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    कचरे की खाद से हरी-भरी हुई घर की बगिया, दिल को मिल रहा सुकून Aligarh news

    जिस कचरे के निस्तारण के लिए शासन तक मंथन चल रहा है वही कचरा कई घरों में पौधों का पोषण कर रहा है। इसी कचरे से फल सब्जियां उगाई जा रही हैं। जो न सिर्फ पौष्टिक होती हैं स्वाद भी लाजवाब है।

    By Anil KushwahaEdited By: Updated: Mon, 12 Apr 2021 06:46 AM (IST)
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    घर में निकलने वाले कूड़ों से आई गार्डन में हरियाली।

    लोकेश शर्मा, अलीगढ़ : जिस कचरे के निस्तारण के लिए शासन तक मंथन चल रहा है, वही कचरा कई घरों में पौधों का पोषण कर रहा है। इसी कचरे से फल, सब्जियां उगाई जा रही हैं। जो न सिर्फ पौष्टिक होती हैं, स्वाद भी लाजवाब है। कचरे का ऐसा उपयोग शहर की कुछ जागरुक महिलाएं कर रही हैं। घर का कचरा जैविक खाद के रूप में बगीचों में उपयोग हो रहा है। जिन घरों में बगीचे नहीं हैं, वहां जैविक खाद से गमलों में पौधे फल-फूल रहे हैं।

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    घर व प्रतिष्ठानों पर कूड़े का निस्तारण कर रही महिलाएं

    शहर में प्रतिदिन 450 मीट्रिक टन कूड़ा नगर निगम के वाहन उठाते हैं। ये कूड़ा घर, दुकान, फैक्ट्री व अन्य भवनों से निकलता है। इस कूड़े के शत-प्रतिशत निस्तारण के लिए संसाधन अभी उपलब्ध नहीं हैं। मथुरा रोड स्थित एटूजेड प्लांट में 200 मीट्रिक टन कूड़े का ही जैविक खाद बनाकर निस्तारण हो पाता है। प्लांट की इतनी ही क्षमता है। बाकी कूड़ा वहीं डंपिंग यार्ड में डाल दिया जाता है। इससे वहां कूड़े के पहाड़ खड़े हो चुके हैं। यही वजह है कि विशेषज्ञ स्रोत पर ही कूड़े के निस्तारण की सलाह देते हैं। ये काम शहर में जागरुक महिलाएं कर रही हैं। कावेरी एनक्लेव में रचना सिंह, प्रो. इंदु वाष्र्णेय, निरंजनपुरी निवासी डा. अवंजला वाष्र्णेय, प्रगति विहार निवासी अनीता वाष्र्णेय, आरती मित्तल आदि महिलाएं घर व प्रतिष्ठानों पर कूड़े का निस्तारण कर रही हैं। कुछ ने कंपोस्ट यूनिट भी लगा रखी है। 

    किचन गार्डन बनाया

    कावेरी एनक्लेव निवासी रचना सिंह ने किचन गार्डन बनाया है। यहां वह फल, सब्जियां उगाती हैं, बिना किसी रसायनिक खाद व कीटनाशक का उपयोग किए। रचना बताती हैं कि घर के कचरे का निस्तारण वह जैविक खाद बनाकर करती हैं। उनके गार्डन में हर तरह की सब्जी होती है। लौकी, तोरई, टमाटर, बैंगन, पालक के अलावा अमरुद तक उगाए हैं। इन दिनों नींबू हो रहे हैं। 

    इस तरह बनती है खाद 

    कावेरी एनक्लेव निवासी  प्रो. इंदु वाष्र्णेय का कहना है कि जैविक खाद बनाना कठिन काम नही। सब्जियों के छिलके, बचे हुए फल व अन्य गीला कचरा ड्रम में एकत्र किया जाता है। इसमें गोबर  गोबर, मिट्टी डाल दी जाती है। करीब एक महीने में खाद तैयार हो जाती है, जिसका इस्तेमाल पौधों में किया जाता है। 

    इसलिए है जरूरी 

    कृषि विभाग के उपनिदेशक (शोध) डा. वीके सचान ने बताया कि खेतों में रसायनिक खाद और जहरीले कीटनाशकों का अधिक प्रयोग हो रहा है, जिसका असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। यही वजह है कि घर में ही फल-सब्जियां उगाना शुरू किया है, जिसमें जैविक खाद का उपयोग किया जा रहा है।  

    प्रतिष्ठानों में अनिवार्य है कंपोस्ट यूनिट

    बड़े प्रतिष्ठानों में कंपोस्ट यूनिट अनिवार्य हैं। नगर निगम के प्रयास से कई प्रतिष्ठानों में कंपोस्ट यूनिट लग चुके हैं। नगर आयुक्त प्रेम रंजन सिंह ने बताया कि स्रोत पर ही कूड़े के निस्तारण के लिए निगम द्वारा लोगों को जागरुक किया जा रहा है। व्यावसायिक प्रतिष्ठान, हाउसिंग सोसायटी में यह अनिवार्य है। स्रोप ही कूड़े का निस्तारण होगा तो आने वाले दिनों में कूड़ा समस्या नहीं बनेगा। इसको लेकर शहरवासियों को जागरुक हो होगा। महिलाओं के प्रयास सराहनीय हैं।