कभी मैलहन झील में ठहरी थी नेहरू की बोट
जासं, इलाहाबाद : एक जमाना था जब फूलपुर के कई गांवों के लिए वरुणा नदी अभिशाप मानी जाती थी। खासकर मैलह
जासं, इलाहाबाद : एक जमाना था जब फूलपुर के कई गांवों के लिए वरुणा नदी अभिशाप मानी जाती थी। खासकर मैलहन झील के आसपास रहने वाले भगवान से मनाते थे कि बरसात न हो। बरसात होते ही झील ओवरफ्लो होती थी और उफनाई वरुणा का पानी तबाही मचाने लगता था। फूलपुर ब्लाक के पूर्व प्रमुख व मैलहन निवासी घनश्याम दुबे को आज भी छह दशक पहले की घटना याद है, जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री व क्षेत्रीय सांसद पं. जवाहर लाल नेहरू की बोट मैलहन झील में आकर ठहरी थी। उस समय नदी उफनाई हुई थी। बाढ़ का जायजा लेने के लिए पं. नेहरू बोट से घूमे थे। इस बात का जिक्र इसलिए हो रहा है कि आज मैलहन झील पूरी तरह सूख गई है। वरुणा के अस्तित्व पर भी संकट आ खड़ा हुआ है।
फूलपुर के मैलहन गांव में करीब 35 बीघा क्षेत्रफल में फैली इस झील में कभी इलाहाबाद के उत्तरी क्षेत्र के अलावा प्रतापगढ़ के रानीगंज, गौरा, शिवगढ़ आदि ब्लाकों का पानी भी इसी झील में आकर ठहरता था। करीब आठ किलोमीटर लंबी थी झील। इसी झील से जन्म हुआ वरुणा नदी का। यह नदी करीब 202 किलोमीटर का लंबा सफर तय करते हुए वाराणसी के असी घाट पर गंगा में जाकर मिलती है। झील की प्रसिद्धी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि माघ के दौरान संगम आने वाले साइबेरियन पक्षी भी घर वापसी से पहले इस झील में डेरा जमाते थे। आसपास के गांव बलकरनपुर, कुबुबपुर, अतरौरा, जल्दीपुर, मैलहन सहित दर्जनों गांव की फसलों की सिंचाई भी इसी झील के पानी से होती थी। वर्तमान समय में मैलहन झील अब पूरी तरह सूख गई है। इसका असर वरुणा नदी पर भी पड़ा है। नदी को अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है। पूर्व प्रमुख घनश्याम दुबे बताते हैं कि इलाहाबाद व प्रतापगढ़ के इलाके से आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी भी बहाकर लाता था जिसके चलते झील की गहराई खत्म होती गई। यही कारण है कि अब यहां पानी नहीं रुकता। बारिश भी उस तरह नहीं हो रही है। तीन साल पहले यहां के दस बीघे के दायरे में खोदाई तो शुरू की गई है, पर बीच में ही यह कार्य रुक गया। लेागों का कहना है कि अगर इस झील की खोदाई कर दी जाए तो यहां फिर से पानी ठहरने लगेगा जिसका असर वरुणा नदी पर भी पड़ेगा।
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वरुण देव ने किया था यज्ञ
इलाहाबाद : मैलहन झील से निकलने वाली नदी का नाम वरुणा क्यों पड़ा, इसके पीछे भी एक कहानी प्रचलित है। किवदंतियों की मानें तो एक समय जनपद में अकाल पड़ा था। लोग प्यासे मर रहे थे। जीव जंतुओं के जीवन पर खतरा मंडराने लगा था। ऐसे में वरुण देव ने इसी स्थल पर भगवान शंकर की प्रतिमा स्थापित कर यज्ञ किया था। उनके यज्ञ के फलस्वरूप बारिश हुई और लोग सुखी हो गए। बाद में यहीं एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया जिसका नाम पड़ा वरुणेश्वर महादेव। आज भी यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। जब मैलहन झील से नदी निकली तो उसका नाम वरुणा पड़ गया।
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तालाब खोद दिया, पानी भरेंगे भगवान
-लापरवाही की भेंट चढ़ी मनरेगा, सूखे पड़े हैं तालाब
