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    मंत्र सुनते ही रोग छूमंतर

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    Updated: Tue, 05 Feb 2013 08:49 AM (IST)

    एलएन त्रिपाठी, इलाहाबाद : वेदों में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द और उनसे बने मंत्र विशाल शक्ति के परिचायक बताए गए हैं। मंत्रों की यह ताकत असाध्य रोगों का इलाज करने में भी सक्षम है। अब आधुनिक विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करने लगा है। अमेरिका समेत विश्व के करीब आधा दर्जन विकसित देशों में 'मंत्र चिकित्सा' पर किए जा रहे क्लीनिकल ट्रायल के परिणाम तो यही बता रहे हैं। इसमें हृदय रोग से लेकर उच्च रक्तचाप, मधुमेह, स्लिप डिस्क, ब्रेन ट्यूमर समेत तमाम तरह की गंभीर किस्म की बीमारियां शामिल हैं। माना यह जा रहा है कि एकाध वर्ष में मंत्रों से इलाज की यह व्यवस्था परीक्षणों से निकल कर सर्व सुलभ हो जाएगी।

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    आयुर्वेद को जीवन का विज्ञान कहा गया है। 'सिद्ध वैद्य मंत्रिका :।' अर्थात कुशल वैद्य मंत्रों के माध्यम से रोग निवारण करते हैं। ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी ने इसी श्लोक को आधार बनाकर इलाज में मंत्रों के इस्तेमाल पर शोध शुरू कराया था। 1958 से अमेरिका समेत विश्व के कई देशों में भावातीत ध्यान का प्रचार-प्रसार कर रहे महर्षि इससे पूर्व 60-70 के दशक में अपनी ध्यान पद्धति को वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए खोल चुके थे। भावातीत ध्यान पर 235 से अधिक स्वतंत्र और सरकारी शोध संस्थानों द्वारा किए गए शोध ने यह साबित कर दिया था कि हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, इंसोमेनिया, अस्थमा, माइग्रेन, तनाव, व्याकुलता आदि तमाम तरह की शारीरिक, मानसिक बीमारियां इससे दूर हो जाती हैं। इन परीक्षणों ने भारत के परंपरागत ज्ञान को वैज्ञानिक कसौटियों पर खरा साबित कर विश्व भर में स्वीकार्यता बढ़ाई थी। इसी क्रम में महर्षि ने मंत्रों से बीमारियों के इलाज का भी वैज्ञानिकों से परीक्षण कराने को कहा था।

    इस शोध में शामिल रहे व वर्तमान में महर्षि के विभिन्न संगठनों का जिम्मा संभाल रहे ब्रह्मचारी गिरीश जी के अनुसार वर्ष 1998 से इसकी शुरुआत की गई थी। इसमें वेद की ऋचाओं के आडियो-वीडियो रिकार्डिग को सुनाकर विभिन्न बीमारियों पर उनके प्रभाव का अध्ययन किया गया। फ्रांस में नीस, हालैंड के सिलिसबर्ग, जर्मनी के बॉन और बर्लिन में, लंदन व अमेरिका के न्यूजर्सी में रिसर्च लेबोरेटरी में प्रारंभिक परीक्षणों में मंत्रों ने रोगों का इलाज करने में भारी सफलता दिखाई। मात्र 15 मिनट तक मंत्रों की ध्वनियां सुनने के बाद एक्यूट माइग्रेन जैसी गंभीर बीमारी स्थायी रूप से समाप्त हो गई।

    पांच मार्च 2007 को ब्रह्मलीन हुए महर्षि महेश योगी की याद में बने स्मारक के लोकार्पण के सिलसिले में इलाहाबाद आए ब्रह्मचारी गिरीश जी के अनुसार पाश्चात्य देशों में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर नियम कानून खासे कड़े हैं। इस वजह से वहां इलाज की पद्धति का परीक्षण भी कठोर मानकों के बीच होता है। मंत्रोच्चार से इलाज के लिए डबल ब्लाइंड फोल्डेड रिसर्च किया गया था। इसमें संबंधित देशों की सरकारी संस्थाओं की ओर से विशेषज्ञ नियुक्त किए गए थे। इन परीक्षणों में मिली सफलता की दास्तां 2003 में विभिन्न शोध पत्रिकाओं और वैज्ञानिक जरनलों में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद महर्षि के निर्देश पर मंत्रों से इलाज की विधि को वैज्ञानिक तरीके से नियमबद्ध करने व मानक बनाने का कार्य शुरू किया गया है। इस समय अमेरिका समेत विभिन्न देशों की रिसर्च लैब में यह कार्य चल रहा है। शीघ्र ही सामान्य से लेकर गंभीर रोगों का इलाज करने की यह सुविधा सभी के लिए उपलब्ध होगी।

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