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Special on Birthday of Actor Bharat Bhushan : घर छोड़कर गए, 'बैजू बावरा' बन गए भारत भूषण

प्रसिद्ध अभिनेता भारत भूषण उन कलाकारों में शुमार रहे जिन्होंने देशभर में अलीगढ़ को ख्याति दिलवाई।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Sun, 14 Jun 2020 11:10 AM (IST)Updated: Sun, 14 Jun 2020 11:10 AM (IST)
Special on Birthday of Actor Bharat Bhushan : घर छोड़कर गए, 'बैजू बावरा' बन गए भारत भूषण
Special on Birthday of Actor Bharat Bhushan : घर छोड़कर गए, 'बैजू बावरा' बन गए भारत भूषण

अलीगढ़[जेएनएन]: प्रसिद्ध अभिनेता भारत भूषण उन कलाकारों में शुमार रहे, जिन्होंने देशभर में अलीगढ़ को ख्याति दिलवाई। बैजु बावरा, बरसात की रात, वसंत बहार, मिर्जा गालिब जैसी फिल्मों में अभिनय कर खुद भी  शोहरत बटोरी। शायद नई पीड़ी इस बात से भी अंजान हो कि पचास व साठवें दशक के सुपर स्टार भारत भूषण ही थे। उन्हें कई फिल्म फेयर व अन्य अवार्ड मिले और सबसे खास बात ये कि उनका बचपन अलीगढ़ में ही बीता। यहीं पर पले-बढ़े। आज   भारत भूषण का जन्म दिवस है। आइए, उन्हें याद करें।

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मेरठ में हुआ था जन्म

भारत भूषण के जन्म को लेकर भ्रम की स्थिति है। उनके पिता बैरिस्टर राय बहादुर मोतीलाल पाकिस्तान से मेरठ आकर बसे। यहीं पर उनका जन्म हुआ। मां का निधन होने के कारण भारत भूषण व उनके भाई अलीगढ़ में आने नाना के यहां आ गए। नाना श्यौप्रसाद भी प्रसिद्ध वकील थे। यहीं पर उनकी पढ़ाई हुई। डीएस कॉलेज से ग्र्रेजुएशन किया।

रामायण की मंदोदरी को है संगीत से लगाव

भारत भूषण की बेटी व रामायण में मंदोदरी का किरदार निभाने वाली अपराजिता भूषण उनका जन्म अलीगढ़ में बताती हैं। पुणे में रहने वाली अपराजिता ने बताया कि वे 1919 (1920 नहीं, जैसा की प्रचलित है) में पैदा हुए। बचपन से ही गीत-संगीत व अभिनय से बड़ा लगाव था। पिता का जन्म अलीगढ़ में हुआ। रायबहादुर को यह सब पसंद नहीं था। फिर उनकी मेरठ के ही रायबहादुर की बेटी सरला से शादी हो गई। कुछ समय के लिए वे कोलकाता गए और वहां से मुंबई। स्ट्रगल के दौरान 1952 में भक्त कबीर की शूटिंग साइट पर पहुंचे। वहां, फिल्म का नायक नहीं आया था। भारत भूषण के आग्र्रह पर यह भूमिका उन्हें ही मिल गई। फिल्म रिलीज हुई तो उनके अभिनय को काफी सराहा गया। इस बीच उनके भाई भी निर्माता-निर्देशक बन गए। उन्होंने लखनऊ में बेबस फिल्म बनाई। इसमें भारत भूषण व पूर्णिमा की जोड़ी ने काम किया। फिर फिल्म नगरी मुंबई व पुणे स्थानांतरित हो गई। भारत भूषण की कई फिल्में आई, मगर कुछ खास नहीं कर पाई।

'बैजू बावरा' ने भारत भूषण के कॅरियर को ऊंचाइयों पर पहुंचाया

 1952 में आई फिल्म 'बैजू बावराÓ ने भारत भूषण के कॅरियर को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। पिताजी, बताते थे कि दादाजी ने भी यह फिल्म छुपकर देखी थी। फिल्म देखने के बाद वे मुंबई पहुंचे और बेटे को गले से लगा लिया। कहा कि, मैं गलत था जो तुम्हें वकील बनाना चाहता था, तुम तो अभिनय करने के लिए ही बने हो।

राष्ट्रीय पुरस्कार मिला

इसके बाद वसंत बहार, मीनार, मिर्जा गालिब, सम्राट चंद्रगुप्त, संगीत सम्राट तानसेन, फागुन, बरसात की रात, रानी रूपवती, जहांआरा आदि बनाई। 1954 में ही आई चैतन्य महाप्रभु में निभाए उनके शानदार अभिनय के लिए फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया। मिर्जा गालिब को भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। अपराजिता बताती हैं कि पिताजी को किताबें पढऩे का बहुत शौक था। मुंबई स्थिति घर में ही बहुत बड़ी लाइब्रेरी बनाकर रखी थी।

1992 में हुआ निधन

अपराजिता ने कहा कि लोग कहते हैं कि भारत भूषण जीवन का अंतिम दौर काफी बुरा गुजरा। ऐसा कैसे हो सकता था। वे तो उम्र के अंतिम पड़ाव तक फिल्मों में अभिनय करते रहे। हां, कई बार कुछ क्षणिक आर्थिक परेशानियां हो जाती हैं। 27 जनवरी 1992 को हृदयघात से उनकी मृत्यु हो गई।


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