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बासमती चावल की पानी है अच्छी फसल तो अपना सकते हैं ये आसान से टिप्स

बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के प्रधान वैज्ञानिक ने किसानों को किया प्रशिक्षित। प्राकृतिक खेती विधि को अपनाए जाने की जरूरत। कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी पर किया गया था कार्यशाला का आयोजन। बीज शोधन और खरपतवार पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Thu, 09 Jun 2022 01:59 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jun 2022 01:59 PM (IST)
बासमती चावल की पानी है अच्छी फसल तो अपना सकते हैं ये आसान से टिप्स
कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी की ओर से आयोजित कार्यशाला में जानकारी देते डा. रितेश शर्मा।

आगरा, जागरण संवाददाता। बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के प्रधान वैज्ञानिक डा. रितेश शर्मा ने किसानों से कहा कि प्राकृतिक खेती विधि से उच्च गुणवत्ता युक्त बासमती चावल उत्पादन करने की ओर किसान रुझान दिखाएं। पांच लीटर देसी गाय का गोमूत्र, पांच किलो देसी गाय का गोवर, 20 लीटर पानी और 50 ग्राम चूना और खेत की सीमा से या जंगल से लाई एक मुट्ठी मिट्टी का मिश्रण डंडे से मिलाना होगा। इसे दिन में दो बार हिलाएं और छांव में रख दें। 24 घंटे बाद बीजामृत तैयार हो जाएगा। ये मिश्रण 100 किलो बीज के उपचार के लिए पर्याप्त है। धान, रागी, गेहूं, बाजरा, ज्वार आदि बीज पर बीजामृत छिड़क, बीज सूखा प्रयोग में लाए जा सकते हैं।

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कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी पर बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान मेरठ और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण द्वारा बासमती चावल निर्यात गुणवत्ता सुधार एवं प्राकृतिक खेती संवर्धन विष पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। आरबीएस इंजीनियरिंग तकनीक परिसर के सभागार में आयोजित कार्यक्रम की शुरुअात दीप जलाकर हुई। प्रधान वैज्ञानिक डा. रितेश ने कहा कि आगरा में अपार संभावनाएं है, इसलिए रकवा बढ़ाएं। बीज शोधन पर ध्यान देना होगा और खरपतवार पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है।

कीट एवं व्याधियों पर नियंत्रण किया तो उन्नत फसल कर बेहतर दाम कमा सकेंगे। गुणवत्ता परक फसल होगी तो उसकी मांग भी उतनी ही अधिक होगी। परियोजना अधिकारी भीम जी उपाध्याय ने कहा कि बासमती चावल का उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है। उप निदेशक कृषि पुरुषोत्तम कुमार मिश्रा ने कहा कि कृषि क्षेत्र में गुणवत्ता एवं उत्पादकता में वृद्धि के लिए प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करना जरूरी है। कालेज प्राचार्य प्रो. विजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है, इसलिए हमें गोसंवर्धन पर भी कार्य करना होगा।

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं हेड डा. आरएस चौहान ने कहा कि रासायन को घटाने और निर्यात को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खेती महत्वपूर्ण है। इस दौरान 300 से अधिक किसान रहे तो शोध पत्र भी प्रस्तुत किए गए। इस दौरान डा. एमएन मिश्रा, डा. संदीप सिंह, धर्मेंद्र सिंह, दीपति सिंह, शिवम प्रताप, अनुपम दुबे, अजीत कुमार, डा. कप्तान सिंह, पवन कुमार आदि मौजूद थे। 


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