जासं, इलाहाबाद : मनरेगा के तहत तालाबों को खोदवाने में किस तरह मनमानी की जा रही है, इसका एक उदाहरण चाका ब्लाक के अमिलिया गांव में देखने को मिलता है। एक दो नहीं, पूरे 84 पेड़ों की कुर्बानी दी गई है तालाब को खोदवाने के लिए। तालाब को खोदने के बाद यूं ही छोड़ दिया गया है। एक बूंद पानी नहीं है तालाब में। यह मनमानी सिर्फ एक गांव में नहीं वरन तमाम गांवों में तालाबों के संदर्भ में देखने को मिल रही है। मनरेगा के तहत सैकड़ों की संख्या में तालाब खोदे गए हैं, पर पानी शायद ही कहीं मिलता हो। सबकुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा के तहत तालाबों की खोदाई जनपद में 2008 में शुरू की गई। पंत संस्थान के प्रो. सुनीत सिंह बताते हैं कि योजना की शुरुआत में इलाहाबाद के साथ ही देवरिया व भदोही जिले का प्लान बनाया गया था। इसमें इलाहाबाद के 1425 गांवों में तकरीबन चार हजार तालाब बनाने की योजना शामिल थी। हर ग्राम पंचायत का प्लान अलग से बनाया गया था। योजना के मुताबिक काम शुरू हुआ था, लेकिन इसका क्रियान्वयन ठीक प्रकार से नहीं हो सका। जनपद में आज मनरेगा के तहत खोदवाए गए तालाबों की स्थिति अच्छी नहीं की जा सकती। मांडा प्रतिनिधि की मानें तो ब्लाक में 2008 से अब तक 193 तालाब मनरेगा के तहत खोदे गए। इसके लिए एक सौ छह करोड़ रुपये खर्च हुए। वर्तमान समय में भी मनरेगा के तहत 18 तालाबों को खोदवाने का काम चल रहा है। इसमें बादपुर, आंधी, महुवारी खुर्द, चिलबिला, ऊंटी, केड़वर, पचेड़ा, मझिगवां, मांडा आदि शामिल हैं। देखा जाए तो मांडा में तालाबों की संख्या 276 है, पर पानी ढूंढने में शायद ही किसी में मिले।
मेजा प्रतिनिधि के मुताबिक खेत का पानी खेत में योजना के तहत यहां के घोरहा गांव के हनोखर बस्ती में विजय कुमार के खेत में ढाई मीटर गहरा तालाब बनाया गया था। इसमें एक लाख 24 हजार धनराशि खर्च हुई थी। वर्तमान समय में इस तालाब का अस्तित्व मिट गया है। पानी सूख गया है। पानी भरने के प्रबंध नहीं हैं। इसी क्रम में भूमि संरक्षण विभाग द्वारा मेजा के भइयां, नेवादा और चपरो गांव में तीन तालाब बनवाए गए थे। तालाब बनकर तैयार ही नहीं हुए। विधायक गामा पांडेय ने ब्लाक प्रमुख मेजा से इसकी जांच कराने को कहा है। ब्लाक प्रमुख रंजनादेवी ने बताया कि इन तालाबों की खोदाई में अनियमितता बरती गई है। अगले तीन से चार दिन में जांच कराई जाएगी।
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हर गांव में बनाना होगा ड्रेनेज मैप
इलाहाबाद : गांव में खूब तालाब बनवा दिए जाएं, पर अगर उसमें पानी ही नहीं आएगा तो फिर वह भरेगा कैसे। तालाबों को जीवन देने के लिए पहले पानी का प्रबंध करना होगा। इलाहाबाद में मनरेगा के तालाबों का प्लान बनाने वाले गोविंद बल्लभ पंत संस्थान के प्रो. सुनीत सिंह बताते हैं कि तालाब को खोदने के पहले हर गांव का ड्रेनेज मैप बनवाना होगा। तालाब तक जाने वाले प्राकृतिक प्रवाह की खोज करनी होगी। सबसे ज्यादा जरूरी है अतिक्रमण हटाना। तालाबों से राजनीति को परे रखना होगा तभी तालाबों के लबालब होने का सपना साकार हो सकेगा।
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यहां भी हैं कब्जे
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-कौशांबी के मूरतगंज ब्लाक के सिकंदरपुर बजहा गांव में तालाबों को पाटकर घर बना लिए गए हैं।
-कुंडा तहसील के नेवादा खुर्द गांव में तालाब की जमीन पर कब्जा
-करछना के कपठुआ गांव में तालाब संख्या 198 पर अतिक्रमण
-बारा तहसील के लोहरा गांव में तालाब पर कब्जा
-मेजा के तालाब संख्या 1020 की स्थिति बदतर
-बहरिया ब्लाक के कुसूंगुर गांव स्थित तालाब पर अवैध निर्माण
-हंडिया रसूलपुर शियाडीह स्थित 64 बीघा तालाब पर कब्जा
-बहरिया स्थित खलसा गांव के तालाब पर कब्जा
-सांगीपुर के भूड़हा गांव स्थित तालाब पर कब्जा
-सोरांव के मलाक हरहर गांव में 30 बिस्वा तालाब पर अतिक्रमण
-फूलपुर स्थित दामोदर तिवारी गांव में तालाब संख्या 321 सूखा पड़ा है।
-फूलपुर के हसनपुर कोरारी गांव में पांच बीघे का तालाब सूखा
-हंडिया शियाडीह में कई तालाब खोदने के बाद छोड़ दिए गए
-फूलपुर के मलावा खुर्द के तालाब पर अतिक्रमण
-फूलपुर तहसील में शाकिर महमूद बस्ती में दो सौ वर्ष पुराने तालाब पर अतिक्रमण।
-कौंधियारा एकौनी गांव के तालाब पर कब्जा।
-घोघापुर बलापुर नैनी में तालाब सूखा
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