अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुस्लिम शिक्षक पढ़ाते हैं राम:-रामौ-रामा:
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में मुस्लिम शिक्षक द्वारा संस्कृत पढ़ाने का विवाद सुर्खियों में हैं। लीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में भी इसका विरोध हो रहा है।
जेएनएन, अलीगढ़: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में मुस्लिम शिक्षक द्वारा संस्कृत पढ़ाने का विवाद सुर्खियों में हैं। कुछ इसे जायज ठहरा रहे हैं तो कुछ विरोध कर रहे हैैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में भी इसका विरोध हो रहा है। एएमयू की बात करें तो यहां संस्कृत विभाग में ङ्क्षहदू शिक्षकों की संख्या कम है, जबकि ङ्क्षहदू छात्रों की संख्या अधिक है। मुस्लिम शिक्षक ङ्क्षहदू-मुस्लिम छात्र-छात्राओं को रामायण, गीता, वेद आदि का पाठ पढ़ा रहे हैं। राम: रामौ रामा: के भी उच्चारण होते हैं। इस पर कभी विवाद नहीं हुआ।
संस्कृत विभाग में हैं 7 शिक्षक
एएमयू में 1877 से मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल (एमएओ) कॉलेज के समय से ही संस्कृत पढ़ाई जा रही है। 1920 में यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलने के बाद संस्कृत विभाग बनाया गया। पं. राम स्वरूप शास्त्री पहले विभागाध्यक्ष बनाए गए। वर्तमान में संस्कृत विभाग की बात करें तो सात शिक्षक-शिक्षिकाएं हैं। इनमें तीन गैर मुस्लिम शिक्षक भी हैं। पीएचडी में पिछले साल 24 छात्र-छात्राएं थे। इनमें अधिकांश छात्र ङ्क्षहदू ही थे। इस साल पांच छात्रों को पीएचडी में दाखिला मिला है। इनमें तीन ङ्क्षहदू छात्र हैं। एमए (प्रथम सेमेस्टर) में नौ छात्रों में छह और एमए (तृतीय सेमेस्टर) में पांच मुस्लिम छात्र हैं। सभी छात्र एक साथ अध्ययन करते हैं। एमए के पाठ्यक्रम में गीता, रामायण, वेदांत, यजुर्वेद, सामवेद के अलावा महाभारत का भी पाठ पढ़ाया जाता है। मुस्लिम छात्र संस्कृत के श्लोक धड़ाधड़ बोलते हैं।
प्रो. परमानंद को अवार्ड हुई थी पहली पीएचडी
संस्कृत विभाग से सबसे पहली पीएचडी प्रो. परमानंद शास्त्री ने 1958 में की थी। दो बार चेयरमैन भी बने। उन्होंने संस्कृत में ' आनंद गालिबियमÓ पुस्तक भी लिखी। डॉ. रघुनाथ पांडे डीलिट करने वाले पहले छात्र बने।
अध्यापकों का मत
एएमयू संस्कृत विभाग के प्रो. हिमांशु शेखर का कहना है कि बीएचयू में ट्रेडिशनल और मॉर्डन दो डिपार्टमेंट हैं। संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय ट्रेडिशनल है। मदन मोहन मालवीय ने सिद्धांत बनाया था कि विद्या धर्म विज्ञान संकाय गुरुकुल सिस्टम की तरह होगा। इसमें उन लोगों को लिया जाएगा, जो ङ्क्षहदू रीति-रिवाज पढ़े हों। शिलालेख पर भी यही दर्ज है। इसके चलते ही छात्र विरोध कर रहे हैं। मेरे विचार से विरोध ठीक नहीं हैं। साथ ही संस्कृत विभाग के चेयरमैन प्रो. मो. शरीफ ने बताया कि एएमयू में ङ्क्षहदू-मुस्लिम एक साथ पढ़ते हैं। शिक्षक भी दोनों धर्मों से हैं। यहां कभी कोई विवाद नहीं हुआ। बीएचयू में पैदा हुए विवाद को इंतजामिया से बात कर सुलझाया जा सकता था। कुलपति से भी इस मामले में चूक हुई है। छात्रों का विरोध कतई उचित नहीं हैं। उन्हें पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।