Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    1990 में हुआ था पनवारी कांड, बुलानी पड़ी थी सेना; 35 साल बाद आया फैसला, कल सुनाई जाएगी सजा

    By Jagran NewsEdited By: Nitesh Srivastava
    Updated: Thu, 29 May 2025 01:51 PM (IST)

    आगरा के पनवारी गांव में 1990 में दलित युवक की बारात पर हुए हमले ने जातीय हिंसा का रूप ले लिया था जिससे शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा। इस घटना के 35 साल बाद अदालत ने अकोला हिंसा मामले में 35 लोगों को दोषी ठहराया है जिससे पुरानी यादें ताजा हो गईं। फैसले के बाद गांव में सन्नाटा छा गया और पीड़ित पक्ष ने न्याय की सराहना की।

    Hero Image
    What is the Panwari Kand: दोषियों को जेल लेकर जाते पुलिसकर्मी। सौ. इंटरनेट मीडिया

    जागरण संवाददाता, आगरा। सिकंदरा के गांव पनवारी में भड़की हिंसा ने आधे शहर व कई गांवों में अपनी चपेट में ले लिया था। स्थिति नियंत्रण करने के लिए आधे शहर में कर्फ्यू लगाया गया था।

    सिकंदरा थाने में छह हजार लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। अनुसूचित जाति के युवक की बारात चढ़ाने को लेकर विवाद हुआ था। इस विवाद ने जातीय हिंसा का रूप ले लिया था।

    21 जून 1990 थाना सिकंदरा के गांव पनवारी में भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की बारात आई थी। जाट बाहुल्य इस गांव में दबंगों ने बारात चढ़ने का विरोध किया। शुरू हुआ विवाद जातीय हिंसा में बदल गया।

    लोहामंडी, जगदीशपुरा, शाहगंज, सिकंदरा, अछनेरा सहित अन्य इलाकों में घटनाएं हुईं। इसके साथ ही जाट बाहुल्य गांवों में भी हिंसा हुई। खूनी संघर्ष में कई लोगों की जान भी गई। स्थिति को देखते हुए सेना के साथ ही सीआरपीएफ को बुलाया गया था।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पनवारी के साथ ही आधे शहर में कर्फ्यू लगाया गया था। दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए थे। रुनकता में रहने वाले ओमकार ने बताया कि वह दूध का व्यापार उस समय करते थे। उस दिन वह साइकिल से दूध लेकर रघुनाथ टाकीज के पास पहुंचे।

    वह दूध वितरित कर ही रहे थे तभी आठ-दस युवकों ने हमला बोल दिया था। उनकी साइकिल रख ली। वह पैदल गांव पहुंचे। उन्होंने बताया कि उस समय जाति पूछकर लोगों की पिटाई की जा रही थी।

    गर्मा गई थी सियासत, आगरा आए थे राजीव गांधी

    पनवारी कांड के बाद प्रदेश में सियायत गर्मा गई थी। प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। उस समय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी व सोनिया गांधी आगरा पहुंचे थे। उन्हें कर्फ्यूग्रस्त इलाकों में जाने से रोक दिया गया था। हालांकि उन्होंने पीड़ितों से मुलाकात करके पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली थी।

    अकोला में छाया सन्नाटा, यादें हुई ताजा

    पनवारी कांड के बाद अकोला में भड़की हिंसा में बुधवार को न्यायालय ने 35 आरोपितों को दोषी करार दिया है। बुधावर को दोषी ठहराए गए लोग और उनके स्वजन दीवानी पहुंचे थे। इससे गांव में सन्नाटा छा गया। दोषी ठहराए गए लोगों के स्वजन मायूस होकर दोपहर बाद गांव में पहुंचे। उनके घरों में खाना भी नहीं बना। वहीं पीड़ित पक्ष ने अदालत के फैसले का स्वागत किया गया।

    अदालत का फैसला आने से मामला सुर्खियों में आ गया। 35 साल पहले ही हिंसक घटना की यादें ताजा हो गईं। अदालत के फैसले के बाद से अकोला गांव के साथ ही आसपास के क्षेत्र में मामला चर्चा का कारण बना रहा। गांव में पुलिस फोर्स को भी तैनात किया गया था।

    गांव के दबंग लोगों ने लाठी डंडों और धारदार हथियारों से हमला किया था। लोगों को जाति पूछकर पीटा गया था। गांव में दहशत का माहौल था। उनके हाथ में भी हाथ फ्रेक्चर में हुआ था। अदालत में उनकी ओर से भी गवाही दी गई है।

    -लक्ष्मण सिंह, गवाह

    भाई सत्तो व चचेरे भाई महेश को दोषी कराए दिए जाने से घर में शोक की लहर दौड़ गई। दिन में घर में चूल्हे नहीं जले हैं। प्रशासन ने जिस तरह इस घटना को दिखाया है। इस तरह की कोई घटना घटी ही नहीं है। इसे राजनैतिक रूप दिया गया है।

    -गुलजारी सिंह

    चाचा कुंवर पाल को सजा हुई है। सजा की सूचना मिलने से घर में मातम छा गया है। घरों में चूल्हे नहीं जले है। जरूरत पड़ी तो उच्च अदालत में अपनी करेंगे। पनवारी जैसी घटना गांव में नहीं हुई थी।

    -राम खिलौना

    24 जून 1990 में दोपहर एक बजे घटना हुई थी। जाट समुदाय के लोग एकत्रित होकर आए थे और हिंसा की। जाटव समाज के लोगों छिपकर खुद को बचाया था। कई लोग तो जाट समाज के लोगों के घरों में ही छिप गए थे।

    अशोक कुमार