कुछ साहित्यकारों ने देश को पीछे धकेला, लिखती नहीं आक्रोश व्यक्त करते हैं लोग
लेखक और ग्रेट इंडियन लिट्ररी फेस्टिवल संस्थापक अमित शंकर के बोल देश में असहिष्णुता और लिचिंग जैसे शब्द व माहौल उन्हीं की देन
आगरा, संदीप शर्मा। चार साल से साहित्य में कमी आई है, क्योंकि साहित्यकार लिखने की जगह आक्रोश प्रकट कर रहे हैं। कुछ बड़े नाम विवादित बयान देकर माहौल बिगाड़ रहे हैं, जो दुखद है। साहित्यकार का काम अपने कौशल से देश को आगे बढ़ाना और दिशा देना है, जबकि उनके कदम ने देश को काफी पीछे धकेल दिया है।
यह कहना है मशहूर लेखक और ग्रेट इंडियन लिट्ररी फेस्टिवल के संस्थापक अमित शंकर का। गुरुवार को वह प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल में दैनिक जागरण से बातचीत कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि पिछले चार सालों में असहिष्णुता, लिचिंग जैसे शब्दों का प्रयोग कर देश की छवि कुछ साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों ने खराब की है। अराजकता का माहौल बता दहशत पैदा करने की कोशिश की है। लेकिन, वह सिक्के का सिर्फ एक पहलू दिखाते हैं, क्या उन्हें केरल में हिदुओं पर होते अत्याचार नहीं दिखते, उन्हें 1984 के सिख दंगे याद नहीं। हिदु चार हजार साल से लिचिंग झेल रहा है, लेकिन उसने तो कभी शिकायत नहीं की। वह कुछ लोगों को खुश करने के लिए जानकार माहौल बिगाड़ रहे हैं। वे भूल रहे हैं कि आजादी की लड़ाई साहित्यकारों ने ही आगे बढ़ाई थी।
हम श्रीराम की संतान, डीएनए से साबित
उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोग श्रीराम की संतान हैं। हमारे डीएनए भी एक जैसे हैं, यह बात कई रिसर्च में साबित भी हो चुकी है। फिर भी देश को कभी जाति तो कभी धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश होती है। भारत और हिदु तो हमेशा से ही सहिष्णुता की मिसाल हैं।
अब बदल रहा है माहौल
उन्होंने कहा कि लगातार माहौल बिगाड़ने का ही नतीजा है कि अब हर पक्ष हमलावर हो गया है। पहले एक पक्ष चुप रहता था, लेकिन अब वह चुप नहीं रहता, जवाब देता है और जरूरत पड़ने पर आक्रोश, प्रतिकार भी करता है।
बायोपिक पर रोक सही
पीएम मोदी की बायोपिक समेत कई फिल्मों पर रोक को उन्होंने सही ठहराया। उन्होंने कहा कि ऐसी फिल्मों को रिलीज करने का यह सही समय नहीं, चुनाव आयोग का रोक का फैसला सही है। हालांकि उन्होंने देश में मजबूत सरकार चुनने के लिए सभी से वोट करने की अपील भी की।