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    Adulterated Ghee : मिलावटी घी बिगाड़ रहे सेहत, ऐसे हो रही है मिलावट, जानिए विस्‍तार से Hathras News

    मिलावटी घी से लोगों की सेहत बिगड़ रही है। कारगर कार्रवाई न होनेे से मिलावटी घी का गोरख धंधा करने वालों के हौंसले बुलंद हो रहे हैं। अहम बात यह है कि कभी देसी घी की मंडी रहे हाथरस को मिलावट खोरों ने बदनाम कर दिया।

    By Sandeep SaxenaEdited By: Updated: Thu, 12 Nov 2020 07:25 AM (IST)
    मिलावटी घी का गोरख धंधा करने वालों के हौंसले बुलंद हो रहे हैं।

    हाथरस, जेएनएन। मिलावटी घी से लोगों की सेहत बिगड़ रही है।  कारगर कार्रवाई न होनेे से मिलावटी घी का गोरख धंधा करने वालों के हौंसले बुलंद हो रहे हैं। अहम बात यह है कि कभी देसी घी की मंडी रहे हाथरस को मिलावट खोरों ने बदनाम कर दिया। मोटे मुनाफे के फेर में देसी घी के नाम पर 'जहर' बेच रहे हैं। इससे हाथरस ब्रांड के नाम से बिकने वाले देसी घी की विश्वसनीयता खतरे में पड़ गई है। नकली देसी घी का कारोबार शहर से लेकर गांव तक फैला हुआ है। पामऑयल और एसेंस से तैयार सस्ता घी घरों में ही नहीं, शादी पार्टियों में भी इस्तेमाल हो रहा है। सिस्टम की मिलीभगत से यह कारोबार साल दर साल बड़ा होता चला गया।

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    एसेंस की अहम भूमिका

    इस धंधे में एक दशक पूर्व से मिलावटखोर सक्रिय हुए। उन्होंने देसी घी में डालडा, पॉम, रिफाइंड आदि की मिलावट शुरू की। चेकिंग में उसकी गुणवत्ता अ'छी बनाने के लिए आरएम ऑयल भी मिलाया जाता है। इसमें सबसे अहम भूमिका एसेंस की होती है। एसेंस की चंद बूंदें पंद्रह किलो रिफाइंड, वनस्पति घी या अन्य किसी खाद्य ऑयल में डाल दी जाए तो उसमें से देसी घी की महक आने लगती है। इसी खुशबू के आधार पर लोग घी को असली मानकर उसके प्रति आकर्षित होते हैं।

    लाइसेंस की आड़ में खेल

    एक दशक पूर्व विभाग जब सक्रिय हुआ तो धंधे से जुड़े लोगों ने माइल्ड फैट के लाइसेंस बनवा लिए। इसके तहत ऐसा घी तैयार करने की इजाजत इन लोगों को मिल गई, जिसका प्रयोग पूजा, हवन व आरती आदि में किया जा सकता है। इसकी पैङ्क्षकग पर इनेमिल्ड (खाने योग्य नहीं) लिखना आवश्यक होता है। इस धंधे से जुड़े लोगों ने अपनी आकर्षक पैङ्क्षकग में माल बाजार में सप्लाई करना शुरू कर दिया। इनेमिल्ड इतना बारीक लिखाया कि उस पर किसी की नजर ही न जाए। माइल्ड फैट का लाइसेंस देना स्वास्थ्य विभाग ने अगस्त 2011 में समाप्त कर दिया। इसकी जगह मिक्स फैट के लाइसेंस जारी किए। यह लोगों के लिए वरदान साबित हुए। इसकी पैङ्क्षकग पर भी इनेमिल्ड (खाने योग्य नहीं) लिखना पड़ता है। इसकी बजाय घी माफिया पैकेट पर पूजा योग्य लिखकर अपना माल मार्केट में खपाते हैं।  

    नामचीन कंपनियों की आकर्षक पैकिंग

    यह नकली देसी घी 150 रुपये किलो तक तैयार हो जाता है। इसकी दूनी कीमत में बाजार में सप्लाई किया जाता है। दुकानदार और निर्माता मोटा मुनाफा लेकर उसे बेचते हैं। हाथरस, देहात और आसपास के जनपदों में यह कारोबार चल रहा है। सादाबाद में भी इसी रैकेट का रविवार को पर्दाफाश हुआ। ढाई सौ ग्राम, आधा किलो या किलो की पैङ्क्षकग बाजार में ज्यादा बिकती हैं। वहीं 15 किलो का टीन शादी समारोहों में खूब प्रयोग होते हैं।

    कभी पश्चिमी यूपी में थी हाथरस के घी की धाक

    हाथरस के देसी घी की आगरा, मथुरा, अलीगढ़, एटा आदि आसपास के जिलों के साथ पश्चिमी यूपी तक में धाक थी। ग्राहक के मन में असली घी के नाम से विश्वास जगाने के लिए इन जिलों के घी विक्रेता अपने यहां हाथरस का शुद्ध देशी घी लिखा बोर्ड तक लगाते थे। शहर के मोहल्ला दिल्ली वाला चौक, रूई की मंडी, सासनीगेट, नयागंज में घी का कारोबार मशहूर था।

    ऐसे तैयार किया जा रहा

    15 किलो घी का टिन

    पॉम ऑयल - 9 किलोग्राम

    वनस्पति घी - 5 किलोग्राम

    रिफाइंड - 1 किलोग्राम

    एसेंस - एक ढक्कन

    जब भी इस प्रकार की शिकायत विभाग को मिलती है तो उस पर छापेमारी कर सैंपल लेकर जांच कराई जाती है। अधोमानक पाए जाने पर कार्रवाई होती है। विभाग समय-समय पर अभियान चलाकर कार्रवाई भी करता है।

    -हरींद्र सिंह, मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी