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    800 लघु उद्योग बंद होने की कगार पर

    By Edited By:
    Updated: Tue, 30 Aug 2016 02:09 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : अपना शहर ताला और तालीम के लिए मशहूर है। अगर इसमें हार्डवेयर को जोड़ दें तो ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : अपना शहर ताला और तालीम के लिए मशहूर है। अगर इसमें हार्डवेयर को जोड़ दें तो और भी बेहतर। यहां के उत्पाद जर्मनी, श्रीलंका, पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन व सऊदी अरब तक धमक बनाए हुए हैं। कुटीर उद्योग इनकी सबसे बड़ी ताकत हैं, लेकिन मशीनीकरण, श्रम शक्ति व पर्याप्त बिजली न मिलने समेत अन्य समस्याओं से ये दम तोड़ रहे हैं। 10 साल में 1500 से अधिक कारखानों पर ताले लटक चुके हैं। इसके साथ ही से 800 से उद्योग धंधे बंद होने की कगार पर हैं।

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    कुटीर का हब

    कारोबारियों की मानें तो लघु उद्योग हमारे देश की रीढ़ हैं। इससे होने वाली आय से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। एक समय अपना शहर लघु उद्योग में काफी आगे था। यहां से बनने वाले उत्पादों की सात समंदर पार तक धमक थी। शहरी की संकरी गलियों के साथ ही बड़े बाजारों व मुहल्लों में लघु उद्योगों का जलवा था। यही कारण था कि देश में बेचे जाने वाले 70 फीसद तालों का उत्पादन अलीगढ़ में ही होता था।

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    हार्डवेयर की चमक

    ताले के साथ ही यहां हार्डवेयर व एल्युमिनियम डाईकास्टिंग का भी बड़ी मात्रा में यहां उत्पादन होता था। यहां की जिंक डाईकास्टिंग, पीतल की मूर्तियों व ऑटो पा‌र्ट्स की भी अन्य शहरों में मांग थी।

    मशीनीकरण से डूब रही नैया

    उद्यमियों की मानें तो आधुनिकीकरण से कुटीर उद्योगों की नैया डूब रही है। मशीनीकरण से छोटे उद्योग चौपट हो रहे हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां उत्पादन बढ़ाकर छोटे उद्योगों को चौपट कर रही हैं।

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    सुविधाओं की कमी

    उद्यमियों के अनुसार, जरूरत के हिसाब से बिजली नहीं मिल पाती है। कारखानों के लिए जनरेटर चलाया जाता है तो मुनाफे पर कैंची चल जाती है। श्रम शक्ति भी भरपूर नहीं है। सरकारी नीतियां उद्यमियों के खिलाफ हैं। टैक्स में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

    बंद होने की कगार पर

    सुविधाएं न मिलने से दस साल में शहर से 1500 से अधिक उद्योग धंधे चौपट हो चुके हैं। शहरी की संकरी गलियों में चलने वाले अधिकांश कारखानों पर ताले लटक चुके हैं। 800 लघु उद्योग ऐसे भी हैं, जो बंद होने की कगार पर हैं।

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    लघु उद्योगों पर एक नजर

    -10 हजार से अधिक छोटी इकाइयां।

    - 10 हजार करोड़ रुपये का सालाना कारोबार।

    - करीब दो लाख लोग जुड़े हैं छोटी-बड़ी इकाइयों से।

    - दो दर्जन से अधिक देशों में होता है निर्यात।

    आ सकता है बदलाव

    -लघु उद्योगों को कर्ज कृषि की तर्ज पर दिया जाए।

    - बिजली की आपूर्ति बढ़ाई जाए।

    - सरकार मजदूरों की उपलब्धता बढ़ाए।

    - श्रम कानून में परिवर्तन जरूरी।

    - एक्साइज ड्यूटी पर छूट दी जाए।

    - ट्रंासपोर्ट नगर की स्थापना हो।

    - टैक्स ढांचे में बदलाव जरूरी।

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    उद्यमियों के बोल

    कुटीर उद्योग को मशीनीकरण से नुकसान हुआ है। श्रमशक्ति न होने से भी दिक्कतें हैं। हर साल तमाम कारखानों में ताला लग जाता है।

    -पवन खंडेलवाल, आकांक्षा इंटरनेशनल इन्फ्राहार्डवेयर।

    एक समय यहां के कुटीर उद्योगों का देश में जलवा था। सुविधाओं के अभाव में अब हाल खराब है। सुविधाएं न मिलने से उद्यमी दूरी बना रहे हैं।

    - राजकुमार अग्रवाल, स्पाइडर मेटल प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड।

    सरकार उत्पादनों पर टैक्स बढ़ा रही है। इससे दिक्कतें हो रही हैं। बिजली आपूर्ति सही नहीं हैं। दस साल तमाम लघु उद्योगों पर ताला लटक चुका है।

    - रमन गोयल, अध्यक्ष, लॉक्स एंड हार्डवेयर एसोसिएशन।

    बिजली नहीं आती है। इंस्पेक्टर राज व प्रदेश सरकार को गलत नीतियों से लघु उद्योग चौपट हो रहे हैं। इसमें सुधार की काफी जरूरत है।

    - डॉ. राजीव अग्रवाल, ब्रज प्रांत समन्यवयक, लघु भारती।