AMU को स्पेशल पैकेज देकर नेहरू ने लिखवाया था मुगल इतिहास, मुगलिया हिस्ट्री पर रिसर्च के लिए रखे गए थे 12 शिक्षक
मुगलों का इतिहास लिखने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एएमयू को विशेष पैकेज दिया था। इसके तहत विश्वविद्यालय ने फारसी, अरबी और संस्कृत जानने वाले 12 शोधकर्ताओं की नियुक्ति की। इन्हीं में इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब भी शामिल थे, जिन्होंने इतिहास विभाग में पहली बार ज्वाइन किया और बाद में विभागाध्यक्ष बने।

संतोष शर्मा, जागरण, अलीगढ़। मुगलों का इतिहास यूं ही नहीं लिखा गया था। पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को विशेष पैकेज देकर लिखवाया था। शोध के लिए यूनिवर्सिटी ने 12 ऐसे शिक्षकों की भर्ती की, जो फारसी, अरबी और संस्कृत के जानकार थे। उन्हीं में शामिल थे इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब। उनकी इतिहास विभाग में पहली ज्वाइनिंग भी थी। बाद में विभागाध्यक्ष भी बने।
प्रो. इरफान ने द एग्रेरियन सिस्टम आफ मुगल इंडिया (1556-1707) लिखा। इसमें उन्होंने मुगलों के शासनकाल के दौरान कृषि उत्पादन, भू-राजस्व संग्रह और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को शामिल किया। वर्ष 1953 से पहले मुगल इतिहास को लिखने वाले कुछ ही इतिहासकार थे। बहुत ज्यादा लेखन नहीं हुआ था। इसी के चलते पं. नेहरू ने मुगलों के इतिहास पर शोध की जिम्मेदारी एएमयू को सौंपी। प्रो. इरफान हबीब के अनुसार उस समय नेहरू सरकार में डा. ताराचंद शिक्षा सचिव थे। फारसी, अरबी और संस्कृत के विद्वान थे।
नेहरू ने उन्हें बुलाकर कहा था कि इतिहास में केवल प्राचीन भारत ही पढ़ाया जाता है। मुसलमानों का काल नहीं पढ़ाया जाता, जबकि उनका 600 साल का इतिहास है। पं. नेहरू ने डा. ताराचंद को कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए। शोध के लिए एएमयू को चुना गया। सरकार ने इसके लिए यूनिवर्सिटी को ग्रांट दी। खास बात यह थी यूनिवर्सिटी की ओर से इसकी मांग नहीं की गई थी। इस ग्रांट से दस-बारह ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति की गई जो फारसी, अरबी और संस्कृत जानते थे। इनमें चार रिसर्च फैलो, रीडर, लेक्चरर और प्रोफेसर थे।
थिंकलाइन आफ द मुगल एंपायर
मुगल इतिहास पर शोध के लिए नियुक्त हुए रीडर डा. सतीश चंद्र ने 18वीं शताब्दी में थिंकलाइन आफ द मुगल एंपायर (1707-1748) लिखा। 1707 से 1748 की मुगल साम्राज्य की रेखा (थाटलाइन) औरंगजेब की मृत्यु के बाद से शुरू हुए साम्राज्य के पतन को दर्शाती है। इसे परवर्ती मुगल काल के नाम से भी जाना जाता है। इस काल में मुगल सम्राटों को आंतरिक कलह, कमजोर उत्तराधिकार, सैन्य कमजोरी और बाहरी शक्तियों, जैसे मराठा, सिखों, जाटों और यूरोपीय कंपनियों (अंग्रेजों और फ्रांसीसी) के बढ़ते प्रभुत्व का सामना करना पड़ा। यह काल मुगल साम्राज्य की धीरे-धीरे समाप्ति को दर्शाता है, जो अंततः 1857 के विद्रोह के बाद पूरी तरह समाप्त हो गया।
ऋषियों के कथन को नकारा
प्रो. इरफान हबीब की द एग्रेरियन सिस्टम आफ मुग़ल इंडिया बहुत ही चर्चित किताब है। इसमें उन्होंने मुगल काल में कृषि उत्पादन, यंत्र, खेती युक्त जमीन आदि को विस्तार दिया है। इसमें प्रो. इरफान ने लिखा है कि भारत के मैदानों, घाटियों और पहाड़ी ढलानों का विशाल कृषि योग्य विस्तार प्रकृति के विरुद्ध एक अड़ियल संघर्ष के दौरान निर्मित हुआ है। इसे भारतीय किसान ने हजारों वर्षों से जारी रखा है। जंगल और बंजर भूमि, उसके कुदाल और हल के आगे, अनंत चक्रों में, पीछे हटी, फिर से उभरी और फिर से पीछे हटी।
प्रो. इरफान ने लिखा है कि कृषि योग्य क्षेत्र के बारे में समकालीनों द्वारा दिए गए सामान्य कथन दुर्भाग्य से बहुत उपयोगी नहीं हैं, क्योंकि वे या तो अस्पष्ट हैं या अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। अकबर के शासनकाल के इतिहासकार आरिफ कंधारी, जबाकर अकबरी, सुजान राय का हवाला देते हुए लिखा है कि उसके साम्राज्य की सारी भूमि कृषि योग्य थी, लेकिन मुअत्तमद खान ने अकबर की मृत्यु के समय साम्राज्य के अपने विवरण में हमें बताया है कि ऋषियों के कथन के अनुसार कुल क्षेत्रफल का केवल एक-तिहाई ही कृषि योग्य माना जाता था।

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