रामायण में फिर गूंजी उनकी लयबद्ध रामचरित मानस की चौपाइयां Aligarh news
करीब 32 बाद घर-घर में राम पधारे। रामचरित मानस की चौपाई मंगल भवन अमंगल हारीÓ फिर गूंजी तो हृदय में पुरानी यादें ताजा हो गईं।
अलीगढ़ जेएनएन : करीब 32 बाद घर-घर में राम पधारे। रामचरित मानस की चौपाई 'मंगल भवन, अमंगल हारीÓ फिर गूंजी तो हृदय में पुरानी यादें ताजा हो गईं। और याद आए इस चौपाई को अपनी खनकती आवाज व धुन से संवारने वाले संगीतकार रवींद्र जैन। वही रवींद्र जैन, जिनकी आवाज सीरियल में गूंजती थी तो पूरा देश थम जाता था। यह देश की सिग्नेचर आवाज थी। शायद, नई पीढ़ी इस बात से अनभिज्ञ हो कि ये महान संगीतकार अलीगढ़ की सरजमीं पर ही पैदा हुए।
नेत्र दिव्यांग थे रवींद्र
28 फरवरी 1944 को मोहल्ला कनवरी गंज में जन्मे रवींद्र जैन के पिता इंद्रमणि जैन वैद्याचार्य थे। रवींद्र जन्म से ही नेत्र दिव्यांग थे। सूरदास जैसी विभूतियों से प्रेरणा पाकर संगीत साधना शुरू की। युवावस्था में कोलकाता चले गए और संगीत में पारंगत होकर मुंबई। रवींद्र जैन ने भारतीय शास्त्रीय व लोक संगीत और उन पर आधारित कर्णप्रिय गीतों से लोगों के दिल में जगह बना ली। कई फिल्म फेयर अवार्ड मिले। सरकार ने पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा।
रामायण से घर-घर लोकप्रिय
दूरदर्शन पर रामायण सीरियल शुरू होने से पहले रवींद्र जैन तमाम सुपरहिट फिल्मों में गीत-संगीत से धमाल मचा चुके थे, मगर इस सीरियल के साथ घर-घर में लोकप्रिय हो गए। रामायण के टाइटल सांग, मंगल भवन अमंगल हारी... को सुनकर लोग काम-धंधा छोड़कर टीवी से चिपक जाते थे। रामायण के साथ श्रीकृष्ण, जय हनुमान, अलिफ लैला आदि सीरियल से अपार शोहरत पाई। नौ अक्टूबर 2015 को उनकी मृत्यु हुई।
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