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    प्रवेश द्वार भी संवारिए साहब

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 03 Mar 2022 01:29 AM (IST)

    शहर के एक हिस्से को स्मार्ट बनाने की जिद्दोजहद में इंजीनियर साहब पर बन आई। ...और पढ़ें

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    प्रवेश द्वार भी संवारिए साहब

    लोकेश शर्मा, अलीगढ़: शहर के एक हिस्से को स्मार्ट बनाने की जिद्दोजहद में 'इंजीनियर साहब' प्रवेश द्वारों को भूल गए हैं। अरे साहब ये वही द्वार हैं, जहां से लाल-नीली बत्ती लगे काफिले शहर में प्रवेश करते हैं। विशेष अवसरों पर 'गमछा', 'टोपी', 'तीन रंग के पटका धारी' यहीं नजर आते हैं। बड़े-बड़े आंदोलनों के गवाह रहे हैं ये द्वार। यातायात का पूरा दारोमदार भी इन्हीं पर है। जरा-सी भी व्यवस्था बिगड़ी नहीं कि वाहनों की लंबी कतार लग जाती हैं। ऐसा नहीं कि साहब इससे अंजान हैं। इन्हें संवारने की योजना बना चुके हैं। दायित्व भी निर्धारित कर दिए, लेकिन हुआ कुछ नहीं। प्रवेश द्वारों के आसपास सजी दुकानें, अवैध टेंपो स्टैंड और पार्किंग इनकी नाकामी के साक्ष्य दे रहे हैं। सुना है कि प्रवेश द्वार संवारने के लिए उद्यमियों से सहयोग मांगा है। नई सरकार बनते ही काम शुरू हो जाएगा। तीन साल पहले भी ऐसा ही कुछ कहा गया था।

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    सड़क को सड़क ही रहने दीजिए

    शहर की सड़कें ऐसी न थीं, जैसी अब हैं। कूड़ा-कचरा पड़ा रहता था पर इतना नहीं कि राहगीर न निकल सकें। अब हालात ये हैं कि कचरे के ढेर जाम की स्थिति पैदा कर देते हैं। कूड़ा उठाने वाले वाहन तो कभी-कभी मुसीबत बन जाते हैं। बीच सड़क पर ट्रैक्टर-ट्राली को आड़ा तिरछा खड़ा कर जेसीबी से कूड़ा उठाया जाता है। जब तक कूड़ा उठ न जाए, दोनों ओर यातायात थम जाता है। कूड़ा उठाने के वाहन भी दोपहर 12 बजे निकलते हैं, जबकि कूड़ा सुबह ही उठ जाना चाहिए। जिम्मेदार अफसर आंखें मूंदे हैं। इनसे इतना भी नहीं होता कि सुबह एक राउंड ही मार आएं, देख लें कि कूड़ा किस तरह उठाया जा रहा है। ये स्थिति तब है, जब आए दिन शिकायतें हो रही हैं। लोग पूछ रहे हैं, सड़क पर ही कूड़ा क्यों? सौ से अधिक डलाबघर सड़कों पर हैं। सड़क को सड़क ही रहने दीजिए।

    कहीं ये साजिश तो नहीं

    सफाई वाले महकमे में इन दिनों हलचल-सी है। वजह कोई खास नहीं, मगर बनाई जा रही है। एक साहब को उन्हीं के महकमे में नजरअंदाज किया जा रहा है। मौका कोई भी हो, पब्लिसिटी दूसरों की होती है। साहब कहीं नजर नहीं आते। खबरों से अक्सर गुम रहते हैं। एक दिन तो अधीनस्थों की क्लास ही लगा ली। पूछने लगे, हमारे साथ ही ऐसा क्यों? न फोटो, न नाम। अधीनस्थों ने अपना-अपना पक्ष रखा। बोले, सब भेजा गया था, हमारा कोई कसूर नहीं है। इन दलीलों पर साहब को भरोसा नहीं हुआ। कहने लगे, तुम लोगों के नाम, फोटो कैसे छा गए? हर बार ऐसा ही क्यों होता है? कहीं ये साजिश तो नहीं? साहब को इतने गुस्से में पहली बार अधीनस्थों ने देखा था। इसलिए ज्यादा कुछ न बोले, बस सुनते रहे। साहब बोलते गए और ये सिर हिलाते रहे। फिर सोचने लगे कि गलती किस स्तर से हुई।

    नेताजी दूसरी ओर भी देखिए

    तीन रंग का पटका पहने नेताजी इन दिनों शहर की सफाई व्यवस्था पर फोकस किए हुए हैं। समर्थकों के साथ जहां तहां चले जाते हैं। नाले-नाली, गंदगी, जलभराव की ओर इशारा कर बदहाल व्यवस्था पर शासन-प्रशासन को कोसते हैं। समर्थकों के साथ सिर पीटते इनके वीडियो इंटरनेट मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं। जिस इलाके में वे जाते हैं, स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने का प्रयास भी करते हैं। इसी भरोसे पर उन्होंने उम्मीदवारी के लिए दावेदारी भी की थी, मगर चूक गए। समर्थक कह रहे हैं, नेताजी दूसरी ओर भी देखिए। समस्याएं तो और भी हैं, हर जगह हैं। कुदेरोगे तो मिल ही जाएंगी। अफसरों के बीच पैंठ बनाने की सलाह भी दी जा रही है। राजनीति के प्लेटफार्म पर तब शायद कुछ लाभ मिल जाए। नेताजी समझ तो रहे हैं, लेकिन आगे कदम बढ़ाने में झिझक भी रहे हैं। ऐसे तो काम चल नहीं सकता, उठिये..आगे बढि़ये।