काकोरी कांड के नायकों के बलिदान दिवस पर विशेष : ...आशिक का जनाजा है, जरा धूम से निकले
काकोरी कांड के नायकों के बलिदान दिवस पर विशेष857 की क्रांति में आशातीत सफलता न मिलने के कारण देश में लंबे समय तक क्रांतिकारी गतिविधियों की गति धीमी अव ...और पढ़ें

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। 1857 की क्रांति में आशातीत सफलता न मिलने के कारण देश में लंबे समय तक क्रांतिकारी गतिविधियों की गति धीमी अवश्य पड़ी, परंतु क्रांतिकारी संगठन देश को आजाद कराने के दायित्व से विमुख नहीं हुए l नौ अगस्त 1925 की अर्धरात्रि में आज़ादी के दीवानों ने स्वतंत्रता संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिये सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली आठ डाउन पैसेंजर ट्रेन से सरकारी खजाना लूट लिया। जोखिम भरी इस घटना को अंजाम देने में चंद्र शेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी, शचींद्र नाथ बख़्शी, गोविंदचरण कर, मन्मथनाथ गुप्त, रामकृष्ण खत्री आदि क्रांतिकारी शामिल रहे l इनमें से रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सज़ा सुनाई गई, शेष क्रांतिकारियों को लंबे कारावास दिए गए l
काकोरी कांड पर शोध अध्ययन करने वाले सेवानिवृत्त पुलिस क्षेत्राधिकारी विद्यार्णव शर्मा बताते हैं कि फांसी से पूर्व राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी मृत्यु की कल्पना करते हुए लिखा-
उमड़ आए आंखों में प्राण, श्वास में आई अंतिम वायु,
धूल में मिलने को चली, फूल सम खिलकर मेरी आयु,
उठा था मन में मेरे भाव, बसूंगा मृत्यु वधू के द्वार,
निज रक्त रंग से आज,शत्रु को दूंगा कुछ उपहार,
बधिक, धिक, अधिक करे मत देर, खींच तख्ते की डोरी डार,
चलूं जीवन के उस पार,चखा दे मृत्यु वधू का प्यारl
विद्यार्णव के अनुसार ये क्रांतिकारी बहुत साहसी थे l अशफ़ाक उल्ला खां के वकील कृपा शंकर हजेला अंतिम बार 17 दिसंबर 1927 को उनसे मिलने फैज़ाबाद जेल गए l अशफाक उल्ला ने कहा हजेला साहब परसों 19 दिसंबर को मुझे फांसी होगी, मैं चाहता हूं आप फांसी के दिन मेरे सामने खड़े होकर देखते जाइए, मैं किस ख़ुशी से फांसी पर चढ़ता हूं l
ये सुनकर उनके वकील हजेला की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा मुझमें ये नजारा देखने की हिम्मत नहीं है, मगर तुम्हारे मजार पर फूल चढ़ाने जरूर आऊंगा l ठाकुर रोशन सिंह ने अपने पत्र में लिखा-हमारे शास्त्रों में लिखा है कि धर्मयुद्ध में मरने वालों की वही गति होती है जो तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियों की होती है l फांसी से पूर्व राजेंद्र लाहिड़ी ने कहा, देश की बलिवेदी पर मेरे प्राणों की आवश्यकता है, मेरी मौत व्यर्थ नहीं जाएगी l राजेन्द्र लाहिड़ी को निश्चित तिथि से पूर्व ही 17 दिसम्बर 1927 को गोंडा जेल में फांसी दे दी गई l 19 दिसम्बर 1927 को प. राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद, ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद की मलाका जेल में फांसी दी गई l
राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी अंतिम यात्रा की कल्पना इस तरह की-
‘खुशबू ए वतन जब भी इधर घूम के निकले,कहिएगा मेरी रूहे ख़लिश चूम के निकले,बिस्मिल का नहीं हिन्द की पाकीजा जमी के ,आशिक का जनाजा है, जरा धूम से निकले l
देश के असंख्य युवाओं ने अपना बलिदान देकर हमें आज़ादी दिलाई, इसे अक्षुण रखना हम सभी का दायित्व है l

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