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    अलीगढ़ में 'धरती के भगवान' भूले सस्ती दवा का नाम

    अलीगढ़ में डॉक्टरों की चल रही मनमानी

    By JagranEdited By: Updated: Mon, 23 Jul 2018 10:32 PM (IST)
    अलीगढ़ में 'धरती के भगवान' भूले सस्ती दवा का नाम

    विनोद भारती, अलीगढ़ : बीमारी वैसे भी किसी के लिए भी अच्छी नहीं, ऐसे में मरीज की आर्थिक स्थिति ठीक न हो तो बीमारी उसके लिए सजा से कम नहीं। वजह महंगा होता इलाज है, जिसमें ब्रांडेड दवा प्रमुख रूप से शामिल हैं। डॉक्टर मरीजों की आर्थिक स्थिति को समझे बिना ही सस्ते वर्जन की बजाय महंगी ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। वजह, इन पर मिलने वाला कमीशन है। ये दवाएं ऐसी हैं, जिनके थोक व फुटकर मूल्य में बड़ा अंतर है।

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    मेडिकल कॉलेज से लेकर पंजीकृत नर्सिग होम व क्लीनिक से लेकर झोलाछाप तक ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं, जो मरीजों की कमर तोड़ रही हैं। ब्रांडेड दवा के थोक व अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) में जमीन आसमान का अंतर होने के कारण मुनाफाखोरी हो रही है। इस खेल में कंपनियां दवा पर थोक मूल्य से 400 फीसद अधिक तक एमआरपी अंकित कर रही हैं। यही खेल मरीजों को लुटने पर मजबूर कर रहा है।

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    सरकारी डॉक्टर भी शामिल

    कमीशन के खेल में कुछ सरकारी डॉक्टर भी शामिल हैं। ओपीडी में रोजाना दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों को बखूबी डॉक्टर से बतियाते देखा जा सकते हैं। इसके लिए मरीजों को इंतजार कराने में भी संकोच नहीं किया जाता।

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    चहेते केमिस्ट पर ही दवा

    डॉक्टर की लिखी गई ब्रांडेड दवा बगल की दुकान पर मिल जाए, यह जरूरी नहीं। ज्यादातर दवाएं एमआर के माध्यम से चहेते मेडिकल स्टोर पर ही मिलती हैं या क्लीनिक में खुले स्टोर पर। कुछ दवाओं पर नजर

    साल्ट, थोक रेट, एमआरपी

    अनवांटेड किट, 65 रुपये, 450 रुपये

    सेफ्ट्रियाक्सोन 1एमजी, 25, 55

    मेरापेनाम 1एमजी, 300, 600-800

    पिपरास्लीन-टेजोबेक्टम 4.5, 129, 220

    एर्टेस्यूनेट 60एमजी, 50, 220

    एर्टेथर इंजेक्शन, 40, 80

    पेरासिटामोल आइवी, 40, 100

    साल्ट एमॉक्सी क्लेव, 32, 120

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    बाजार से कई जीवनरक्षक दवाएं गायब!

    केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने 15 मई 2013 को 348 दवाओं पर मूल्य नियंत्रण का सर्कुलर जारी किया। वर्तमान में करीब 850 दवाओं की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण है। इससे स्टेरॉयड, वेटनीसॉल एवं वॉवरान ग्रुप की दवाएं काफी सस्ती हो गई थीं। मुनाफा कम होने से कंपनियों ने इन्हें बनाना बंद कर दिया। पेशाब रुक जाने (गुर्दा रोग) में इस्तेमाल लेसिक्स, सिप्लिन, टेरामाइसिन, सेप्ट्रान, रेस्टिक्लीन, कोट्रीन डीएस जैसी एंटीबायोटिक दवा गायब हैं। हाई एंटीबायोटिक पोकटम इंजेक्शन भी बाजार में नहीं। ताकत का इंजेक्शन वेटनीरिऑन, प्रेडिनीसॉल, थायरायड में कारगर इंजेक्शन एप्टाक्सिन, बच्चों के पेट की कीड़े मारने की दवा पिपराजीन सिरप एवं स्किन डिजीज के लिए टिबैक्ट, इमरजेंसी ड्रग बेटनीसोल, बच्चों के दौरे (मिर्गी) में इस्तेमाल सेरिनेस समेत दर्जनों दवाएं भी गायब हो रही हैं। मरीजों को सस्ती दवाओं का लाभ नहीं मिल रहा।

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    एंटी रेबीज वैक्सीन बनी मुसीबत

    जानवरों के काटने पर पीड़ितों को लगाए जाने वाली एंटी रेबीज वैक्सीन की कीमत कम नहीं है, फिर भी यह बाजार से गायब है। वजह, कम उत्पादन है। इसके पीछे कंपनियों द्वारा बाहर से मंगाया जा रहा साल्ट महंगा होना है। बाजार में गिने-चुने दुकानदारों के पास ही एंटी रेबीज वैक्सीन है।

    बढ़ेगी और समस्या: मरीजों को राहत देने के लिए शासन सभी दवाओं को मूल्य नियंत्रित सूची में शामिल करने जा रहा है। इससे ब्रांडेड कंपनियों का मुनाफा कम होगा। उनके हालिया रुख को देखते हुए नहीं लग रहा कि ग्राहक को सस्ती दवाएं उपलब्ध हो पाएंगी।

