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    दीन दुखियों की सेवा करना ही सच्ची भक्ति

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    Updated: Wed, 24 Dec 2014 12:30 AM (IST)

    अलीगढ़ : मानव जीवन दुर्लभ है केवल प्रभु की कृपा से मिला है। इसे पाकर राम नाम का धन इकट्ठा कर लेना चा

    अलीगढ़ : मानव जीवन दुर्लभ है केवल प्रभु की कृपा से मिला है। इसे पाकर राम नाम का धन इकट्ठा कर लेना चाहिए। अन्यथा पछताना पड़ता है। उक्त प्रवचन नगर के रामलीला मैदान में श्री हित रसिक रामप्रकाश भारद्वाज मधुर जी महाराज ने कहे। उन्होंने आगे सबरी की भक्ति को समझाते हुए कहा कि भक्ति का अर्थ है भावनाओं की पराकाष्ठा प्रभु और उनके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम है। जब प्रभु की सच्ची भक्ति मिलती है तो घट घट में प्रभु का ही वास नजर आता है और शिवाय प्रभु के उसे कुछ चाहिए भी नहीं होता और प्रभु मिलते भी ऐसे ही भक्त को है, सच्ची भक्ति भगवान के मंदिर में करोडों का सोना चढ़ाने से या ढोल मंजीरा बजाने से नहीं होती बल्कि दीन दुखियों को ईश्वर का अंश मानकर उसकी सेवा करने से होती है। व्यास जी ने कहा कि जब सबरी को पता चला कि उसके प्रभु श्रीराम उसे दर्शन देने आ रहे हैं तो उसने उनकी राहों में फूल बिछा दिए कि कहीं श्रीराम को कोई कंकड या कांटा न चुभ जाए। श्रीराम के पहुंचने पर सबरी उन्हें अपने झूठे बेर खिलाती है और प्रभु श्रीराम हंस-हंस कर झूठे बेरों को खाते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं। वहीं नगर के सेंट स्टीफन पब्लिक स्कूल में चल रही भागवत कथा में व्यास रद्रगिरी महाराज ने कहा कि जो जीवात्माएं अपने सद्कर्मो के आधार पर भव सिंधु से तर जाती है, मोक्ष प्राप्त कर लेती है वे मुक्त आत्माएं सद्कर्मो के प्रारब्ध वश परिवर्तन लाने के लिए, दिव्य पुरूष के रूप में पुन: इस मृत्युलोक में शरीर धारण करती हैं। यह क्रम सृष्टि के आदि से अनवरत चल रहा है। जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।

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