खुशियां बांट रही 'चिकोरी एक्सप्रेस'
योगेश कौशिक, इगलास : गुजरात में तैनात स्टेशन मास्टर ने 'चिकोरी एक्सप्रेस' को अलीगढ़ में क्या रोका, य ...और पढ़ें

योगेश कौशिक, इगलास : गुजरात में तैनात स्टेशन मास्टर ने 'चिकोरी एक्सप्रेस' को अलीगढ़ में क्या रोका, यह यहां के किसानों में खुशियां बांटते हुए रफ्तार पकड़ रही है। गेहूं व आलू की पारंपरिक खेती करने वाले किसानों का रु झान चिकोरी उत्पादन के प्रति बढ़ रहा है। जिले में दो हजार से अधिक किसान चिकोरी की खेती कर रहे हैं। यहां की चिकोरी पानी के जहाजों में सफर कर विदेशों में कॉफी को महका रही है।
गुजरात से अलीगढ़ का सफर : जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर इगलास क्षेत्र के गांव विशनपुर निवासी शैलेंद्र शर्मा गुजरात में सहायक स्टेशन मास्टर थे। वहां किसानों से चिकोरी की खेती सीखी और 1986 में अपने गांव ले आए। पहले उन्होंने एक बीघा में चिकोरी की फसल की। मुनाफा हुआ तो अन्य किसानों को प्रेरित किया। पहले चुनिंदा किसानों ने खेती की। अच्छी पैदावार व मुनाफा दिखा तो धीरे-धीरे रिश्तेदारों के जरिये चिकोरी गाथा अन्य किसानों तक पहुंच गई। शैलेंद्र शर्मा व उनके भतीजे नागेंद्र कटारा के साथ इगलास, गभाना, खैर, अतरौली, विजयगढ़, जट्टारी क्षेत्र के दो हजार से अधिक किसान चिकोरी की खेती कर रहे हैं। हाथरस के सिकंदराराऊ, गौतमबुद्ध नगर के जेवर व बुलंदशहर के खुर्जा क्षेत्र में भी उत्पादन शुरू हो गया है।
कम हुआ भाव : चिकोरी की एक बीघा खेती में करीब पांच हजार रुपये की लागत आती है। पैदावार औसतन 40 कुंतल होती है। चिकोरी को नेस्ले, टाटा, हिंदुस्तान लीवर, जेके माल्ट आदि कंपनिया खरीदती हैं। धुलाई, कटिंग व रोस्टिंग के बाद इसे गुजरात, मैसूर, चिकमगलूर, विजयवाड़ा व साउथ अफ्रीका भेजा जाता है। पहले चिकोरी 400 रु पये कुंतल बिकती थी। कारोबारी नागेंद्र बताते हैं कि अब कंपनियों ने भाव 350 रु पये कुंतल कर दिया है।
इस्तेमाल : चिकोरी का इस्तेमाल कॉफी में सुगंध, रंग, गाढ़ापन लाने और आयुर्वेद औषधि के रूप में किया जाता है। शकरकंद जैसे आकार की चिकोरी की फसल अक्टूबर में बोई जाती है। अप्रैल-मई में खुदाई होती है। एक एकड़ (पांच बीघा) में 500 ग्राम बीज बोया जाता है। कारोबारी किसानों से खरीदी गई फसल को मशीनों से टुकड़ों में काटकर सुखाते हैं। फिर रोस्ट कर कंपनियों को भेजा जाता है। स्वादहीन होने के कारण जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते, रोग भी नहीं लगता। पत्तियां हरी खाद का काम करती हैं। दुधारू पशुओं को खिलाने से दूध बढ़ता है।
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सुविधाएं मिलें तो बढ़े उत्पादन
चिकोरी उत्पादक व कारोबारियों का का कहना है कि पहले मंडी कर नहीं लगता था, अब 2.5 प्रतिशत देना पड़ता है। सुविधाएं कुछ भी नहीं मिलतीं। सरकार सुविधाएं दे तो उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
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पहली बार पांच बीघा खेत में चिकोरी की फसल बोई है। अगले साल इसका रकबा और बढ़ाऊंगा।
मुनेश सिंह, रती का नगला
क्षेत्र में वेयर हाउस का निर्माण होना चाहिए, जिससे किसान व कारोबारी माल को सुरक्षित रख सकें।
नागेंद्र कटारा, चिकोरी कारोबारी

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