Move to Jagran APP

किडनी फेल होने पर अब डायलिसिस को कहे अलविदा, जानिए कैसे Aligarh News

किडनी फेल होने का इलाज हीमोडायलिसिस है जो एक मशीन के जरिये खून में मौजूद कचरे को साफ करने की एक मेकेनिकल प्रक्रिया होती है। वहीं पेरिटोनियल डायलिसिस में पेट के जरिए केमिकल साल्यूशंस डालकर विषैले तत्वों को निकाला जाता है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Fri, 12 Mar 2021 05:44 PM (IST)Updated: Fri, 12 Mar 2021 05:44 PM (IST)
किडनी फेल होने पर अब डायलिसिस को कहे अलविदा, जानिए कैसे Aligarh News
किडनी फेल होने का इलाज हीमोडायलिसिस है, जो खून में मौजूद कचरे को साफ करती है।

अलीगढ़, जेएनएन। किडनी फेल होने का इलाज हीमोडायलिसिस है, जो एक मशीन के जरिये खून में मौजूद कचरे को साफ करने की एक मेकेनिकल प्रक्रिया होती है। वहीं, पेरिटोनियल डायलिसिस में पेट के जरिए केमिकल साल्यूशंस डालकर विषैले तत्वों को निकाला जाता है। किडनी खराब होने पर डायलिसिस सबसे ज्यादा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि  डायलिसिस के मुकाबले किडनी प्रत्यारोपण बेहतर है। डायलिसिस केवल शरीर से विषैले पदार्थ और पानी निकालने का काम करती है। जबकि, प्रत्यारोपण के बाद नई किडनी लगाई जाती है। मरीज ज्यादा ऊर्जाशील महसूस करते हैं। वे अपनी दैनिक गतिविधियां अधिक आसानी से करने लग जाते हैं। मरीजों के खानपान पर ज्यादा पाबंदियां भी नहीं रह जाती हैं। अत्याधुनिक सर्जिकल तकनीकों और बेहतर चिकित्सा की बदौलत ट्रांसप्लांट सर्जरी की सफलता दर 97 फीसदी से अधिक हो गई है। यह सलाह फोर्टिस हास्पिटल के नेफ्रोलाजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट डिपार्टमेंट के अपर निदेशक डा. अनुजा पोड़वाल ने दी है

loksabha election banner

डायलिसिस पर कब तक टिकी रहेगी जिंदगी 

डा. पोड़वाल ने बताया कि मानव शरीर में प्रतिदिन की क्रियाओं में किडनी की अहम भूमिका होती है और किडनी हमारे जीवन जीने के अनिवार्य अंग होते हैं। किडनी हमारे शरीर से विषैले तत्व और कचरा निकालने का काम करती हैं। इनसे सामान्य शारीरिक कार्यप्रणाली दुरुस्त रखने के लिए न सिर्फ शरीर में पानी और अम्ल-क्षार का संतुलन बना रहता है, बल्कि रक्तचाप (बीपी)  संतुलित रखने और शारीरिक विकास के लिए हार्मोन संतुलित रखने, हड्डियों को मजबूत बनाए रखने और खुन बनने वाल हार्मोन (हीमोग्लोबिन) बनाने के लिए भी अहम भूमिका निभाता है। डायलिसिस के मुकाबले किडनी ट्रांसप्लांट से जीवन की गुणवत्ता भी ज्यादा बेहतर हो जाती है। मरीजों की जीवनचर्या डायलिसिस पर टिकी नहीं रह जाती है। 

अत्याधुनिक तकनीकि से आसान हुआ प्रत्यारोप 

डॉ. अनुजा पोड़वाल के अनुसार अत्याधुनिक सर्जिकल तकनीकों और बेहतर चिकित्सा की बदौलत ट्रांसप्लांट सर्जरी की सफलता दर 97 फीसदी से अधिक हो गई है। सर्जरी के एक से दो हफ्ते के बाद ही दानकर्ता भी सामान्य जीवन जीने लग जाता है और उसे अस्पताल में तीन-चार दिन से ज्यादा रहना भी नहीं पड़ता है। किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी में दानकर्ताओं को कोई जोखिम या परेशानी नहीं उठानी पड़ती है। किडनी दान करने वाले पर खानपान की कोई पाबंदी नहीं होती और न ही लंबे समय तक दवाइयां लेनी होती है। उनकी उम्र सीमा सामान्य रहती है और पूरी तरह वह स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। जिन मरीजों की किडनी की कार्यप्रणाली कम होने लगती है, उनमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को डायलिसिस से पहले प्रत्यारोपण की सलाह दी जाती है, क्योंकि डायलिसिस के अल्पकालीन और दीर्घकालीन दुष्परिणाम होते हैं और शुरुआती चरण में ही ट्रांसप्लांट करा लेने से इस दुष्परिणाम से बचा जा सकता है।

आखिरी चरण में पहुचे मरीजों के लिए वरदान 

किडनी रोग के आखिरी चरण में पहुंच चुके मरीजों के जीवन पर किडनी यानि गुर्दा प्रत्यारोपण का बहुत ज्यादा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मरीजों को आजीवन इम्युनोसप्रेसेंट दवाइयां लेने की जरूरत पड़ती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका शरीर प्रत्यारोपित की गई किडनी को अस्वीकार न करे। ऐसे मरीजों में संक्रमण का खतरा थोड़ा ज्यादा रहता है, लेकिन बहुत कम मात्रा में अत्याधुनिक इम्युनोसप्रेसेंट दवाइयां लेते रहने से यह खतरा बहुत कम हो जाता है। यूं कहें कि प्रत्यारोपण आखिरी चरण में पहुंचे किडनी रोगियों के लिए वरदान है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.