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    ..उल्लू हो गए 'वीआइपी'

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    Updated: Fri, 21 Oct 2016 01:00 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : सालभर बेवकूफी का सिंबल बने रहने वाले उल्लू अचानक वीआइपी हो गए हैं। दीपाव

    जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : सालभर बेवकूफी का सिंबल बने रहने वाले उल्लू अचानक वीआइपी हो गए हैं। दीपावली आते ही उल्लू की न केवल कीमत बढ़ गई है, बल्कि वह बेशकीमती भी हो गया है। लक्ष्मी जी की इस सवारी को खरीदने के लिए लोग मुंह मांगी कीमत देने के लिए तैयार हो रहे हैं। मांग के पीछे कारण यह है कि दीपावली के दिन उल्लू को देखना शुभ माना जाता है और अंधविश्वासी लोग इसकी बलि देते हैं। इसे देखते हुए वन विभाग की ओर से अलर्ट जारी कर दिया गया। इन्हें पकड़ने, बेचने, खरीदने और उपयोग करने वालों नजर रखने के टीम सक्रिय हो गई है।

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    दरअसल, दशहरे में जिस तरह नीलकंठ का दर्शन शुभ माना जाता है। उसी तरह दीपावली पर उल्लू का दिखना भाग्यशाली होता है। ऐसी मान्यता है कि उल्लू के दर्शन से मन की मुराद पूरी हो जाती है। काला जादू और टोना-टोटका करने वालों के लिए इसकी काफी अहमियत मानी जाती है। यही कारण है कि तांत्रिक भविष्य चमकाने, धन और ज्ञान के लिए उल्लू की बलि देते हैं। तांत्रिक अपनी पूजा के दौरान उल्लू की खोपड़ी, खून, हड्डी समेत अन्य अंगों का प्रयोग करते हैं। कहा जाता है कि उल्लू पर लोक विश्वास है और ज्योतिष शास्त्र में काफी महत्वपूर्ण है। लिंग पुराण में नारदमुनि को मानसरोवर में रहने वाले उल्लू से संगीत की शिक्षा लेने का उल्लेख है। वहीं बाल्मीकि की रामायण में उल्लू को अत्यधिक चतुर बताया गया है। यूं तो वन संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत उल्लूओं के शिकार पर पूरी तरह रोक है। इसके बावजूद चोरी छिपे इसका शिकार हो रहा है।

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    खास किस्म के उल्लू की मांग

    तंत्र साधना के लिए खास तरह के उल्लू की मांग होती है। खासकर सफेद उल्लू सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। 25 से अधिक प्रजाति के उल्लूओं में करीब 10 प्रजाति के उल्लू ही जंगल में दिखाई देते हैं। तस्कर दीपावली आने से पहले इन्हें पकड़े के लिए विशेष अभियान चलाते हैं। साथ ही पकड़ने वालों को काफी पैसा दिया जाता है। वन विभाग के सूत्रों की मानें तो नेपाल की तराई, हिमालय, मध्य प्रदेश, बिहार और पूर्वांचल के जंगलों से शिकार कर लाया जाता है। इलाहाबाद में सबसे ज्यादा शाहगंज में इसकी बिक्री होती है।

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    दीपावली की रात होती है पूजा

    दीपावली की रात जहां लक्ष्मीजी की पूजा होती है, वहीं तंत्र साधना से जुड़े लोगों का कहना है कि उसी रात महानिशिक कॉल में उल्लू की पूजा भी होती है। आधी रात तांत्रिक उल्लू के पंख, खून, अस्थि से साधना करते हैं। दीवाली की अन्य तिथियों पर ऐसा नहीं होता है। वशीकरण, सम्मोहन और उच्चारण व मारण जैसी साधना के लिए उल्लू की बलि दी जाती है।

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    उल्लू की विशेषता - (मान्यतानुसार)

    - किसी व्यक्ति की मृत्यु का पहले से पता चलना फिर उसके आसपास आकर बोलना।

    - रात्रिचारी पक्षी और बहुत कम रोशनी में भी रात को शिकार कर लेना।

    - बिना पंख की आवाज किए सैकड़ों मील तक उड़ना।

    - सुनने की शक्ति जबदस्त। उड़ने के दौरान जमीन पर चूहे की आवाज सुन लेना।

    - उल्लू लक्ष्मीजी का वाहन है। अनादर करने पर लक्ष्मीजी का अपमान करना।

    - धन एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। बिना मुड़े पीछे भी देख लेता है।

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    इनका कहना है

    वन संरक्षण अधिनियम के तहत उल्लू को पकड़ना और मारना वर्जित है। बिक्री वाले स्थानों और दूसरे क्षेत्रों पर नजर रखने के लिए विशेष टीम बनाई गई है। साथ ही सभी एसडीओ और रेंजरों को अलर्ट कर दिया गया है।

    - मनोज खरे, डीएफओ

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    पूर्वजों की परंपरा अलग है, लेकिन वैज्ञानिक युग में उल्लू की बलि देना अंधविश्वास है। भगवान की पूजा अर्चना सात्विक ढंग से ही किया जाना चाहिए। उल्लूकवाहिनी को खुश करने के लिए कुछ लोग ऐसा करते हैं, जो गलत है।

    -रामानंद शुक्ला, ज्योतिषाचार्य

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