके पूजन-अभिषेक में वह भी शामिल हुए थे, दूर रहने के बावजूद उनका जुड़ाव उससे बना है।

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