शहर से लेकर देहात तक, हर जगह झोलाछाप, सबकी खता माफ
गर्मी आते ही संक्रामक बीमारियां शुरू हो जाती हैं। झोला छाप भी अपनी दुकान सजाना शुरू कर देेेतेे हैं। अब तो बकायदा क्लीनिक खोलकर खुलेआम ये अपना धंधा कर रहे हैं। इन्हें सीलिंग का डर भी नहीं रहता उन्हें पता है कुछ दिन बाद उनका धंधा फिर चलने लगेगा।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। गर्मियों के मौसम में हर साल संक्रामक बीमारियां पैर पसारने लगती है। इसी के साथ इलाज के नाम पर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले झोलाछाप भी सक्रिय हो जाते हैं। शहर से लेकर देहात तक झोलाछापों का जाल फैला हुआ है, जिन्होंने झोला छोड़कर क्लीनिक व हास्पिटल तक खोलने शुरू कर दिए हैं। इससे लोगों के लिए डिग्रीधारक डाक्टर व झोलाछापों में भेद करना मुश्किल हो रहा है। चिंता की बात ये है कि शिकायतें मिलने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की नींद नहीं टूट रही। लोगों का कहना है स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में ही झोलाछापों का धंधा फल-फूल रहा है। पहले तो कार्रवाई होती नहीं, यदि होती भी है तो कुछ दिनों बाद ही झोलाछाप अपना धंधा फिर शुरू कर देते हैं। मानों, सीलिंग की कार्रवाई के बाद स्वास्थ्य विभाग की चाबी झोलाछापों के पास ही रह जाती हो।
2000 से ज्यादा झोलाछाप
जिले में 867 ग्राम पंचायतें हैं। एक ग्राम पंचायत में कम से कम दो या तीन झोलाछाप मिल ही जाएंगे। शहरी क्षेत्र में भी झोलाछापों की कमी नहीं है। इस तरह दो हजार से अधिक झोलाछाप होने का अनुमान है। विभाग की बात करें तो सीएमओ कार्यालय में करीब 560 पैथालोलाजी लैब, क्लीनिक, नर्सिंग होम, अल्ट्रासाउंड सेंटर पंजीकृत हैं। इनमें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के 300 ही सदस्य है। फिर भी, विभाग को लोगों की सेहत की कोई चिंता नहीं।
सर्जन भी बन गए झोलाछाप
सामान्य हो या गंभीर मरीज, झोलाछाप हर मरीज का स्वागत ग्लूकोज की ड्रिप लगाकर करते हैं। ऐसे लोगों ने क्लीनिक ही नहीं, नर्सिंग होम तक खोल रखे हैं। मरीज को लंबे समय तक इलाज के नाम पर रोके रखा जाता है और जब मामला बिगडऩे लगता है तो आनन-फानन रेफर कर देते हैं। यही नहीं, कई हॉस्पिटल में झोलाछाप मरीजों का ऑपरेशन तक कर रहे हैं। ऐसे कई मामलों की जांच भी लंबित हैं।
कार्रवाई के नाम पर दिखावा
झोलाछापों के खिलाफ शिकायतें बढ़ने पर विभाग कार्रवाई के नाम पर केवल दिखावा करता रहा है। झोलाछापों को संरक्षण देने में सीएमओ कार्यालय के बाबू भी पीछे नहीं। वे अफसरों को केवल उन्हीं झोलाछापों के यहां टीम पहुंचती है, जो कर्मचारियों को फील गुड नहीं कराते। यदि अधिकारी कार्रवाई कर दे तो उसे मैनेज करने में जुट जाते हैं। कई बार अधिकारियों की भूमिका भी सवाल उठ चुके हैं। ऐसा भी हुआ है कि शिकायत पर छापेमारी हुई। रिपोर्ट बनी, मगर कार्यवाही दब गई।
इनका कहना है
झोलाछापों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई है। बिना रजिस्ट्रेशन के क्लीनिक या हास्पिटल चलाने वाले चिकित्सकों को भी झोलाछाप की श्रेणी में रखा गया है।
- डा. दुर्गेश कुमार, एसीएमओ-नोडल अधिकारी।
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