जब गांधीजी की एक अपील पर जली थी विदेशी कपड़ों की होली, हजारों छात्र पहनने लगे खादी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वदेशी का ऐसा बिगुल फूंका था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के छात्रों ने विदेशी कपड़ों की होली जला दी थी।
अलीगढ़ [संतोष शर्मा]। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वदेशी का ऐसा बिगुल फूंका था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के छात्रों ने विदेशी कपड़ों की होली जला दी थी। तब कैंपस के हजारों छात्रों ने खादी के कपड़े पहनना भी शुरू कर दिया था। यूं तो बापू के चरण अलीगढ़ की सरजमीं पर तीन बार पड़े, लेकिन यह पहला सुनहरा मौका था जब कस्तूरबा भी उनके साथ यहां आई थीं।
एएमयू की स्थापना (वर्ष 1920) का स्वर्णिम इतिहास यह भी बताता है कि बापू ही वह शख्स हैं जिन्हें छात्रसंघ ने पहली आजीवन मानद सदस्यता दी थी। उसके बाद यूनिवर्सिटी के 98 बरस पुराने सफर में सिर्फ 35 शख्स ही ऐतिहासिक स्टूडेंट यूनियन हॉल का हिस्सा बन पाए। बापू के प्रति देशव्यापी लगाव ही था कि जब उनकी चिता की राख लेकर ट्रेन अलीगढ़ से गुजरी तो रेलवे स्टेशन पर पांव रखने की जगह नहीं बची थी। हजारों लोगों ने ट्रेन पर पुष्प वर्षा की थी।
एएमयू के प्रोफेसर एमिरेट्स व इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब बताते हैं कि महात्मा गांधी पहली बार 1916 में मुहम्मडन एंग्लो ओरियंटल (एमएओ) कॉलेज आए थे। यही वो कॉलेज है जो 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के रूप में तब्दील हुआ। बापू एमएओ कॉलेज के कार्यक्रम में शामिल हुए। दोबारा अलीगढ़ आगमन 1920 में हुआ। तभी, एएमयू छात्रों ने उन्हें छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी। उसी वक्त एएमयू की जामा मस्जिद पर जामिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की नींव रखी गई। यह बाद में दिल्ली में स्थापित हुई। बापू उस वक्त एएमयू के हबीब बाग (अब एकेडमिक स्टॉफ कॉलेज) में ठहरा करते थे। हबीब बाग के मालिक अब्दुल मजीद ख्वाजा थे। बापू ने ख्वाजा की पत्नी खुर्शीद जहां को उर्दू में कई खत भी लिखे थे।
मोहानी ने खोला था खादी भंडार
गांधीजी तीसरी बार पांच नवंबर 1929 को पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ अलीगढ़ आए। एएमयू में शिक्षक-छात्रों को भी संबोधित किया था। चिंतामणि की पुस्तक ‘अलीगढ़ का राजनीतिक इतिहास’ में लिखा है कि बापू ने छात्रों से खादी के इस्तेमाल की अपील की थी। खलीफा उमर की सादगी का भी हवाला दिया था कि किस तरह वह विलासी जीवन से दूर रहे। फिर, छात्रों ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। छात्रों ने खिलाफत आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। गांधीजी को यहां चांदी की तश्तरी भेंट की गई थी।
मुफ्त में ऑटोग्राफ
इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब बताते हैं कि गांधीजी के पीए रहे प्यारे लाल ने ‘कलेक्टेड वक्र्स ऑफ महात्मा गांधी’ में लिखा है कि 1928 में गांधीजी ने छात्रों को नि:शुल्क ऑटोग्राफ दिए थे। इसके एवज में छात्रों से खादी पहनने की शपथ ली। गांधीजी ऑटोग्राफ उन्हें ही देते थे, जो तिलक फंड में सहयोग देते थे।
प्रो. हबीब के अनुसार मेरे चाचा मोहम्मद मुजीब, जामिया मिलिया इस्लामिया डीम्ड यूनिवर्सिटी में कुलपति थे। उन्हें तनख्वाह मिलने में परेशानी पर गांधीजी ने मेरे पिताजी से पूछा कि आपके पिता (दादा) इनकी कितनी मदद कर सकते हैं? महात्मा गांधी ने दादा को पत्र भी लिखा। दादा ने चाचा को 500 रुपये देने की बात कही तो बापू ने कहा 150 रुपये दो, इससे ज्यादा देने पर लड़का बिगड़ जाएगा।