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    मतभेद मिटाकर अदालत के जरिये मिल सकती है मुकदमों से मुक्ति

    By Mukesh ChaturvediEdited By:
    Updated: Fri, 21 Dec 2018 09:16 AM (IST)

    छोटे अपराधों में समझौता करके मुकदमों से मुक्ति पाने के कानून में तमाम प्रावधान हैैं।

    मतभेद मिटाकर अदालत के जरिये मिल सकती है मुकदमों से मुक्ति

    लोकेश शर्मा, अलीगढ़। छोटे अपराधों में समझौता करके मुकदमों से मुक्ति पाने के कानून में तमाम प्रावधान हैैं। जानकारी न होने से लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते। जेलों के बहुसंख्य बंदी भी कानूनी अज्ञानता या उचित पैरवी के अभाव में मुकदमों में उलझे हुए हैैं। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 436 ए में अधिकतम सजा का आधा समय जेल में गुजारने पर जमानत का प्रावधान है। धारा 436 में जमानतीय अपराधों में बंद उन आरोपितों को हफ्तेभर बाद निजी मुचलके पर रिहा करने का प्रावधान है, जिन्हें कोई जमानत देने को राजी न हो। धारा 167 (2) व धारा 437 (6) में तफ्तीश व न्यायिक कार्रवाई में देरी होने पर जमानत देने का प्रावधान है।

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    इनमें हो सकता है समझौता

    सीआपीसी की धारा 320 (1) के तहत अदालत के जरिये समझौते करके केस खत्म किए जा सकते हैं। समझौता पीडि़त के साथ ही होगा। जिनमें समझौते हो सकते हैं, वह धाराएं हैैं 298, 323, 334, 341, 342, 352, 355, 358, 426, 427, 447, 448, 491, 497, 498, 500, 506 व 508। अदालती आदेश पर धारा 325, 335, 337, 338, 343, 344, 346, 354, 357, 379, 381, 406, 407, 408, 411, 414, 417, 418, 419, 420, 421, 423, 424, 428, 430, 482, 486, 494 के मुकदमे समझौते के जरिये खत्म हो सकते हैैं।

    अपराध कबूलने पर जल्द छुटकारा

    कुछ अपराधों में अधिकतम सजा दो साल से कम है। अभियुक्त गलती मान ले तो अदालत यह सजा और भी घटा सकती है। जेल में लगी लोक अदालत में कई बंदी ऐसे ही छूट चुके हैैं।

    प्ली बार्गेनिंग

    वर्ष 2006 में सीआरपीसी में धारा 265 ए (प्ली बार्गेनिंग) जोड़ी गई। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव त्रिभुवन नाथ पासवान बताते हैं कि सात साल से कम सजा वाले अपराध में समझौते के आधार पर प्ली बार्गेनिंग करके केस खत्म हो सकता है। इसमें कोर्ट दोनों पक्षों के लिखित समझौते लेती है। देश की आर्थिक व सामाजिक स्थिति प्रभावित होने, महिला या 14 साल से कम उम्र के बच्चे संग किए अपराधों में यह आवेदन मान्य नहीं होगा।

    नेकचलनी से पाएं राहत
    सीआरपीसी की धारा 360 व 361 कहती है कि अधिकतम सात साल की कैद वाले मामलों में पकड़ा गया 21 साल से बड़ा कोई भी शख्स जेल न भेजने की कोर्ट से अर्जी कर सकता है। कोर्ट दोबारा जुर्म न करने का बांड भरवाकर रिहाई दे देती है। ऐसी छूट पहला अपराध होने पर ही मिलती है। उम्र, चरित्र, परिवार व आपराधिक इतिहास का पता कराकर कोर्ट उसे प्रोबेशन पर भी छोड़ सकती है। त्रिभुवन नाथ पासवान सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का कहना है कि समझौते के आधार पर मुकदमे खत्म किए जा सकते हैैं। लोगों को पता नहीं है, इसलिए उपयोग नहीं कर पा रहे। बंदियों को इसकी जानकारी दी है। आवेदन आते ही उसका लाभ दिलाएंगे।