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    Ganga-Jamuni Tehzeeb : एएमयू के छात्र रहे हसरत मोहानी भी थे श्रीकृष्‍ण के दीवाने, जन्‍माष्‍टमी पर ब्रज आना नहीं भूलते थे

    By Anil KushwahaEdited By:
    Updated: Sat, 20 Aug 2022 10:33 AM (IST)

    Ganga-Jamuni Tehzeeb स्‍वतंत्रता आंदोलन में इंकलाब जिंदाबाद का नारा देने वाले मौलाना हसरत मोहानी भी श्रीकृष्‍ण के दीवाने रहे हैं। वेे हर जन्‍माष्‍टमी पर ब्रज आते थे। उन्‍होंने एएमयू में रहकर पढ़ाई की और कुछ समय अलीगढ़ में बिताया था।

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    श्रीकृष्‍ण की भक्‍ति में लीन रहने वाले मौलाना हसरत मोहानी का फाइल फोटो।

    संतोष शर्मा, अलीगढ़ । Ganga-Jamuni Tehzeeb : आस्था पर किसी का कोई जोर नहीं होता। धर्म-जाति रास्ते भी नहीं रोकतीं। स्वतंत्रता आंदोलन में इंकलाब जिंदाबाद का नारे देने वाले Maulana Hasrat Mohani की एक पहचान भगवान कृष्ण के भक्त के रूप में भी थी। वे कहीं भी होते, लेकिन shri krishna janmashtami पर ब्रज आना न भूलते। मथुरा जरूर जाते। वहां पूरी रात कृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। मथुरा-वृंदावन की गलियों में घूमकर उन्होंने कृष्ण भक्ति में अपने को रमा लिया था।  

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    Hasrat ki poetry और उनकी कृष्ण भक्ति देश की उस Ganga-Jamuni Tehzeeb की निशानी है जिसने दुनिया को lesson of secularism पढ़ाया। उन्होंने श्रीकृष्ण पर नज्म लिखीं। इनमें शामिल नज्म `मथुरा कि नगर है आशिकी का, दम भरती है आरजू उसी का, पैगाम ए-हयात-ए-जावेदां था हर नामा कृष्ण बांसुरी का' काफी प्रसिद्ध हुई।

    मूल रूप से उन्नाव (कानपुर) के रहने वाले मौलाना हसरत मोहानी का काफी समय अलीगढ़ में बीता था। उन्होंने 1903 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से बीए किया। इसके बाद एलएलबी। छात्र राजनीति से ही वह freedom movement में कूद पड़े थे। वह बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय की विचारधारा मानते थे। एएमयू के हास्टल में तिलक की तस्वीर लगाने पर उन्हें निलंबित किया गया था। मौलाना मोहानी पूरी जिंदगी कृष्ण प्रेम से सराबोर थे। उनका अधिकांश समय मथुरा में बीता था। अलीगढ़ में रहने के दौरान वह मथुरा आते-जाते रहे। वह मथुरा के पुराने और ऐतिहासिक मंदिरों में बैठकर Discourses of Krishna Leela सुनते थे।

    हसरत के बारे में ये बात काफी मशहूर है कि वे अपने पास सदा एक मुरली रखा करते थे और हर साल जन्माष्टमी आने पर वो मथुरा जाया करते थे, एक बार जेल में होने की वजह से हसरत मथुरा नहीं जा पाए तो इसका दुख उन्होंने अपनी एक कविता में व्यक्त किया।

    Dr. Rahat Abrar के अनुसार हसरत मोहानी एक बार लखनऊ से दिल्ली के सफर पर थे। वो कृष्ण भक्ति में एक नज्म गुनगुना रहे थे, रास्ते में किसी अजनबी शख्स ने उनसे पूछा कि मौलाना साहब देखने से तो आप मुसलमान लगते हैं, फिर कृष्ण के गीत क्यों गा रहे हैं? आपका मजहब क्या है? इस सवाल पर हसरत को हंसी आई और उन्होंने कहा कविता पढ़कर समझाया कि 'मेरा मजहब फकीरी और इंकलाब है, मैं सूफी मोमिन हूं और साम्यवादी मुसलमान'। हसरत मोहानी के नाम पर हॉस्टल का निर्माण भी कराया गया।