    बेखबर औषधि विभाग: बाजार से दर्जनों जरूरी जीवनरक्षक दवाएं गायब हैं, मगर औषधि विभाग बेखबर बना हुआ है। दवा कंपनियों के माध्यम से आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए अधिकारी कोई पहल नहीं कर रहे और मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया है।

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    जेनरिक दवाएं सस्ती, पर डॉक्टर ब्रांडेड ही लिख रहे

    इलाज सस्ता करने के लिए सरकार कवायद में जुटी है। करीब 850 दवाएं मूल्य नियंत्रित सूची में शामिल की गई हैं। इन दवाओं की कीमतें सरकार तय करती है। मरीजों को और राहत देने के लिए बेहद सस्ती जेनरिक दवाओं की बिक्री भी सरकार की प्राथमिकता में है। चिंता की बात ये है कि डॉक्टर ब्रांडेड दवाओं के नाम भूलने के लिए तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि शहर में करीब दो साल पहले खोले गए जन औषधि केंद्रों पर सन्नाटा रहता है। ----

    नहीं लिखते साल्ट का नाम

    नियमानुसार डॉक्टरों को ब्रांड नेम की बजाय दवा का साल्ट नेम ही पर्चे पर लिखना चाहिए। एटा चुंगी स्थित वैष्णवी क्लीनिक के संचालक डॉ. नितिन गुप्ता के मुताबिक तमाम तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन (साल्ट) तैयार होता है। इसे दवा के रूप में हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है। इस साल्ट का जेनरिक नाम, साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी का ध्यान में रखते हुए एक विशेष समिति तय करती है। साल्ट का जेनरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है। डॉक्टर को साल्ट का नाम ही लिखना चाहिए।

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    एमआरपी का खेल

    पेटेंट ब्रांडेड दवा की कीमत कंपनी व जेनरिक की सरकार तय करती है। ये दवाएं सीधे खरीदार तक पहुंचती हैं। दवाओं की पब्लिसिटी पर भी खर्चा नहीं होता। पेटेंट दवा पर अंकित एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) की आड़ में मरीजों को खूब लूटा जा रहा है।

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    जेनरिक व ब्रांडेड दवाओं की कीमत

    साल्ट, जेनरिक (प्रति 10 गोली), ब्रांडेड, बीमारी

    ह्यूंमोलिन निसुलिन, 71, 144, शुगर

    मेटफॉर्मिन (एसआर1000), 11, 150, शुगर

    मेटफॉर्मिन-ग्लिमप्राइज (2एमजी), 18, 200, रक्तचाप

    एटोर्वेस्टाटिन, 5, 70, कॉलेस्ट्राल

    रोज्युवेस्टाटिन 10एमजी-फेनोफिब्रेट 160 एमजी, 25, 400, कॉलेस्ट्राल, रक्तचाप

    क्लोपिडोग्रेल 75एमजी, 12, 100, हृदय रोग

    एस्प्रिन 150 एमजी, 2, 8, हृदयरोग

    रेमिप्रिल, 7, 100, रक्तचाप

    उर्सोडॉक्सिकोलिक एसिड-300 एमजी, 120, 375, लीवर

    प्रेगाब्लिन-75 एमजी, 15, 842, न्यूरोपैथिक दर्द

    डेफ्लेजाकोर्ट-6 एमजी, 11, 300, एलर्जी-सांस

    पेरासिटामोल-650 एमजी, 5.80, 25, दर्द-बुखार

    आयरन-फोलिक एसिड, 18, 150, खून की कमी

    वॉग्लीबोस-0.2 एमजी, 9.61, 90, ब्लड शुगर

    फैक्सोफेनडिने एचसीएल0120 एमजी, 21, 142, एंटीएलर्जिक

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    खुद दवा बनाए सरकार

    दवा कारोबारियों का कहना है कि ब्रांडेड दवा के नाम पर चल रहे खेल और कंपनियों की मनमानी को रोकने के लिए सरकार को और सख्त कदम उठाने होंगे। अच्छा यह होगा कि सरकार खुद ही जरूरी दवा बनाने की शुरुआत करे।

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    जिला केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन भूपेंद्र वाष्र्णेय का कहना है कि बाजार से दर्जनों जरूरी दवा गायब हैं। मांग के बावजूद कंपनियां बेहद कम मात्रा में ये दवाएं भेज रही हैं। सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

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    जिला केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू का कहना है कि दवा मूल्य नियंत्रित आदेश यानी डीपीसीयू में शामिल होने के बाद कंपनियों को संबंधित दवा में इंटरेस्ट खत्म हो जाता है। वजह, मार्जिन कम होना ही है।

    औषधि निरीक्षक हेमेंद्र चौधरी ने बताया कि बाजार से दवाएं गायब हो रही हैं तो यह चिंता का विषय है। सरकार मरीजों को सस्ती दवा उपलब्ध कराने के लिए गंभीर है। औषधि केंद्र के संचालक डॉ.जीएम राठी का कहना है कि सभी डॉक्टरों को चाहिए कि वे मरीजों के हित में जेनरिक दवाएं लिखें। इससे उन्हें इलाज कराने में सुलभता रहेगी। सीएमओ डॉ. एमएल अग्रवाल का कहना है कि सरकार मरीजों को जेनरिक दवाएं उपलब्ध करा रही है। डॉक्टर भी साल्ट का नाम लिखें, ताकि मरीज अच्छा इलाज करा सकें।