बसंती तैयार... मरना कैंसिल! वीरू के डायलॉग पर खूब बजीं तालियां, डीएस कॉलेज में धर्मेंद्र को भावभीनी श्रद्धांजलि
अलीगढ़ के डीएस कॉलेज में धर्म समाज सोसाइटी ने धर्मेंद्र को श्रद्धांजलि दी। 'शोले' फिल्म दिखाई गई, जिसमें छात्रों ने वीरू और बसंती के संवादों पर खूब ता ...और पढ़ें

फिल्म के दौरान स्टूडेंट्स।
जागरण संवाददाता, अलीगढ़। डीएस महाविद्यालय के श्री रमेश चंद्र भगत जी सभागार में मंगलवार की दोपहर मानो एक बार फिर रामगढ़ बस गया। धर्म समाज सोसाइटी द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि सभा में जब सदाबहार अभिनेता धर्मेंद्र को याद किया गया, तो माहौल भावुक भी था और यादों से सराबोर भी। फिल्मी बातें, यादों की चमक और तालियों की गूंज… सब कुछ जैसे धर्मेंद्र की अमिट मुस्कान को सलाम कर रहा था।
धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन की दोस्ती से भरी कालजयी फिल्म ‘शोले’ दिखाई गई और पहले ही दिन छात्र-छात्राओं ने फिल्म का भरपूर लुत्फ उठाया। बसंती तांगे वाली के डायलाग हों या वीरू का टंकी वाला अंदाज़, हर सीन पर मस्ती करते विद्यार्थी नजर आए। गब्बर सिंह के संवाद आते ही मुस्कान और रोमांच दोनों बढ़ जाते। टंकी पर चढ़े वीरू के बसंती तैयार...मरना कैंसिल डायलोग पर भी सभागार में तालियां गूंज उठीं। बुधवार को डीएस बाल मंदिर और गुरुवार को फर्मेसी व डीएस इंटर कॉलेज के विद्यार्थी भी इसी तरह के अनुभव से गुजरेंगे।

डीएस कॉलेज में दिखाई शोले फिल्म, धर्मेंद्र को श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि सभा के शुभारंभ में धर्म समाज सोसाइटी के सचिव राजीव अग्रवाल अन्नु, उपेंद्र, एएमयू ड्रामा क्लब के पूर्व संगीत शिक्षक व ग़ज़ल गायक जौनी फास्टर, प्राचार्य मुकेश कुमार भारद्वाज, प्रो. रेनू सिंघल और प्रो. सुनीता गुप्ता ने धर्मेंद्र की तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर किया। राजीव अग्रवाल ने धर्मेंद्र को याद करते हुए बताया कि वे मुंबई में जूही स्थित उनके आवास पर उनसे मिले थे और पहली ही मुलाकात में ‘हीमैन’ का दिलकश व्यक्तित्व उन्हें अपना बना ले गया था।
धर्म समाज सोसाइटी तीन दिन तक करेगी फिल्म का प्रदर्शन
संगीतकार जौनी फास्टर ने कहा कि धर्मेंद्र ने हमेशा अपनी माटी से प्रेम किया। उनकी देशभक्ति से भरी फिल्में आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वे बेहद सरल, नेकदिल और जमीन से जुड़े इंसान थे। उन्होंने यह भी बताया कि धर्मेंद्र ने पीटी उषा के ओलंपिक में पांच पदक जीतने पर पचास हजार रुपये का पुरस्कार दिया था और इस मदद को बिना शोर-शराबे के गुप्त ही रखा था।
धर्मेंद्र भले ही पर्दे से ओझल हो गए हों, पर दर्शकों की तालियां, उनकी यादें और ‘शोले’ के संवादों की गूंज एक ही बात कह रही थीं, हीमैन कभी जाते नहीं… दिलों में अमर हो जाते हैं।

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