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    यूपी विधानसभा चुनाव 2022: हुंकार के लिए मंच बहुत मिलेंगे

    By Sandeep Kumar SaxenaEdited By:
    Updated: Thu, 06 Jan 2022 11:22 AM (IST)

    मंच पर हुंकार और ललकार यह राजनेताओं का स्वभाव है। अपनी पहचान बनाने के लिए दमखम दिखाते हैं। कासिमपुर में असहज करने वाला दृश्य था। मंच पर नेता अपनी-अपनी बढ़त के लिए ताल ठोक रहे थे। खूबियों को बताने में जुटे थे।

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    मंच पर हुंकार और ललकार, यह राजनेताओं का स्वभाव है।

    अलीगढ़, जागरण संवाददाता। मंच पर हुंकार और ललकार, यह राजनेताओं का स्वभाव है। अपनी पहचान बनाने के लिए दमखम दिखाते हैं। बरौली विधानसभा क्षेत्र के कासिमपुर में असहज करने वाला दृश्य था। मंच पर नेता अपनी-अपनी बढ़त के लिए ताल ठोक रहे थे। खूबियों को बताने में जुटे थे। बड़ा मंच था, सूबे के मुखिया आने वाले थे। इसलिए नेता भी बड़ा संदेश देना चाह रहे थे। कुल मिलाकर उत्तराधिकारी की ताजपोशी थी। दोनों नेता यह बता रहे थे कि ये धरती किसकी है? मगर, वो स्वयं अपना मैदान बनाने की जुगत में थे। मंच पर वर्चस्व था तो पंडाल में लोग हैरान थे। चर्चाएं गर्म हो गई कि मंच को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनाना था। बच्चों को आगे बढऩे की शिक्षा सभी नेता दे रहे थे, मगर बच्चों के सामने ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। बच्चों के बीच में शिक्षा, तरक्की की बातें होनी चाहिए। हुंकार व ललकार के लिए बहुत मंच मिलेंगे।

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    हम रास्ता रोकेंगे

    सत्ता दल में रैलियों की भरमार है। गोष्ठियां और बैठकें भी खूब हो रही हैं। ऐसे में विपक्ष भी तैयार है। सत्ता दल की कहीं भी कोई रैली और जनसभा होती है तो उससे एक दिन पहले घोषणा कर दी जाती है कि हम नेताजी का रास्ता रोकेंगे? इस पर सुरक्षाकर्मी सतर्क हो जाते हैं। नेताजी की रात में ही घेराबंदी हो जाती है। दांव देकर नेताजी पार्टी कार्यालय और सड़क तक पहुंच जाते हैं। पुलिस उन्हें घेरे में ले लेती है। कमोवेश अब यही हो रहा है, नेताजी कभी रैली स्थल तक नहीं पहुंच पाते हैं, प्रदर्शन की जोर आजमाइश सड़क तक होकर रह जाती है। इससे नेताजी चर्चा में जरूर आ जाते हैं, गजब के छा जाते हैं। कुछ तो ऐसे हैं कि घोषणा करने के बाद गायब हो जाते हैं। न सड़क पर दिखाई देते हैं न ही घर पर। बस, सुर्खियों में आना उनका काम है।

    चलो बायोडेटा तो दे आएं

    कभी बायोडेटा नौकरी के लिए प्रमुख हुआ करता था। अब राजनीति के लिए जरूरी हो गया है। इसकी प्रमुखता इतनी है कि ये टिकट भी काट सकता है। इसलिए इस समय हर दल के नेता मजबूत बायोडेटा बनवाने में लगे हुए हैं। इसमें ज्योतिषाचार्य से लेकर राजनीतिक विद्वानों से भी राय ली जा रही है। एक-एक ङ्क्षबदु पर ध्यान दिया जा रहा है कि कहीं कोई कमी न रह जाए। नेताजी बायोडेटा को लेकर इतने फिक्रमंद है कि पढ़ाई के समय नहीं रहे होंगे। मानो लग रहा है कि बायोडेटा देते ही उनका टिकट फाइनल हो जाएगा। बहरहाल, अधिकांश ने तो बायोडेटा को बड़े नेताओं तक पहुंचा दिया है। कुछ शेष रह गए हैं तो वो लखनऊ से लेकर दिल्ली तक दौड़ लगा रहे हैं। अपने साथियों से बात कर कह रहे हैं कि चलो बायोडेटा तो दे आएं। अब देखना होगा कि कौन बाजी मारेगा, किसका बायोडाटा दमदार होगा।

    अब ट्रेन में कट रहीं रातें

    कमल वाली पार्टी में प्रबंधन सशक्त है। पद मिलने के बाद नेताजी घर बैठना भूल जाते हैं। पार्टी एक-एक मिनट का सदुपयोग करती है। कुछ नेताओं को अभी तक पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दी है, इससे उनका उत्साह देखते ही बन रहा है। समर्थकों ने इन नेताओं का भव्य स्वागत किया। फूलमालाओं से लाद दिया। नेताजी ने भी पार्टी सहित अपने समर्थकों का आभार जताया। बोले, पार्टी ने उन्हें जो उपहार दिया है, उसे भूल नहीं सकते हैैं। स्वागत खत्म भी नहीं हुआ कि पार्टी ने उनके कार्यक्रम तय कर दिए। नेताजी ने माला पहने ही दौड़ लगा दी। कुछ दिन तो दौडऩे में खूब अच्छा लगा, मगर अब तो उनका ज्यादा समय ट्रेन में ही बीत रहा है। नेताजी हैरान हैं कि लखनऊ जाएं या फिर बिहार। बाटी-चोखा और भूजा से रूबरू होना पड़ रहा है। कार्यक्रमों की इतनी भरमार है कि नींद पूरी नहीं हो पा रही है।