शोध ने भी दी मान्यता, अर्थ के लाभ के लिए शुभ है शुभ- लाभ Agra News
दयालबाग शिक्षण संस्थान के कॉमर्स विभाग का सर्वे इंडियन जर्नल ऑफ एकाउंटिंग में प्रकाशित।
आगरा, गौरव भारद्वाज। कंप्यूटराइजेशन के दौर में भी हर कारोबारी अपनी आय-व्यय का लेखा-जोखा लाल रंग के बही खाते में जरूर रखते है। बही खाते के पहले पन्ने पर स्वास्तिक का चिन्ह अंकित होता है, शुभ-लाभ लिखा होता है। जानते हो क्यों? इसलिए कि कारोबारियों का मानना होता है कि ऐसा करने से कारोबार निरंतर प्रगति करता है।
दयालबाग शिक्षण संस्थान के कॉमर्स विभाग के सर्वे में ऐसी सोच सामने आई है। संस्थान के लेखा एवं कानून विभाग के डीन डॉ. प्रमोद कुमार सक्सेना के निर्देशन में रिसर्च स्कॉलर मीनाक्षी चावला और अंकिता सिंह द्वारा दो साल पहले किया गया ये सर्वे इंडियन जर्नल ऑफ एकाउंटिंग में प्रकाशित भी हो चुका है। सर्वे में संजय प्लेस, राजा मंडी, दयालबाग व न्यू आगरा के व्यापारी, बिल्डर, रिटेलर, सैलून संचालक, ज्वैलर्स आदि को शामिल किया गया था।
रिसर्च स्कॉलर मीनाक्षी चावला ने बताया कि सर्वे में 57 फीसद व्यापारियों का कहना था कि स्वास्तिक अंकित करने, शुभ-लाभ लिखने से कारोबार में वृद्धि होती है। सर्वे में करीब 30 फीसद व्यापारियों का कहना था कि वह अपने बड़े-बुजुर्गों को ऐसा करते हुए देखते आ रहे हैं। जो परंपरा चली आ रही है उसका निर्वहन कर रहे हैं। इसके अलावा 17 फीसद व्यापारियों इससे अलग तर्क थे।
व्यापारियों की नजर में रिद्धि-सिद्धि
रिद्धि का अर्थ उचित तरीका और बौद्धिक ज्ञान तथा सिद्धि का अर्थ आध्यात्मिक ताकत और पूर्णता बताया। गणेश के साथ जब रिद्धि मिलती हैं तो शुभ होता है, गणेश और सिद्धि मिलकर लाभ प्रदान करते हैं। जब ये तीनों ही साथ हों तो व्यापार की तरक्की निश्चित रूप से होती है।
स्वास्तिक का कारपोरेट मॉडल
सर्वे के दौरान स्वास्तिक के कारपोरेट मॉडल का भी जिक्र किया गया। इस मॉडल में स्वास्तिक की चार भुजाओं को इक्विटी, इकोलॉजी, इफीशिएंसी और इथिक्स के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इनके साथ ही थ्री पी (पीपुल, प्रॉफिट और प्लेनेट) को जोड़ा गया है। मॉडल में बताया गया है कि धर्म का आचरण करते हुए अगर अर्थ (पैसा) कमाया जाए तो शुभ-लाभ होता है।
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