अलीगढ़ का वह मंदिर जहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू घोड़ी पर बैठकर आए
ऐतिहासिक स्थलों की अपनी अलग ही पहचान होती है। धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के साथ लोगों की आस्था इनके प्रति अपार रहती है। ऐसा ही एक स्थल जिले के कस्बा जवां स्थित नागौड़ बाबा का मंदिर। इससे अनेक किवंदती जुड़ी हैैं।
अलीगढ़, जेएनएन। ऐतिहासिक स्थलों की अपनी अलग ही पहचान होती है। धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के साथ लोगों की आस्था इनके प्रति अपार रहती है। ऐसा ही एक स्थल जिले के कस्बा जवां स्थित नागौड़ बाबा का मंदिर। इससे अनेक किवंदती जुड़ी हैैं। बुजुर्गों के अनुसार यहां भगवान शिव व मां पार्वती रहती थीं। मंदिर स्थल पर नागों का डेरा रहता था। ऐतिहासिक महत्व भी यहां का कम नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी यहां आ चुके हैैं। उन्हें घोड़ी पर बैठाकर लाया गया था। तब धारा 144 लगी थी। इसके चलते मेला रोक दिया गया था, लेकिन नेहरू जी ने मेला पर रोक न लगाने का आदेश दिया था। यह मंदिर अभी भी मौजूद है, लेकिन अब अपनी पहचान खोता जा रहा है।
ऐसे पड़ा मंदिर का नाम
मंदिर में सेवा कर रहे बाबा सेवा गिरी महाराज बताते हैं कि कालांतर में जिस जगह मंदिर है, उसका नाम ताड़का वन था। धीरे-धीरे यहां नागों का निवास होता गया। मान्यता है कि बाबा भोले नाथ व माता पार्वती यहां नाग -नागिन के रूप में रहते थे। बाद में नागराज की गद्दी होने के कारण इसे लोग नागौड़ बाबा मंदिर के नाम से जानने लगे।
मंदिर के नीचे मंदिर
जहां आज मंदिर स्थित है, उसके नीचे एक और मंदिर था। वहां से दिल्ली व काशी तक के लिए सुरंगे बनी हुई थीं, जो बाद में बंद कर दी गईं। अभी कुछ दशकों पहले की बात है कि सपेरों का एक दल पास के ही गांव नगौला में आया हुआ था। उन्होंंने अच्छी किस्म के नाग पकडऩे की इच्छा व्यक्त की थी। लोगों ने बताया था कि अगर उनको नाग पकडऩे है तो नागौड़ बाबा मंदिर पर जाएं। वहां पास में ही सपेरों के दल ने बाग में अपना डेरा डाल दिया व नागौड़ बाबा के मंदिर को मंत्रों से अभिमंत्रित कर बीन बजाना शुरू किया। उस समय हजारों की संख्या में नाग सपेरों की तरफ चल दिए।
ऐतिहासिक महत्व
किवदंती यह भी है की सन 1190 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने जब राजस्थान पर चढ़ाई की थी तो वहां के नागौड़ से कुछ राजपूत परिवार आकर यहां बस गए थे। इन्होंने इस स्थान पर मंदिर बनवाया। उन्हीं के नाम पर यह मंदिर नागौड़ बाबा का मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां के रहने वाले पूर्व सांसद नवाब सिंह चौहान के पुत्र योगेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि यह मंदिर उनके पूर्वजों ने बनवाया था जो राजस्थान के नागौड़ से यहां आकर बस गए थे। इनमें से ही बाबा जयराम सिंह थे जिन्होंने वर्ष 1857 में मुगलों के बाद अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी।
साढ़े तीन सौ बीघे का तालाब था मन्दिर के पास
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि मंदिर के पास ही साढ़े तीन सौ बीघे का तालाब था, जिसका रकबा घटकर अब करीब 70 बीघे ही रह गया है। इसमें मछली पालन होता है। उस समय पर फिरंगी सेना यहां तालाब पर अपने घोड़ों को पानी पिलाती थी।
मेला पर रोक न लगाने की दी थी चेतावनी
पहले जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर प्रांगण में एक बहुत भव्य मेला लगता था एवं कुश्ती दंगल होता था जो गंगा जमुना के बीच में सबसे बड़ा मेला माना जाता था। स्वतंत्रता सेनानी नवाब सिंह चौहान के सुपुत्र योगेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि वर्ष 1953 में चुनाव के दौरान सरकार की तरफ से धारा 144 लगा दी गई थी। इसके चलते मेला रोक दिया गया था। चुनाव प्रचार के दौरान जब पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू यहां आए थे तो पूर्व सांसद नवाब सिंह चौहान उन्हेंं यहां लेकर आए थे। जवां से घोड़ी पर बैठाकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को मेला स्थल तक ले गए थे,जहां उन्होंने सरकारी नुमाइंदों को स्पष्ट चेतावनी दी थी कि मेले के आयोजन को ना रोका जाए।
मंदिर की जमीन पर काट दिए गए हैं पट्टे
ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर पर सैकड़ों बीघा जमीन हुआ करती थी। इस जमीन के ग्राम प्रधानों व राजस्व प्रसासन ने पट्टे काट दिए। मंदिर तक जाने के लिए रास्ता तक नहीं है। पूर्व प्रधान सतीश राघव का कहना है कि शुरू से ही मंदिर की बहुत मान्यता थी। शिव धाम होने के कारण लोग यहां भक्ति को आते रहे हैैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।