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    एक सोच ने रोक दिए 350 मृत्यु भोज Aligarh News

    By Sandeep SaxenaEdited By:
    Updated: Sat, 20 Jul 2019 02:21 PM (IST)

    अलीगढ़ में एक ऐसा अभियान चलाया जा रहा है जिसमें लोगों को मृत्युभोज के परित्याग के लिए जागरूक किया जा रहा है। डॉ. रक्षपाल सिंह का संगठन अब तक 350 मृत्य ...और पढ़ें

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    एक सोच ने रोक दिए 350 मृत्यु भोज Aligarh News

    विनोद भारती, अलीगढ़। हो सकता है इस प्रयास से आप सहमत हों या असहमत। लेकिन अलीगढ़ में एक ऐसा अभियान चलाया जा रहा है जिसमें लोगों को मृत्युभोज के परित्याग के लिए जागरूक किया जा रहा है। डॉ. रक्षपाल सिंह का संगठन अब तक 350 मृत्यु भोज रुकवा चुका है। मिशन का दायरा अलीगढ़ की सीमा लांघकर पड़ोसी हाथरस, मथुरा और बुलंदशहर तक जा पहुंचा है।

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    ऐसे हुई शुरूआत
    मिशन के शुरू होने की रोचक कहानी है। एक जनवरी 2016 को गांव गुरसिकरन में रनवीर चौहान की मृत्यु हो गई। आठवें दिन पूर्व ब्लॉक प्रमुख योगेंद्र पाल सिंह लालू ने माली हालत ठीक न होने से परिजनों को मृत्यु भोज न कराने का सुझाव दिया। ये राजी तो हो गए, पर वहां लोगों ने इसे राजनीति से प्रेरित सोच बताया। उन्होंंने डीएस कॉलेज के पूर्व प्रवक्ता डॉ. रक्षपाल सिंह से संपर्क किया। कहा कि इस कुरीति को खत्म किया जा सकता है, बशर्ते सभी एकजुट होकर मुहिम चलाएं। लिहाजा सभी ने मिलकर आठ जनवरी 2018 को मृत्यु भोग परित्याग मिशन की स्थापना की।

    ऐसे शुरू हुआ कारवां

    मिशन के पदाधिकारी किसी के न रहने पर परिजनों को सांत्वना और श्रद्धांजलि सभा करने लगे। इसी बीच मृत्यु भोज संस्कार  की बात करते। कहते हैैं कि केवल हवन व शुद्धि पर्याप्त है। अब तक जितने परिवारों से संपर्क किया गया, उनमें से 20 फीसद में सफलता मिली है।

    रंग ला रही कवायद

    संगठन कोषाध्यक्ष राजेंद्र पाल सिंह बताते हैं कि अब तक 559 परिवारों से परिवार में किसी मृत्यु भोज न करने के संकल्प पत्र भरवाए जा चुके हैं। कुछ माह पहले बरौली विधायक दलवीर सिंह की पत्नी का निधन हुआ, उन्होंने भी मिशन की सलाह पर मृत्यु भोज की बजाय हवन किया। इसी तरह पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष तेजवीर सिंह गुड्डू ने अपनी मां वंशा देवी की तेरहवीं पर मृत्यु भोज न कराकर, 16 गरीब कन्याओं का विवाह कराया।

    गांव-गांव जगाई अलख
    डॉ. रक्षपाल के अनुसार पदाधिकारी लोगों को जागरूक करने के लिए हर माह एक ब्लॉक में बैठक करते हैं। इसमें 150-200 लोग जुटते हैं। 38 बैठकें हो चुकी हैं। चार जनपदीय सम्मेलन भी कर चुके हैं।

    मृत्यु भोज के पीछे भ्रांतियां
    - सूतक दूर होते हैं, घर पवित्र होता है।

    - मृतक की आत्मा को शांति मिलेगी।

    - मृत्यु भोज के बाद ही आत्मा की विदाई।

    - मृत्यु भोज के बिना आत्मा राख में दबी रहती है।

    नहीं माना समाज का दवाब

    ठा.तेजवीर सिंह ने बताया कि पिछले साल 16 जुलाई को पिताजी का निधन हुआ था। मृत्यु भोज कराने का समाज का दवाब था, लेकिन डॉ. रक्षपाल सिंह व उनकी टीम के समझाने पर हमने ऐसा नहीं किया। तेरहवीं वाले दिन हवन व ब्राह्मण भोज कराया था। ज्ञानेंद्र पाल सिंह बताते हैं कि मेरी पत्नी ओमवती की पिछले साल निधन हो गया। परित्याग मिशन के आह्वïान पर मैंने मृत्यु भोज नहीं किया। हवन-यज्ञ के बाद कुछ खाद्यान्न व कपड़े अनाथालय भिजवा दिए। 

    विद्वानों का मत
    मृत्युभोज में सिर्फ एक व्यक्ति को भोजन कराना जरूरी
    वाराणसी के ज्योतिषाचार्य डॉ.रामेश्वर नाथ ओझा  का कहना है कि मृत्युभोज श्राद्ध का अंग है। बिना भोज के कोई भी श्राद्ध पूरा नहीं होता है। इसका वर्णन गरुण पुराण, श्राद्ध विवेक, प्रेत मंजरी, निर्णय सिंधु, धर्म सिंधु, धर्मशास्त्र संग्रह में भी है। मृत्युभोज में कम से कम एक व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए। अधिकतम का कोई जिक्र नहीं है, हां यह जरूर कि संख्या विषम होनी चाहिए। खाने में अन्न के साथ-साथ दूध और दही का विशेष का मान है जो पितरों को प्राप्त है।

    13 ब्राह्मïणों को भोज कराने का प्रावधान
    काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री आचार्य ऋषि द्विवेदी ने बताया कि सनातन धर्म में 16 संस्कारों में गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि तक का प्रावधान है। माना जाता है कि जो जीव चला गया उसकी शुद्धि के लिए परिवारीजन मृत्युभोज कराते हैं। इसमें 13 ब्राह्मïणों को भोज कराने का प्रावधान है।