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    सपनों को लगे उम्मीदों के पंख, शिक्षा से जुड़े कूड़ा बीनने वाले परिवारों के बच्चे Aligarh News

    By Sandeep kumar SaxenaEdited By:
    Updated: Sun, 17 Jan 2021 07:18 AM (IST)

    शहर में अब्दुल्ला कॉलेज के पास बसी मलिन बस्ती में कई परिवार हर रोज कूड़ा-कचरा बीनकर दो समय के भोजन की जुगाड़ करते हैैं। कुछ महिलाएं घरों में चौका-बर्तन करती हैं। बच्चे भी इनका हाथ बंटाते थे। इतना पैसा नहीं था कि बच्चों को स्कूल भेज सकें।

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    कुछ महिलाओं पर इतना पैसा नहीं था कि बच्चों को स्कूल भेज सकें।

    अलीगढ़, लोकेश शर्मा। कूड़े में जिंदगी तलाशना कुछ परिवारों की मजबूरी जरूर है, लेकिन पढ़ाई की अहमियत इनके लिए भी कम नहीं है। बच्चों को स्कूल भेजने का सपना था, जिसे पूरा करने में आर्थिक तंगी रोड़ा बनी रही। जब मदद को हाथ बढ़े तो ये परिवार शिक्षा का दीया जलाकर अपने झोपड़ों को रोशन करने में जुट गए। इन परिवारों के बच्चे न सिर्फ दिन-रात पढ़ाई कर रहे हैं, बल्कि एएमयू जैसी संस्था की प्रवेश परीक्षाओं में बैठने का हौसला भी जागा है। एक बच्चे ने तो छठवीं में दाखिले को परीक्षा भी पास कर ली है। 

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    संस्था से जुड़े युवाओं ने संघर्ष किया

    शहर में अब्दुल्ला कॉलेज के पास बसी मलिन बस्ती में कई परिवार हर रोज कूड़ा-कचरा बीनकर दो समय के भोजन की जुगाड़ करते हैैं। कुछ महिलाएं घरों में चौका-बर्तन करती हैं। बच्चे भी इनका हाथ बंटाते थे। इतना पैसा नहीं था कि बच्चों को स्कूल भेज सकें, न ही इतनी समझ कि सरकारी मदद ले सकें। आजाद फाउंडेशन की निदेशक शाजिया सिद्दीकी की प्रेरणा से इन परिवारों में बच्चों को शिक्षित कर उनका जीवन संवारने की चाह जागी। इसी का परिणाम है कि 43 बच्चों की पढ़ाई शुरू हो गई। इनका सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया गया। अब संस्था की ओर से मलिन बस्ती में ही इन्हें पढ़ाया जा रहा है। शिक्षित युवा अपने खर्चे पर प्रतिदिन पाठशाला लगाते हैं। बच्चों को यहां तक लाने में संस्था से जुड़े युवाओं ने संघर्ष भी खूब किया। शाजिया बताती हैं कि जिन डाक्टर, प्रोफेसरों के घरों में बच्चे काम करते थे, वे विरोध में उतर आए। धमकियां देने लगे, लेकिन मुहिम जारी रही। कोरोना संकट में भी बच्चे हर रोज पढऩे आते हैं। अब तो महिलाएं भी यहां पढऩे आ रही हैं। इन्हें यहां तक लाने में शाहनीला, डा. जुनेद आलम, इमरान खान, जफर महमूद, खालिद अहमद, मुदस्सिर खान, आशीष का सहयोग रहा। 

    आइपीएस बनना चाहता है मन्नान 

    मलिन बस्ती में खुले आसमान के नीचे चलने वाली पाठशाला में पढऩे वाले मन्नान अहमद की इच्छा आइपीएस अधिकारी बनने की है। मन्नान ने बीते साल एएमयू की परीक्षा पास कर कक्षा छह में दाखिला पाया।  इसी पाठशाला के बच्चे संस्था के पदाधिकारियों के साथ नुक्कड़ नाटक व सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्यक्रम कर अन्य बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित कर रहे हैं।

    हमारा उद्देश्य दबे कुचले लोगों की आवाज बनकर उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से जोडऩा है। ऐसी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का भी प्रयास है, जो अधिकारों से वंचित हैं। 

    शाजिया सिद्दकी, निदेशक, आजाद फाउंडेशन

    हमने कभी सोचा नहीं था कि बच्चों को पढ़ा पाएंगे, लेकिन अब बच्चों की पढ़ाई पूरी कराने की ठान ली है। हमारे बच्चे हमारी तरह ङ्क्षजदगी नहीं बिताएंगे। 

    रुकसाना, अभिभावक 

    रोजी रोटी कमाने में इतना व्यस्त थे कि बच्चों की पढ़ाई के बारे में सोचा नहीं था। अब ये गलती नहीं करेंगे। बच्चों को बेहतर इंसान बनाएंगे। 

    अनीसा, अभिभावक

    सोच लिया है कि बच्चों को अब खूब पढ़ाना है। बच्चे भी पढऩा चाहते हैं। उनकी पढ़ाई में किसी तरह की रुकावट नहीं आएगी। 

    उरफाना, अभिभावक