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    Raja Mahendra Pratap Singh: कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह और क्‍या था एएमयू से नाता, पढ़ें विस्‍तृत खबर

    By Sandeep Kumar SaxenaEdited By:
    Updated: Tue, 16 Aug 2022 01:59 PM (IST)

    राजा महेंद्र प्रताप सिंह इन सभी गुणों की खान थे। शिक्षा के प्रसार के लिए वृंदावन में महाविद्यालय की स्थापना कर उन्होंने एक राजा का दायित्व निर्वहन किया था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी को लीज पर 3.8 एकड़ जमीन देकर धर्मनिरपेक्षता की रियासत के राजा भी बन गए।

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    राजा महेंद्र प्रताप सिंह इन सभी गुणों की खान थे।

    अलीगढ़, जागरण संवाददाता। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए क्रांतिकारी, सामाजिक जागरूकता के लिए पत्रकार, समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर कराने वाले समाज सुधारक और जरूरतमंदों की मदद के लिए दानवीर। राजा महेंद्र प्रताप सिंह इन सभी गुणों की खान थे। शिक्षा के प्रसार के लिए वृंदावन में महाविद्यालय की स्थापना कर उन्होंने एक राजा का दायित्व निर्वहन किया था, तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी को लीज पर 3.8 एकड़ जमीन देकर धर्मनिरपेक्षता की रियासत के 'राजा' भी बन गए।

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    घनश्‍याम सिंह से थी घनिष्‍ठ मित्रता

    मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के यहां एक दिसंबर 1886 को जन्मे Raja Mahendra Pratap Singh को हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने गोद ले लिया था। उनके कोई संतान नहीं थी। दोनों राजाओं में पारिवारिक रिश्ते थे। राजा हरनारायण सिंह ने बालक महेंद्र प्रताप को शिक्षा दिलाने के लिए वर्ष 1895 में अलीगढ़ के गवर्नमेंट हाईस्कूल (अब नौरंगीलाल इंटर कालेज) भेजा।

    एएमयू में की ठाठ से पढ़ाई

    राजा हरनारायण सिंह और घनश्याम सिंह के एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खां से घनिष्ठ मित्रता थी। सर सैयद के अनुरोध पर राजा ने उसी साल महेंद्र प्रताप का दाखिला मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल (एमएओ) कालेज में करा दिया। बाद में यही एमएओ एएमयू के नाम से विख्यात हुआ।

    आत्‍मकथा माई लाइफ स्‍टोरी

    एमएओ कालेज में महेंद्र प्रताप ने शाही ठाठ से पढ़ाई की थी। अलग हास्टल में उनकी सेवा के लिए 10 नौकर रहते थेे। Raja Mahendra Pratap Singh ने अपनी आत्मकथा माई लाइफ स्टोरी में इसका जिक्र किया है। देश सेवा में पूरा जीवन लगाने वाले जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए भी खूब काम किया। वर्ष 1909 में उन्होंने वृंदावन में प्रेम विद्यालय की स्थापना कराकर देश को पहला तकनीकी शिक्षा केंद्र दिया था। एएमयू में वे खुद तो पढ़े ही थे, उनके पिता राजा घनश्याम सिंह की संस्था संस्थापक सर सैयद से दोस्ती थी।

    शिक्षा के प्रसार में नहीं किया भेदभाव

    शिक्षा के प्रति समर्पित Raja Mahendra Pratap Singh ने एएमयू को वर्ष 1929 में 3.8 एकड़ जमीन 90 साल की लीज पर दे दी। शुल्क तय किया था दो रुपये सालाना। जीटी रोड पर कोल तहसील के पास एएमयू के सिटी स्कूल के पीछे ये जमीन है। एएमयू जैसी संस्था को जमीन देकर राजा ने संदेश दिया था कि शिक्षा के प्रसार में किसी तरह का भेदभाव नहीं करना है। चाहे किसी भी जाति-धर्म के हों, सभी भारतीय हैं और उन्हें बेहतर शिक्षित करना है। उनकी इस दरियादिली की तारीफ आज भी होती है।