हरा पेड़ काटना अपशकुन
जासं, इलाहाबाद : इन दिनों हर ओर फागुनी बयार बह रही है। बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक सबके ऊपर होली का ख ...और पढ़ें

जासं, इलाहाबाद : इन दिनों हर ओर फागुनी बयार बह रही है। बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक सबके ऊपर होली का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है। घरों में चिप्स, पापड़ बनाए जा रहे हैं। रंग, पिचकारियों की खरीदारी जोरों पर है। गली-चौराहों पर होलिका जलाने के लिए लकड़ी का ढेर इकट्ठा किया जा रहा है। वैसे तो होली पर सूखी लड़की जलाने का विधान है, परंतु हर जगह हरे पेड़ों की डालियां काटकर रखी गई हैं। इसका सिलसिला कई दिनों से चल रहा है। हर मुहल्ले में युवकों की टोली होली जलाने के लिए पेड़ों को काट रही है। इससे होली तो जल जाएगी, परंतु सामाजिक अपशकुन का खतरा बढ़ जाता है।
भारतीय विद्या भवन में ज्योतिष विभाग के प्राचार्य त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी कहते हैं होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसमें डुंडा राक्षसी का दहन कर बुराई को समाप्त किया जाता है। निर्णय सिंधु व धर्म सिंधु जैसे धर्मग्रंथों में होलिका दहन सूखी लकड़ी, कंडा, नया अन्न व बर्रे के पौधों से करने का विधान बताया गया है। इससे प्राकृतिक वातावरण शुद्ध होता है। हरा पेड़ काटने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। साथ ही यह सबसे बड़ा प्राकृतिक अपशकुन होता है। प्रकृति अपना बदला आंधी, पानी एवं सूखा करके लेती है। साथ ही पेड़ काटने वाले पर सौ जीव की हत्या के बराबर पाप लगता है। ऐसा करने वाले का कोई शुभ कार्य पूर्ण नहीं होता। गरुण पुराण के अनुसार हरा पेड़ काटने वाले को कई जन्मों तक मनुष्य योनि प्राप्त नहीं होती।

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